नीति आयोग की बैठक में बिहार को विशेष दर्जा का मुद्दा नीतीश ने उठाया

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(नीति आयोग की गवर्निंग कॉउसिंल की चौथी बैठक में नीतीश का भाषण)

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, राज्यों के माननीय मुख्यमंत्रीगण, नीति आयोग के माननीय उपाध्यक्ष महोदय, माननीय केन्द्रीय मंत्रीगण, गवर्निंग कॉउन्सिल के सभी माननीय सदस्यगण, केन्द्र और राज्य सरकारों के पदाधिकारीगण।

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सर्वप्रथम मैं आदरणीय प्रधानमंत्रीजी को धन्यवाद देना चाहूँगा, जिन्हांने हमें नीति आयोग के गवर्निंग कॉउसिंल की चतुर्थ बैठक में आमंत्रित कर इस अवसर पर अपना सुझाव रखने का अवसर दिया। भारत के संघीय ढाँचे में सभी राज्यों की सहभागिता से समस्याओं का निराकरण करने तथा लोकोपयोगी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए बेहतर माहौल बनाने में नीति आयोग अग्रणी भूमिका निभा सकता है। बदले हुए आर्थिक एवं सामाजिक परिवेश में देश के विकास के लिये समावेशी सोच एवं दृष्टि की आवश्यकता है। आज की बैठक हमें अपनी समस्याओं पर विचार-विमर्श कर उनका समाधान ढूँढ़ने का मंच प्रदान करेगी।

नीति आयोग की गवर्निंग कॉउसिंल की बैठक में व्यापक एवं महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होती है। आशा है कि राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं, नीतियों तथा क्षेत्रों की रणनीतियों के साथ-साथ राज्यों द्वारा उठाये जा रहे सामयिक विषयों पर इस बैठक में सकारात्मक चर्चा होगी एवं केन्द्र तथा राज्यों के बीच महत्वपूर्ण विषयों पर आम सहमति बनेगी।

गवर्निंग कॉउन्सिल की बैठक हेतु परिचालित कार्यसूची के आलोक में एजेन्डा-वार विस्तृत प्रतिवेदन अलग से समर्पित किया गया है। मैं बिहार से संबंधित कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों को आपके विचारार्थ रखना चाहूँगा –

  • बिहार पुनर्गठन अधिनियम-2000 का प्रावधान – बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 में यह प्रावधान है कि विभाजन के फलस्वरूप बिहार को होने वाली वित्तीय कठिनाइयों के संदर्भ में एक विशेष कोषांग उपाध्यक्ष, योजना आयोग के सीधे नियंत्रण में गठित होगा और यह कोषांग बिहार की आवश्यकताओं के अनुरूप अनुशंसाएं करेगा। इस वैधिक प्रावधान के तहत राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ सहायता पूर्व के वर्षों में मिली है। अब योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन हुआ है। अतः अब नीति आयोग को ही इस वैधिक प्रावधान की मूल अवधारणा के अनुरूप अक्षरशः लागू करने की जिम्मेवारी निभानी चाहिए।
  • स्पेशल प्लान – बिहार में आधारभूत संरचना की कमी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 12वीं पंचवर्षीय येजना में विशेष योजना (बी0आर0जी0एफ0 के तहत 12000 करोड़ रू0 की स्वीकृति दी गई थी। इसके विरूद्ध 9597.92 करोड़ रू0 की नयी परियोजनाओं की स्वीकृति नीति आयोग द्वारा दी गयी थी। अभी भी 902.08 करोड़ रू0 की राशि के विरूद्ध परियोजनाओं की स्वीकृति हेतु नीति आयोग के पास प्रस्ताव लंबित है। नीति आयोग से अनुरोध है कि – पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के माध्यम से विशेष योजना के तहत लंबित येजनाओं को पूरा करने के लिए अवशेष राशि 1651.29 करोड़ रू0 शीघ्र उपलब्ध कराने की कृपा की जाय, ताकि योजनाओं का काम ससमय पूर्ण किया जा सके। 12वीं पंचवर्षीय येजना के लिए स्वीकृत राशि में से अवशेष 902.08 करोड़ रू0 के विरुद्ध पूर्व से भेजे गए दो प्रस्तावों की स्वीकृति प्राथमिकता के आधार पर दी जाये।
  • वित्त आयोग से संबंधित मुद्दे – 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के तहत राज्यों के अन्तरण को जो 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत किया गया है वह मात्र एक संरचनात्मक परिर्वतन है। एक ओर कर अन्तरणों में वृद्धि के कारण राज्यों की जो हिस्सेदारी बढ़ी, वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय योजनाओं एवं केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के आवंटन में कटौती के कारण काफी हद तक समायोजित हो गई। इसके अतिरिक्त राज्यवार जो अन्तरण पद्धति निर्धारित हुई उसके कारण बिहार का हिस्सा 10.917 प्रतिशत (13वें वित्त आयोग) से घटकर 9.665 प्रतिशत (14वें वित्त आयोग) हो गया। वस्तुतः पिछले 4 वित्त आयोगों की अनुसंशाओं में कुल देय कर राजस्व में बिहार की हिस्सेदारी लगातार कम हुई है- 11वें वित्त आयोग में 11.589 प्रतिशत से घटकर 12वें वित्त आयोग में 11.028 प्रतिशत, 13वें वित्त आयोग में 10.917 प्रतिशत और 14वें वित्त आयोग में 9.665 प्रतिशत हुई।

14वें वित्त आयोग ने जहाँ कुल क्षेत्रफल और कुल वनाच्छादित क्षेत्रफल को ज्यादा महत्व दिया, वहीं जनसंख्या घनत्व एवं प्राकृतिक संसाधनों की अनुपलब्धता के साथ-साथ बिहार जैसे थलरूद्ध राज्यों की विशिष्ट समस्याओं की अनदेखी की। यहाँ तक कि हरित आवरण को बढ़ाने हेतु राज्य सरकार के प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जगह उनकी उपेक्षा की गई। कृषि रोड मैप के तहत हरियाली मिशन के अन्तर्गत राज्य में हरित आवरण 9.79 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 15 प्रतिशत हो गया है। अब हमारा लक्ष्य इसे बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 17 प्रतिशत करने का है जो कि बिहार जैसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले राज्य के लिए अधिकतम संभव है। अतः हरित आवरण को बढ़ाने के लिए राज्यों द्वारा किये जा रहे प्रयासों को प्रोत्साहित करने हेतु विशिष्ट अनुसंशा करना राज्य हित एवं राष्ट्रीय हित में होगा।

इसके अतिरिक्त नेपाल एवं अन्य राज्यों से उद्भूत होने वाली नदियों से प्रत्येक वर्ष आनेवाली बाढ़ के कारण भौतिक एवं सामाजिक आधारभूत संरचना में हुए नुकसान की भरपाई हेतु बिहार को अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ता है। ऐसे कारण, जो बिहार के नियंत्रण में नहीं हैं, की वजह से राज्य को प्रत्येक वर्ष बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है और बाढ़-राहत, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण कार्यों पर काफी राशि व्यय होती है। गंगा बेसिन के उपरी राज्यों में निर्मित बांधों, बराजों एवं अन्य संरचनाओं के चलते नदी के प्रवाह में कमी आई है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्र में वनों के क्षरण एवं खनन गतिविधियों ने नदी के स्वाभाविक प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिसके कारण मैदानी क्षेत्रों में गाद अधिक मात्रा में पहुँच रही है। इससे बिहार में बाढ़ की तीव्रता एवं व्यापकता में वृद्धि हुई है। सोन नदी के मामले में भी पड़ोसी राज्यों – मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के द्वारा कभी भी जल बँटवारे से संबंधित बाणसागर समझौते का अनुपालन नही किया गया है पर जब भी सोन नदी बेसिन में अधिक वर्षा होती है तो बाणसागर एवं रिहन्द बांध से अचानक अत्यधिक पानी छोड़ दिया जाता है जिसके कारण बिहार में बाढ़ आती है और नुकसान होता है। अतः राज्यों की हिस्सेदारी से संबंधित मानदंडों के निर्धारण के दौरान इन बाह्य कारणों का समावेशन किया जाना चाहिए।

यह हमारा दृढ़ विचार है कि जनसांख्यिकीय बदलाव को समझने तथा नागरिकों की आवश्यकताओं के संख्यात्मक आकलन के लिए जनसंख्या के अद्यतन आँकड़ों को महत्व देना आवश्यक है। अंततः सभी नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जाना है अन्यथा देश में विकास के कुछ द्वीप ही सृजित होंगे। इसलिए 15वें वित्त आयोग के विचारणीय बिन्दुओं में 2011 की जनसंख्या के आकड़ों को ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज वितरण का आधार बनाया जाना एक स्वागत योग्य कदम है, जो लम्बे समय से अपेक्षित था। 15वें वित्त आयोग के विचारणीय बिन्दुओं में राज्यों द्वारा जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों को मान्यता देते हुए उल्लेख किया गया है कि जनसंख्या वृद्धि की प्रतिस्थापन दर की दिशा में किये गये प्रयास और प्रगति को सिफारिशों में महत्व दिया जा सकेगा। ये प्रावधान जनसंख्या के अद्यतन आँकड़ों पर आधारित नागरिकों की आवश्यकताओं तथा राज्यों द्वारा जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों को संतुलित कर सकेंगे।

13वें वित्त आयोग ने राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए सहायता अनुदान की सिफारिश की थी, जिस पर 15वें वित्त आयोग को भी विचार करना चाहिए। यह पिछड़े राज्यों एवं विकसित राज्यों के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगा। 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में यह सुझाव दिया था कि यदि सूत्र आधारित अंतरण राज्य विशेष की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति न कर सकें तो उसे निष्पक्ष ढंग से एवं सुनिश्चित रूप से विशेष सहायता अनुदान से पूरा किया जाना चाहिए। इस सुझाव को लागू नही किया गया है। अतः नीति आयोग द्वारा बिहार जैसे पिछड़े राज्यों की विशेष एवं विशिष्ट समस्याओं को देखा जाना चाहिए।

 

  • विशेष राज्य के दर्जा की मांग – यदि अन्तर-क्षेत्रीय एवं अन्तर्राज्यीय विकास के स्तर में भिन्नता से संबंधित आँकड़ों की समीक्षा की जाए तो पाया जायेगा कि कई राज्य विकास के विभिन्न मापदंडों यथा- प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, सांस्थिक वित्त एवं मानव विकास के सूचकांकों पर राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं। तर्कसंगत आर्थिक रणनीति वही होगी, जो ऐसे निवेश और अन्तरण पद्धति को प्रोत्साहित करे, जिससे पिछड़े राज्यों को एक निर्धारित समय सीमा में विकास के राष्ट्रीय औसत तक पहुँचने में मदद मिले। हमारी विशेष राज्य के दर्जे की मांग इसी अवधारणा पर आधारित है। हमने लगातार केन्द्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग की है। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने से जहाँ एक ओर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के केन्द्रांश में वृद्धि होगी, जिससे राज्य को अपने संसाधनों का उपयोग अन्य विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं में करने का अवसर मिलेगा, वहीं दूसरी ओर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों के अनुरूप केन्द्रीय जी०एस०टी० में अनुमान्य प्रतिपूर्ति मिलने से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, कारखाने लगेंगे, रोजगार के नये अवसर सृजित होगें तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार आयेगा।

न्याय के साथ विकास के सिद्धान्त पर राज्य सरकार द्वारा सभी प्रक्षेत्रों को दृष्टिगत रखते हुए अनेक विकासात्मक योजनाओं का क्रियान्वयन कराया जा रहा है। हमारी विकास रणनीति के कुछ महत्वपूर्ण स्तंभ हैं- आधारभूत संरचना विकास, कृषि रोड मैप, कौशल विकास मिशन, औद्योगिक विकास, कमजोर वर्गों का कल्याण, बिहार विकास मिशन एवं सात निश्चय। विकसित बिहार के 7 निश्चय के तहत राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि सभी राज्य वासियों को न सिर्फ मूलभूत सुविधाएँ यथाः पेयजल, शौचालय एवं बिजली उपलब्ध हो, बल्कि आधारभूत संरचनाओं यथाः सड़क, गली-नाली, पुल आदि का भी विस्तार हो। हमने युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सक्षम बनाने तथा उनके लिए उच्च व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास की व्यवस्था करने का भी संकल्प लिया है। इन योजनाओं को सार्वभौमिक स्वरूप दिया गया, ताकि इसका लाभ बगैर किसी भेद-भाव के सभी क्षेत्रों, वर्गों को प्राप्त हो सके। विकास कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के अभियान चलाये जा रहे है। मद्य-निषेध, बाल-विवाह और दहेज-प्रथा के खिलाफ मुहिम जारी है। राज्य सरकार के इन विशिष्ट कार्यक्रमों को नीति आयोग का समर्थन मिलना चाहिए और राज्य को अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए।

  • सतत विकास लक्ष्य – राज्य के लिए सतत विकास लक्ष्य का विजन डॉक्युमेंट, रणनीति एवं कार्य योजना तैयार कर नीति आयोग को समर्पित किया गया है। सतत विकास लक्ष्य एवं 2030 का एजेंडा हम सबों को अवसर प्रदान करता है कि कुछ राज्यों तथा आबादी के कुछ कमजोर वर्गों के साथ की गई असमानता एवं अन्याय के कारणों की बारीकी से जाँच की जाय। सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य गत वर्षो में तेजी से प्रगति करने के बावजूद भी विकास के सामाजिक एवं आर्थिक मानकों पर राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं। सतत विकास लक्ष्य एवं वर्ष 2030 तक का एजेण्डा इस अन्तर को पाटने का अवसर प्रदान करता है। राज्यों को सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा दी जानेवाली विशेष सहायता का उल्लेख राष्ट्रीय दृष्टि पत्र 2030 में स्पष्ट रूप से किया जाना चाहिए। राज्यों की आकांक्षाओं/आवश्यकताओं को रणनीति एवं कार्य योजना को राष्ट्रीय रूपरेखा में स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए। सतत विकास लक्ष्य के मुख्य सिद्धांतों में से एक प्रमुख सिद्धान्त ‘‘कोई भी पीछे छूटे नहीं‘‘ के तहत यह आवश्यक है कि पिछड़े राज्यों को विकास के विभिन्न मापदंडों पर राष्ट्रीय औसत तक लाने के लिए विशेष पहल की जानी चाहिए।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण – राष्ट्रीय पोषण मिशन योजना का हाल ही में शुभारंभ हुआ है। पोषण अभियान का मुख्य उददेष्य समाज कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पी0एच0ई0डी0 इत्यादि विभागों को सम्मिलित करते हुए पोषण एवं स्वच्छता से संबंधित संचालित कार्यक्रमों को संयुक्त रूप से अनुश्रवण करते हुए निर्धारित समय-सीमा के अंदर बच्चों के कुपोषण एवं महिलाओं के एनिमिया दर में कमी लाया जाना है। जिसके अंतर्गत अगले 3 वर्षों में कुपोषण दर में 6 प्रतिशत एवं महिलाओं के एनिमिया दर में 9 प्रतिषत कमी लाने का लक्ष्य है। इस संबंध में मैं एक महत्वपूर्ण सुझाव रखना चाहूँगा। आप अवगत है कि एक ऑगनबाड़ी केन्द्र का मुख्य उद्देश्य 0-6 वर्ष के बच्चों के स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण के विकास के साथ-साथ उन्हें विद्यालय पूर्व शिक्षा उपलब्ध कराना है, ताकि प्रत्येक बच्चे का समुचित शारीरिक-मानसिक एवं सामाजिक विकास संभव हो सके। साथ ही इन केन्द्रों पर गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराते हुए उनके स्वास्थ्य एवं पोषण को बेहतर बनाना है। पर इन मूल उद्देश्यों से हटकर ऑगनबाड़ी केन्द्र खाना तैयार करने एवं वितरण करने का केन्द्र बन कर रह गये हैं। ऑगनबाड़ी केन्द्र की व्यवस्था पर विभिन्न प्रकार की अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। यही कारण है कि इन केन्द्रों के लाभार्थियों में इस योजना के प्रति असंतोष का भाव प्रबल रहता है।

इसी प्रकार से विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना के अन्तर्गत प्रत्येक दिन खाना तैयार कर विद्यार्थियों को खिलाने की गतिविधि ही प्रमुख हो गई है, जिसके कारण शिक्षकों का ध्यान पठन-पाठन पर नही रहता है और इसका प्रतिकूल प्रभाव शैक्षणिक गुणवत्ता पर पड़ता है। विद्यार्थियों के लिए भी विद्यालय एक शिक्षा के केन्द्र से अधिक भोजशाला बनकर रह गया है। विद्यालयों में आधारभूत संरचना का अभाव, कम भुगतान पाने वाले अकुशल रसोईये तथा राशन का अस्वच्छ भंडारण एवं प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने में बाधक है। निम्न गुणवत्ता का भोजन ग्रहण करने से अक्सर समूह में बच्चे अस्वस्थ हो जाते हैं और अभिभावकों के आक्रोश के कारण विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह सभी विद्यालय के शैक्षणिक माहौल के अनुकूल नही है।

पिछले कई वर्षों में बिहार सरकार ने विद्यालयों में लड़कियों के लिए पोशाक योजना एवं मुख्यमंत्री बालिका साईकिल योजना के अन्तर्गत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से लाभार्थी को राशि उपलब्ध कराई है। यह दोनों योजनाएँ काफी सफल साबित हुई हैं और इनके चलते विद्यालयों में लड़कियों का छीजन दर काफी कम हुआ है। कालान्तर में साईकिल योजना का विस्तार लड़कों के लिए भी किया गया है। स्वतंत्र मूल्यांकन में पाया गया है कि इन योजनाओं का प्रतिफल एवं भौतिक उपलब्धि काफी उत्साहवर्द्धक रही है और राशि का विचलन नाम मात्र हुआ है।

प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के विरूद्ध अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि जो राशि पोषण के लिए दी जाएगी उसका उपयोग परिवार द्वारा अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर दिया जायेगा। पूरक पोषाहार कार्यक्रम में विचलन, भोजन की निम्न गुणवत्ता, लाभार्थियों के बीच असंतोष, अनियमितता एवं भ्रष्टाचार के नियमित शिकायतों के परिपेक्ष्य में मेरा यह मानना है कि इन योजनाओं में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की रणनीति अपनाकर लक्षित समूह को राशि उपलब्ध कराई जानी चाहिए। व्यवस्था को लाभार्थियों पर विश्वास करना चाहिए कि वे राशि का उपयोग उसी प्रयोजन के लिए करेंगे जिसके लिए उसको उपलब्ध कराया गया है। ऐसा करने से ऑगनबाड़ी केन्द्र एवं विद्यालय के कर्मी अपनी मूल दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे जिससे इन संस्थाओं के कार्य प्रणाली में बेहतरी आएगी।

इस विषय पर मैंने पहले भी उपाध्यक्ष, नीति आयोग को पत्र लिखकर अनुरोध किया था और मैं पुनः दोहराता हूँ कि नीति आयोग को अग्रणी भूमिका निभाते हुए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की व्यवस्था समेकित बाल विकास कार्यक्रम एवं मध्याह्न भोजन कार्यक्रम में लागू करने के लिए पहल करनी चाहिए। अगर ठीक समझे तो इस सुझाव की प्रभावशीलता को परखने के लिए कुछ जिलों में प्रयोग ;च्पसवजद्ध के तौर पर इसका कार्यान्वयन कराया जा सकता है।

  • मानदेय का पुनरीक्षण एवं वित्तीय भार का वहन – केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु योजना की मार्गदर्शिका के अनुसार अनेक कर्मियों को संविदा पर बहाल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर समेकित बाल विकास कार्यक्रम के तहत आंगनवाड़ी सेविका/सहायिका, मध्याह्न भोजन के तहत रसोईया आदि। समय-समय पर इन कर्मियों द्वारा अपने मानदेय को बढ़ाने की माँग की जाती है। ऐसे कर्मी बड़ी संख्या में होने के कारण संगठित रूप से भी अपनी माँगों को रखते है एवं पूरा नही होने पर विरोध भी करते है। इस कारण योजनाओं के क्रियान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और योजनाओं के मूल उद्देश्यों पर मानदेय संबंधी मामला हावी हो जाता है। कुछ मामलों में केन्द्र सरकार द्वारा लम्बी अवधि से मानदेय में वृद्धि नही करने के कारण केन्द्र द्वारा निर्धारित मानदेय के अतिरिक्त बिहार जैसे अल्प संसाधन वाले राज्य को अपने संसाधनों से भी राशि देनी पड़ रही है। अतः इस संबंध में मेरा सुझाव है कि अगर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में ऐसे कर्मियों को संविदा पर लम्बी अवधि तक बहाल रखा जाता है तो इनके मानदेय में एक निर्धारित अन्तराल पर यथोचित वृद्धि की जानी चाहिए और इसका पूर्ण वित्तीय भार केन्द्र सरकार को वहन करना चाहिए।
  • कृषि – भारत सरकार द्वारा पूर्वी भारत को देश में दूसरी हरित क्रांति के केन्द्र के रूप में चिन्हित की गयी है तथा देश में 2021-22 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का संकल्प किया है। बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी 89 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है और 76 प्रतिषत जनसंख्या अपने जीवकोपार्जन के लिए कृषि एवं कृषि आधारित कार्यों पर निर्भर है। किसानों को केन्द्र में रखते हुए वर्ष 2006 से ही कृषि विकास के लिए गंभीर प्रयास शुरू हुए। पहले कृषि रोड मैप 2008-2012 एवं दूसरे कृषि रोड मैप 2012-2017 के माध्यम से राज्य के किसानों को गुणवत्तापूर्ण उपादान उपलब्ध कराये, उन्हें नई तकनीकों से अवगत एवं प्रषिक्षित कराया और उनके क्षमता का संवर्द्धन किया। विभिन्न योजनाओं में कृषकों को अनुदान का सहयोग देकर बिहार में कृषि विकास को नई दिशा दी गई है। योजनाओं का लाभ उठा कर मेहनती किसानों ने राज्य में धान, गेहूँ एवं मक्का की उत्पादन एवं उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि हासिल की और बिहार चावल, मक्का एवं दलहन की खेती में राष्ट्रीय औसत से आगे निकल गया है। पहले दो कृषि रोड मैप की सफलता से प्रेरित होकर राज्य सरकार ने वर्ष 2017-2022 के लिए तीसरा कृषि रोड मैप लागू किया है जिसके मूल उद्देश्य हैं-कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों का एकीकृत एवं टिकाऊ विकास, इन्द्रधनुषी क्रांति की परिकल्पना तथा समेकित तरीके से अनाज, दाल, फल, सब्जी की खेती के साथ-साथ पशुपालन विकास एवं कृषि आधारित मूल्य संवर्द्धन है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ राज्य के सहकारी प्रक्षेत्र में त्रिस्तरीय सब्जी प्रसंस्करण एवं विपणन की व्यवस्था, स्थानीय कृषि यंत्र निर्माताओं को प्रोत्साहित करने, भूमि सर्वे एवं बंदोबस्ती कार्य को अंतिम रूप देना एवं भू-अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण, राज्य के हरित आवरण को 17 प्रतिशत पहुँचाने, ड्रेनेज एवं सिवरेज का परिशोधित जल गंगा नदी में ना बहाकर इसका उपयोग खेती में सिंचाई के लिए करने तथा बैकयार्ड मुर्गीपालन, बकरीपालन तथा सुकरपालन को बढ़ावा देने और दुग्ध, मछली एवं अण्डा उत्पादन में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने हेतु योजनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इस कृषि रोड मैप की योजनाओं एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन हेतु 5 वर्षों में 1 लाख 54 हजार करोड़ रूपये का व्यय किया जायेगा। हमारा अनुरोध है कि बिहार के कृषि रोड मैप से संबंधित योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार समुचित वित्तीय सहयोग दे।
  • इनपुट अनुदान – कृषि एवं संबद्ध प्रक्षेत्र में किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नही मिल पाना एवं कृषि आय में वृद्धि ना हो पाना सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर रही है। कृषि संकट से उबरने के लिए विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न उपाय सुझाये जाते रहे हैं। फसल ऋण माफी को एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अनुभव यह बताता है कि दीर्घकालीन दृष्टिकोण से यह एक प्रतिगामी कदम हैं। यह लाभ उन्ही किसानों तक सीमित रहता है जिन्होंने ऋण लिया है। गैर ऋणी एवं गैर-रैयत किसान जिनकी एक बड़ी संख्या है वे इससे लाभान्वित नही हो पाते है। इसके अतिरिक्त फसलों की अधिप्राप्ति कर कृषकों को लाभ पहुँचाने की भी एक सीमा है। राज्य में कृषि फसलों के भण्डारण एवं अधिप्राप्ति का प्रबंधन एवं निस्तारन की अलग चुनौतियाँ है। मेरा यह दृढ़ मत है कि कृषकों को इनपुट अनुदान के माध्यम से ही सहायता दी जानी चाहिए। ऐसा करने से कृषि की कुल उत्पादन लागत में कमी आएगी और कृषकों की वास्तविक आय अधिक हो सकेगी।

इसी सिद्धान्त के आलोक में कृषि रोड मैप 2017-2022 के अन्तर्गत राज्य में इनपुट अनुदान योजना का शुभारंभ किया गया। 5 मई 2018 को जैविक सब्जी उत्पादकों के लिए पटना, नालंदा, वैशाली और समस्तीपुर में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इस योजना के अंतर्गत 30 डिसमिल में सब्जी की खेती के लिए 6000 रुपये की अनुदान सहायता प्रदान करने का प्रावधान है। इस योजना के अंतर्गत उनके खातों में उपलब्ध कराई गई राशि से किसान कृषि इनपुट यथा बीज, जैविक उपादान, खाद्य, कीटनाशी आदि का क्रय कर सकते हैं। इस योजना को चरणबद्ध रूप से पूरे राज्य में सभी फसलों पर लागू करने के लिए अधिक संसाधन की आवश्यकता होगी। भारत सरकार को इनपुट अनुदान योजना को वित्त पोषित करने में राज्य की मदद करनी चाहिए।

राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2006 में कृषि उपज बाजार निरसन अधिनियम लागू किया गया। इसके साथ ही राज्य के अधीन सभी बाजार समितियों एवं बाजार पर्षद को विघटित कर दिया गया। बाजार समितियों को निःशुल्क सरकारी बाजार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। राज्य में कृषि उपज की खरीद बिक्री के लिए न तो किसी प्रकार की लाईसेन्स की जरूरत है न ही किसी प्रकार का शुल्क आरोपित किया जाता है। इससे एक स्वतंत्र कृषि बाजार विकसित हो रहा है। राज्य सरकार फिर से कृषि बाजार को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस नहीं कर रही है। फिर भी आधुनिक कृषि बाजारों के विकास के लिए राज्य सरकार अपने संसाधन का उपयोग कर रही है।

वर्तमान में भारत सरकार द्वारा तैयार किये गए ई-एनएएम परियोजना की एक प्रमुख अवधारणा कृषि बाजार को नियंत्रित करने के लिए एक कानून पर आधारित है। बिहार पुराने बाजार नियामक व्यवस्था को वापस लाये बिना राज्य में आधुनिक कृषि विपणन प्रणाली विकसित करना चाहता है। कृषि बाजार को नियंत्रित किए बिना भारत सरकार की म.छ।ड परियोजना के अधीन बिहार में कैसे आधुनिक कृषि विपनण प्रणाली स्थापित की जा सकती है के संबंध में केन्द्र सरकार को अपनी रणनीति से अवगत कराना चाहिए।

  • बिहार राज्य फसल सहायता योजना – भारत सरकार द्वारा वर्ष 1990-2000 से चल रही राष्ट्रीय कृषि बीमा येजना को खरीफ- 2016 प्रभाव से बंद कर दिया गया तथा एक नई फसल बीमा योजना यथा- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ- 2016 से लागू की गई। खरीफ- 2016 मौसम में प्रीमियम निर्धारण हेतु भारत सरकार द्वारा प्राधिकृत बीमा कंपनियों के बीच संपन्न निविदा प्रक्रिया में बिहार राज्य के लिए अप्रत्याशित दरें प्राप्त हुई, जिसके फलस्वरूप बिहार राज्य का खरीफ- 2016 में औसत न्यूनतम प्रीमियम दर लगभग 15 प्रतिशत आया, जबकि राष्ट्रीय कृषि बीमा येजना अंतर्गत यह प्रीमियम 2.5 प्रतिशत निर्धारित था। खरीफ- 2016 मौसम में ज्यादा प्रीमियम दर प्राप्त रहने के कारण बीमा कंपनियों को राज्यांश राशि के रूप में 495.94 करोड़ रूपये- केन्द्रांश के रूप में 495.94 करोड़ रूपया तथा किसानों के अंश के रूप में 130.62 करोड़ रूपया अर्थात् कुल 1122.50 करोड़ रूपये अनुमान्य हुए। परंतु खरीफ- 2016 हेतु इन बीमा कंपनियों के द्वारा मात्र 289.38 करोड़ रूपये क्षतिपूर्ति अनुमान्य की गई है। पुनः रब्बी 2016-17 में राज्यांश प्रीमियम 109.88 करोड़ रूपये, केन्द्रांश प्रीमियम 109.88 करोड़ रूपये तथा किसानों का अंश 74 करोड़ रूपये अर्थात कुल 293.76 करोड़ रूपये बीमा कंपनियों को अनुमान्य किया गया है। अतः इस योजना के क्रियान्वयन के अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि इस योजना के तहत गैर ऋणी एवं गैर-रैयत किसान जिसकी एक बड़ी संख्या है, को योजना का लाभ नही मिल पा रहा है। राज्य एवं केन्द्र सरकार को एक बड़ी राशि प्रीमियम के रूप में बीमा कंपनियों को देनी पड़ रही है जबकि अपेक्षाकृत बहुत कम राशि क्षतिपूर्ति के रूप में प्राप्त हो पा रही है और यह क्षतिपूर्ति राशि भी काफी विलम्ब से मिल पाती है।

बिहार राज्य में पूर्व से ही अनियमित मॉनसून के कारण अल्प वर्षापात की स्थिति में कृषि कार्य अप्रभावित रखने के दृष्टिगत सिंचाई कार्य हेतु किसानों को डीजन अनुदान दी जा रही है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा राज्य में कृषि फसलों में प्राकृतिक आपदा से क्षति की स्थिति में कृषि इनपुट सब्सिडी देने का प्रावधान लागू किया गया है। इस प्रकार अल्प वृष्टि तथा प्राकृतिक आपदा दोनों के कारण फसल क्षति होने की स्थिति में राज्य के किसानों को सीधे सहाय्य अनुदान उपलब्ध कराने की योजना कार्यान्वित है।

राज्य सरकार द्वारा उपरोक्त वर्णित तथ्यों पर विचारोपरान्त किसानों को कृषि इनपुट अनुदान तथा डीजल अनुदान के अतिरिक्त प्रतिकूल मौसम के कारण फसलों के उत्पादन में ह्यस की स्थिति में वित्तीय सहायता प्रदान करने के प्रयोजनार्थ बिहार राज्य फसल सहायता योजना लागू करने का निर्णय लिया है। इस योजना के अंतर्गत फसल कटनी प्रयोगो के आधार पर फसल उत्पादन दर में ह्यस की स्थिति में निर्धारित दर से प्रभावित किसानों (रैयत एवं गैर-रैयत) को तदनुसार वित्तीय सहायता दी जायेगी। इस योजना में सरकारी राशि का पूर्ण उपयोग सीधे किसानों के हित में हो सकेगा। अतः बिहार राज्य फसल सहायता योजना के अंतर्गत सहाय्य राशि में 50 प्रतिशत केन्द्र सरकार की भागीदारी पर विचार किया जाना उचित प्रतीत होता है।

राज्य सरकार ने अपने तीसरे कृषि रोड मैप में सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है और इस क्रम में सब्जियों के संग्रहण, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन तथा विपणन व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु त्रिस्तरीय सहकारी सब्जी प्रसंस्करण एवं विपणन व्यवस्था स्थापित की जा रही है। इसके अंतर्गत सब्जी उत्पादकों की प्रखंड स्तरीय प्राथमिक समितियॉँ गठित की गई है। प्रखंड स्तर पर स्थानीय हाट एवं आवष्यक आधारभूत संरचना का विकास किया जा रहा है। जिला स्तर पर प्रखंड स्तरीय प्राथमिक समितियों को मिलाकर सब्जी प्रसंस्करण एवं विपणन सहकारी संघ का गठन होगा। इस स्तर पर सब्जियों के संग्रहण, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन तथा विपणन व्यवस्था का कार्य संपादित किया जाएगा। शीर्ष स्तर पर जिला स्तरीय संघों को मिलाकर सब्जी प्रसंस्करण एवं विपणन सहकारी फेडरेषन स्थापित होगा, जिसका मुख्य कार्य व्यवसायिक समन्वय, राज्य के अन्दर एवं बाहर विपणन की व्यवस्था तथा प्रषिक्षण/क्षमता संवर्द्धन आदि होंगे।

केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर गाँधी जी के 150वीं जयंती समारोह के आयोजन हेतु बिहार सरकार के निम्नांकित सुझाव हैः-

    चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के आयोजन के क्रम में गाँधी कथा वाचन कार्यक्रम के तहत बिहार सरकार द्वारा स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए गांधी जी पर दो पुस्तकें तैयार करायी गयी हैं। इन पुस्तकों में सामान्य भाषा में रोचक प्रसंगों एवं कहानियों को लिखा गया है ताकि इसे पढ़कर बच्चे महात्मा गांधी जी के जीवन एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतार सके। यह पुस्तकें हैं ‘‘बापू की चिट्ठी- कक्षा 3 से 8 के लिए तथा ‘‘एक था मोहन- कक्षा 9 से 12 के लिए। विद्यालयों में प्रत्येक दिन सुबह की सभा में इन पुस्तकों का पाठ कराया जा रहा है। गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर हमारा सुझाव होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर गांधी जी के जीवन प्रसंग एवं जीवन परिचय पर आधारित पुस्तकों को देश के सभी विद्यालयों में उपलब्ध कराया जा सकता है। ऐसा करने से सभी राज्यों के छात्र-छात्राओं को बापू के जीवन एवं उनके आदर्शों को जानने, समझने एवं अनुकरण करने का अवसर मिल सकेगा।

गाँधीजी ने कहा था कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। राज्य सरकार द्वारा बापू के आदर्श, चिन्तन एवं विचारों को घर-घर तक पहुँचाने के लिए ‘बापू आपके द्वार’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उनके संदेशां का फोल्डर राज्य के एक करोड़ पचास लाख घरां में वितरित किया गया है। इस तरह की पहल गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर पूरे देश में की जा सकती है।

भारत में विशेष अवसरों पर सामूहिक क्षमादान की प्रथा रही है। गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर हमारा सुझाव होगा कि गंभीर मामले में संलिप्त विचाराधीन कैदी अथवा दोषसिद्ध अपराधी को छोड़कर छोटे मामलों में विहित प्रक्रिया अपनाते हुए सामुहिक क्षमादान देने पर विचार किया जा सकता है। इसमे महिला कैदी अथवा ऐसे कैदी जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक है को प्राथमिकता दी जा सकती है। इसके लिए अगर कानून में कोई प्रावधान करने की आवश्यकता है तो उस पर भी विचार किया जा सकता है।

हम आशा करते हैं कि भारत एवं बिहार राज्य के लिए विकास की रणनीति बनाते समय उपर्युक्त वर्णित सभी मुद्दों एवं सुझावों पर सम्यक विचार किया जायेगा।

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