पटना। स्मृतिशेष डॉ सीताराम दीन और डॉ उषारानी सिंह बिहार की शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में चर्चित दम्पति रहे हैं। वे दोनों हिंदी की समृद्ध गीत परंपरा की उस धारा के रचनाकार रहे हैं, जिन्होंने कविता को मनुष्यता, करुणा और संवेदना के संस्कार दिए। उन्हें पढ़ते हुए यह धारणा पुख्ता होती है कि कविता यांत्रिक शब्दजाल या बौद्धिक व्यायाम नहीं, ह्रदय का ह्रदय से संवाद की कला है। उन दोनों की पुण्य स्मृति में कल पटना के प्रतिष्ठित कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस के सभागार में उनकी पुत्री प्रोफेसर डॉ मंगला रानी के संयोजन में एक यादगार आयोजन हुआ, जिसमें डॉ उषाकिरण खान, महाविद्यालय के प्राचार्य तपन कुमार शांडिल्य, प्रोफेसर डॉ श्रीकांत सिंह, हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ, बिहार कोकिला शांति जैन, डॉ मंगला रानी, डॉ कुमार अरुणोदय, वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन और मैंने डॉ मंगला रानी ने सीताराम दीन और डॉ उषारानी सिंह के कृतित्व, उनके जीवन संघर्षों और शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को रेखांकित किया।
समारोह के दूसरे सत्र में मंगला रानी की अध्यक्षता और डॉ अर्चना त्रिपाठी के संचालन में एक युवा कवि सम्मेलन का यादगार आयोजन हुआ, जिसमें ज्यादातर पटना के विभिन्न महाविद्यालयों के छात्रों और छात्राओं ने कविता पाठ किया।
इसमें भागीदारी करने वाले युवाओं में कुंदन आनंद, उत्कर्ष आनंद भारत, विकास राज, नेहा नारायण सिंह, साज़िया आरा, मुरली झा, अवधेश प्रसाद, प्रियंका प्रियदर्शी, केशव कौशिक, शिवांशु सिंह, प्राची झा, सूरज बिहारी ठाकुर, कुश सिंह आज़ाद, गुंजन कुमार सिंह, निशांत निरंकुश, अनंत महेंद्र, अमरेंद्र कुमार, संजय कुमार सिन्हा, अनीसा रंजन, विपुल कुमार, सुमन सिंह, अभिषेक कुमार सोनी और रजनीश कुमार की कविताएं ख़ास तौर पर पसंद की गईं। युवाओं के अनुरोध पर डॉ अर्चना त्रिपाठी, डॉ विजय प्रकाश, डॉ मंगला रानी और मेरे काव्य पाठ के साथ स्मृति सभा का समापन हुआ।
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