निर्भया रेप कांड की वकील सीमा कुशवाहा को सलाम!

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निर्भया रेप कांड की वकील सीमा कुशवाहा
निर्भया रेप कांड की वकील सीमा कुशवाहा

निर्भया रेप कांड में सीमा कुशवाहा जीवन में पहला मुकदमा बिना फीस लड़ कर आज सबके दिलों में जगह बना ली है। उन्होंने निर्भया की आत्मा को शांति दी। बचाव पक्ष के तमाम हथकंडों को नाकाम करने में उनकी भूमिका अहम रही। आईएएस बन कर वह देश की सेवा तो नहीं कर पायीं, पर समाज के लिए वकील के रूप में उन्होंने मिसाल कायम की है। रेप कांड के चार आरोपियों को आखिरकार आज फांसी हो ही गयी।

न्यायपालिका का आभार जतातीं निर्भया की मां
न्यायपालिका का आभार जतातीं निर्भया की मां

इसके पहले भी कोलकाता में ऐसे ही एक मामले में धनंजय चटर्जी की फांसी हुई थी। अफसोस कि इस तरह की घटनाओं में पांच आरोपियों की फांसी के बाद भी कोई महिला या उसके परिजन निश्चंत अब भी नहीं हैं कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति अब नहीं होगी। अब भी दुश्कर्म के कई आरोपी मामूली सजा पाकर छूट जाते हैं। इस पूरे घटनाक्रम और ऐसी घटनाओं की तह में जाकर पड़ताल करने की कोशिश की है डा. राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने।

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  • डा. राजेंद्र नाथ त्रिपाठी

निर्भया के अपराधियों को उनके किए की सज़ा आख़िर मिल ही गई। अपराधियों के वकील ने उन अपराधियों को बचाने के क्रम में वकालत के पेशे को दाग़दार बना दिया। कानून, अदालतें, जज और वकील सब इसलिए होते हैं कि अपराधी को दंड मिले और न्याय की स्थापना हो। अपराधी को बचाना न्याय व्यवस्था का मक़सद नहीं हो सकता।

निर्भया रेप कांड के दोषी, जिन्हें फांसी हुई
निर्भया रेप कांड के दोषी, जिन्हें फांसी हुई

वकील एपी सिंह अपराधियों के कृत्य को जस्टिफाई करते दिख रहे थे और निर्भया के आचरण पर उंगली उठा रहे थे। वकील एपी सिंह या उनके हमदर्दों को प्रोफेसन के नाम पर छूट नहीं मिल सकती कि वे खुल्लमखुल्ला अपराधियों का साथ दें और न्याय का गला घोंट दें। वकालत के पेशे की भी एक नैतिकता होनी चाहिए।

रही बात फांसी की सज़ा की तो उस पर वैश्विक बहस होनी चाहिए और बहस होती भी  रही है। दुनियाभर के अनेक देशों ने फाँसी की सज़ा के प्रावधान को ख़त्म कर दिया है। भारत की अंतरात्मा में करुणा और दया के तत्व आरंभ से हैं। अंगुलिमाल जैसे भयानक डाकू को तथागत ने न केवल क्षमा कर दिया था, अपितु उसे धर्म के पथ पर चला भी दिया था। बाल्मीकि की कथा से सभी परिचित हैं।

फांसी की सज़ा न्याय के उस सिद्धांत के साथ है, जो आंख के बदले आंख और हाथ के बदले हाथ के तर्क में विश्वास करता है। यह मनुष्य की आदिम सोच का ही अवशेष है। हम उस सोच से बहुत आगे निकल चुके हैं। अब न्याय को करुणा, दया और मानवाधिकारों से भी जोड़कर देखा जाता है। अपराधी से नहीं, बल्कि अपराध से घृणा की जानी चाहिए। निर्भया के साथ बहुत बुरा हुआ था। ऐसी घटनाएँ बाद में भी घटित हुई हैं और आगे भी होती ही रहेंगी, क्योंकि ऐसी घटनाओं के कारण हमारे समाज में मौजूद हैं।

हमें उन कारणों की समीक्षा करनी होगी। भौतिकता और देहवाद ने हमें हमारे मूल संस्कारों और नैतिक ज़िम्मेदारी से बहुत दूर धकेल दिया है। नैतिक शिक्षा, मानवता, संस्कार, सभ्यता, संस्कृति, धर्म और नैतिकता आदि को आजकल दकियानूसी बातें कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती है। आजकल लगभग फ्री हो चुकी इंटरनेट सुविधाओं ने छोटे-छोटे बच्चों को भी पोर्न की दुनिया से जोड़ दिया है, जो काली दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। देह उघाड़ू फिल्मों और वीडियो गेमों ने अपरिपक्व मस्तिष्क के बच्चों में सेक्स और हिंसा को गलत ढंग से स्थापित कर दिया है।

सीमा कुशवाहा के साथ निर्भया की मां
सीमा कुशवाहा के साथ निर्भया की मां

निर्भया के अपराधी भी शराब और पोर्न की दुनिया से जुड़े हुए ऐसे ही विकृत लोग थे, जिन्हें इस बात पर क्रोध आ रहा था कि पीड़िता उनके साथ पोर्न स्टारों की तरह सहयोग क्यों नहीं कर रही है! बेहोशी का यह क्रोध अंत में एक क्रूर हत्या में परिणत हो गया। हमारे कुछ युवक अगर ऐसे रास्तों पर चल पड़े हैं तो इसकी जड़ों को खोजना होगा और उन मूल कारणों से सख़्ती से निपटना होगा। स्कूली बच्चे आजकल धड़ल्ले से नशीली चीजों का सेवन कर रहे हैं। उनके आस पास की दुकानों से आसानी से नशे की चीजें उन्हें मिल जा रही हैं। माता-पिता भी जानकर अनजान बने रहते हैं।

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याद रहे कि फांसी समाधान नहीं है और एपी सिंह जैसे शातिर वकील हमेशा न्याय व्यवस्था से खिलवाड़ करते ही रहेंगे। अतः पूरे समाज को जागरूक होना होगा और शुरुआत अपने घरों से ही करनी होगी। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना हमारा ही दायित्व है। उन्हें सही ज्ञान और संस्कार दिए जाने चाहिए। उन्हें यौन शिक्षा की भी पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। माता-पिता अपने बच्चों को पूरा समय दें और उनका साथ दें तो हम बहुत कुछ क़ामयाब हो सकते हैं।

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