- नवीन शर्मा
संपूरन सिंह कालरा यानि गुलजार साहब का आज जन्मदिन है। यह बेहतरीन मौका है उन्हें उनके बेहतरीन गीतों की सौगात देने के लिए बधाई देने का। गुलजार किशोर कुमार की तरह ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैंं। गुलजार गीतकार हैं, पटकथा लेखक हैं, नाटककार और फिल्म निर्देशक भी हैं ।
उन्होंने मेरे अपने (1971), परिचय (1972), कोशिश (1972), अचानक (1973), खुशबू (1974), आँधी (1975), मौसम (1976), किनारा (1977), किताब (1978), अंगूर (1980), नमकीन (1981), मीरा, इजाजत (1986), लेकिन (1990), लिबास (1993), माचिस (1996) और हु तू तू (1999) जैसी यादगार फिल्में निर्देशित की हैं। गुलजार साहब की प्रतिभा का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन हमें उनके गीतों में ही मिलता है।
बिमल राय की फिल्म बंदिनी के मोरा गोरा रंग ले लो मुझे श्याम रंग देई दो जैसे गीत से गुलजार ने हिंदी सिनेमा में अपने अनमोल गीतों का सिलसिला शुरू किया था। मुझे गुलजार साहब के गीतों की लत आंधी फिल्म के बेमिसाल गीतों से लगी। तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं , तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं, जिंदगी नहीं । इस गीत ने मुझे उनका दिवाना बना दिया। इसी फिल्म के दो और गीत इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते और कुछ तेज कदम राहें तथा तुम आ गए हो तो नूर आ गया है भी बहुत ही खूबसूरत हैं मैं सैकड़ों बार इन गीतों को सुनता हूं पर मन नहीं भरता। इनके बेहतरीन गीतों की लिस्ट काफी लंबी है उनमें से कुछ जो मुझे बेहद पसंद हैें वो ये हैंः
- तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी : मासूम(1983)
- तेरे बिना ज़िंदगी से कोई : आंधी (1975)
- मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने : आनंद (1971)
- वो शाम कुछ अजीब थी : ख़ामोशी (1969)
- तुम आ गए हो नूर आ गया है : आंधी (1975)
- आपकी आँखों में कुछ – घर (1978)
- हुज़ूर इस क़दर भी – मासूम (1983)
- कोई होता जिसको अपना – मेरे अपने (1971)
- ओ माझी रे अपना किनारा – ख़ुशबू (1975)
- न जिया लागे न : आनंद (1971)
- आने वाला पल जाने वाला है : गोलमाल (1979)
- रोज़ रोज़ आंखों तले : जीवा (1986)
- ऐ ज़िंदगी गले लगा ले – सदमा (1983)
- कजरा रे – बंटी और बबली (2005)
- ज़िंदगी कैसी है पहेली – आनंद (1971)
- इस मोड़ से जाते हैं : आंधी (1975)
- मेरा कुछ सामान – इजाज़त (1987)
- यारा सीली सीली : लेकिन (1990)
- दिल ढूंढता है : मौसम (1975)
- दो दीवाने शहर में – घरोंदा (1977)
- नाम गुम जाएगा – किनारा (1977)
- हज़ार राहें मुड़ के देखीं – थोड़ी सी बेवफ़ाई (1978)
- दिल हूम हूम करे – रुदाली (1993)
- चप्पा चप्पा चरखा चले : माचिस (1996)
- ऐ अजनबी : दिल से (1998)
- 26 बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया जिगर मा बड़ी आग है।
गुलजार के गीत सीधे सपाट नहीं होते कई बार आम आदमी को उनका अर्थ समझने में परेशानी हो सकती है फिर भी वो हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय गीतकारों मेें शुमार रहे हैं। इसी का प्रमाण है कि उन्हें फिल्मफेयर का सर्वेश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार दस बार मिल चुका है।
उन्हें 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। वहीं 2004 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। गुलजार के बेहतरीन गीतों की महक अपने देश तक ही सीमित नहीं रही। उन्हें 2009 में ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के गीत ‘जय हो’ के लिए ऑस्कर (सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत का) पुरस्कार भी मिला। उन्हें ग्रैमी पुरस्कार भी मिल चुका है। हिंदी सिनेमा में उनके अप्रतिम योगदान के लिए दादा साहब फाल्के सम्मान भी दिया गया है।
गुलजार साहब की एक और खासियत है उनकी आवाज बहुत अच्छी है। उनकी आवाज में कंपेयरिंग सुनना या कोई नज्म सुनना वाकई बहुत ही शानदार अनुभव होता है।
उनकी एक नज्म जो मुझे बेहद पसंद है वो आपके पेशे नजर कर रहा हूंः नज़्म उलझी हुई है सीने में, मिसरे अटके हुए हैं होठों पर। उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह, लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं। कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम, सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा, बस तेरा नाम ही मुकम्मल है। इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी।
गुलजार के गीतों की यह खासियत है कि कई शब्दों के मायने नहीं जानने के बाद भी वे गीत उनके दिल से निकल कर आपके दिल तक की यात्रा तय करते हैं। वो एक अच्छे आदमी की तरह दिखते भी हैं। गुलजार के लिए गालिब का शेर फिट बैठता है कहते हैं कि दुनिया में हैं सुखनवर बहुत अच्छे लेकिन गुलजार का है अंदाजे बयां और।
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