पटना। महात्मा गांधी और राजभाषा हिंदी विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका विधिवत उद्घाटन प्रसिद्ध साहित्यकार और गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने किया। आयोजन जगदंबी प्रसाद यादव स्मृति प्रतिष्ठान एवं अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद के तत्वावधान में हुआ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में लोक गायिका नीतू कुमारी नवगीत ने नरसी मेहता लिखित महात्मा गांधी का प्रिय भजन- वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाने रे- गाया। अंतरराष्ट्रीय हिन्दी परिषद् की महासचिव डॉ. अंशुमाला ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि भाषा वही श्रेष्ठ है, जिसे सहजता से सभी स्वीकार करें।
राजभाषा संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्व हिंदी दिवस के प्रस्तावक और अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद् के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि महात्मा गांधी ने हिंदी को पठन-पाठन की भाषा और सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि जिस देश और समाज के पास अपना चिंतन और चेतना नहीं है, वह समाज श्रेष्ठ नहीं बन सकता।
मुख्य अतिथि मृदुला सिन्हा ने कहा कि विदेशी भाषाओं के इस्तेमाल में दिमाग पर जोर पड़ता है, जबकि मातृभाषा दिल की आवाज होती है। महात्मा गांधी ने जैसे चरखा को स्वावलंबन के माध्यम के रूप में स्वीकार किया, वैसे ही हिंदी को भी अपनाया। अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति सजगता आवश्यक है। कार्यक्रम में वारसा विश्वविद्यालय पोलैंड के हिंदी चेयर और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् से जुड़े डॉ सुधांशु कुमार शुक्ला ने कहा कि जो देश अपनी भाषा और संस्कृति से लगाव छोड़ देता है, वह देश आगे नहीं बढ़ सकता। कार्यक्रम में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय की कुलपति और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य प्रोफेसर डॉ सुषमा यादव, प्रख्यात साहित्यकार और सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ अशोक लव, प्रख्यात साहित्यकार डॉ शिवनारायण और भविष्य निधि कर्मचारी संगठन के आयुक्त आलोक यादव ने भी अपने विचार रखे।
विचार गोष्ठी के बाद प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री डॉ शांति जैन की अध्यक्षता में अंतरराष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें डॉ निवेदिता मिश्र, डॉ मीनाक्षी हिमांशु, भगवत शरण झा अनिमेष, मधुरेश कांत, आरती कुमारी, आराधना प्रसाद, रेखा सिन्हा, अर्चना त्रिपाठी, सुमेधा पाठक, दिलीप कुमार, एमके बजाज, सच्चिदानंद सिन्हा आदि ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया।