नहाय-खाय के साथ 1 अक्टूबर से तीन दिनों का जितिया पर्व

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जितिया का पर्व की शुरुआत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के नहाए खाए के साथ नौवी तिथि के पारण तक होती है।

बेगूसराय (नंद किशोर सिंह)। अगले माह मंगलवार यानी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की तिथि अष्टमी 2 अक्टूबर को महिलाएं वंश वृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए जिउतिया व्रत रखेंगी। सनातन धर्म मानने वालों में इस पर्व का बड़ा महत्व है। व्रत के दौरान व्रती महिलाएं 24 घंटे तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी।

व्रत का पारण 3 अक्टूबर नौंवी तिथि को करेंगी। पंडित राघवेंद्र उर्फ हीरा जी के अनुसार 2 अक्टूबर यानी मंगलवार दिन अष्टमी तिथि को जिउतिया व्रती महिलाएं दिनभर उपवास रह कर कुश के जीमूत वाहन व मिट्टी गोबर से सियारिन व चिल्होरिन की प्रतिमा बनाकर जिउतिया की पूजा करेंगी। फल-फूल और नैवेद्य चढ़ाएं जाएंगे। इसके बाद सभी व्रती महिलाएं एकत्रित होकर जिमूत वाहन की कथा सुनेंगी। बुधवार यानी 3 अक्टूबर को सूर्योदय होने के बाद पारण के साथ व्रत पूरा हो जायेगा।

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पर्व में मछली व मड़ुआ की रोटी खाने की परंपरा

जिउतिया व्रत की मान्यताओं के अनुसार सप्तमी तिथि यानी 1 अक्टूबर को महाव्रत से एक दिन पहले सभी व्रती महिलाओं द्वारा मड़ुआ की रोटी और नोनी का साग खाने की परंपरा होती है। ऐसा कहा जाता है कि मड़ुआ की फसल और नोनी का साग ऊसर जमीन पर भी उपजते हैं।

आशय यह है कि उनकी संतान की विपरीत परिस्थिति में भी रक्षा होती रहेगी। मिथिलांचल के इलाके में मड़ुआ की रोटी के साथ मछली खाने की विशेष परंपरा रही है। जो महिलाएं शाकाहारी व्रती होती हैं, वे मछली की जगह नोनी का साग खाती हैं।

इस बार पितर पूजा से होगी व्रत की शुरुआत

पितृपक्ष शुरू होने के कारण इस बार 1 अक्टूबर को नहाए खाय के साथ-साथ इस पर्व की शुरुआत होगी। चूँकि इस बार जिउतिया का पर्व पितृ पक्ष में पड़ रहा है, इसलिए सभी व्रती महिलाएं स्नान करने के बाद आपने-अपने पितरों की पूजा कर व्रत का संकल्प लेंगी। व्रती स्नान करने के बाद भोजन ग्रहण करेंगी और पितरों की पूजा करेंगी। पितरों को चूड़ा अर्पित करने की परंपरा रही है। कहीं-कहीं चूड़ा-दही दोनों अर्पित किया जाता है।

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