नीतीश कुमार के दोनों हाथ में लड्डू, इधर रहें या उधर जाएं

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अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं
अगर काम को आधार बना कर वोट मिलते हैं तो नीतीश बिहार में सर्वाधिक वोट हासिल करने का पूरा बंदोबस्त कर चुके हैं

पटना। नीतीश कुमार के दोनों हाथ में लड्डू है, एनडीए जितना प्रिय, महागठबंधन उससे कम लुभावन नहीं। वह भाजपा से नाराज हैं, पर एनडीए से कोई शिकवा नहीं। महागठबंधन नीतीश कुमार के स्वागत के लिए तो पलक पांवड़े बिछाये बैठा है। अब यह उन पर निर्भर करता है कि किधर जायें। उन्होंने चालाकी इतनी भर की है कि दोनों रास्ते खुले रखे हैं। मंत्रिपरिषद में 11 स्थान खाली हैं। नीतीश ने अपने दल के 8 लोगों को मंत्री बना दिया। अब कोई यह नहीं कह सकता कि नीतीश ने सहयोगी दलों के लिए सीट नहीं छोड़ी है। सुशील मोदी ने भी माना कि भाजपा को भी न्यौता था, लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से कोई निर्देश नहीं मिलने के कारण भाजपा शामिल नहीं हुई।

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पहले एनडीए की बात करते हैं। भाजपा ने तो उन्हें साफ संकेत दे दिया है कि साथ रखेगी, लेकिन सत्ता में सांकेतिक हिस्सेदारी ही देगी। नीतीश की नाराजगी की मूल वजह यही है। वैसे भी भाजपा और नीतीश कुमार के जेडीयू में वैचारिक असमानताएं हैं। नीतीश जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35 ए हटाये जाने के विरोधी हैं। राम मंदिर पर अध्यादेश की मुखालफत वह पहले से करते रहे हैं। मुसलिम पर्सनल ला में छेड़छाड़ और नागरिकता कानून के वे विरोधी रहे हैं।

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भाजपा उन्हें किनारे करने के बहाने भले न तलाश रही हो, पर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कैबिनेट में सांकेतिक तौर पर एक मंत्री का पद ठुकरा कर अपने बगावती सुर सुना दिये हैं। इसके तुरंत बाद राज्यमंत्रिपरिषद के विस्तार में सिर्फ जदयू के 8 सदस्यों को शामिल कर उन्होंने संकेत दे दिया है कि उनकी पार्टी अलग चलने के लिए भी तैयार है। जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने रविवार को कहा कि केंद्रीय कैबिनेट में जेडीयू के शामिल होने का अब सवाल ही नहीं उठता है। इसलिए कि समय खत्म हो गया। जेडीयू ने बाहर से सरकार को समर्थन देने का फैसला किया है। नीतीश ने भी कहा था कि अमित शाह के बुलाने पर वे दिल्ली गये थे। शाह का यह प्रस्ताव कि एनडीए के घटक दलों को एक-एक मंत्री पद दिया जायेगा, नीतीश को नहीं जंचा। उन्होंने आनुपातिक ढंग से मंत्री बनाये जाने की बात उठायी।

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नीतीश कुमार की पार्टी के नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल नहीं होने के फैसले ने ही बिहार में सियासी संभावनाओं को लेकर बहस छेड़ दी। पार्टी ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग फिर से उठायी है। जेडीयू से नाराज होकर हिन्दुस्तानी अवामी मोरचा बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिन बुलाये जेडीयू की इफ्तार पार्टी में शिरकत की तो नीतीश को न्योता देकर उन्होंने अपने दल की इफ्तार पार्टी में शामिल कराया। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) सुप्रीमो रामविलास पासवान की इफ्तार पार्टी में नीतीश शामिल हुए, लेकिन भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी की इफ्तार पार्टी में वे न खुद गये और न जेडीयू का ही कोई नेता शामिल हुआ। संविधान की धारा 370 हटाने की बात हो या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण या तीन तलाक और समान नागरिक कानून हो, इन सभी मामलों में जेडीयू अपनी साथी पार्टी भाजपा से अलग रुख अपनाती रही है।

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जहां तक महागठबंधन की बात है तो जिस तरह राजद के नेता, खासकर तेजस्वी यादव नीतीश कुमार पर लोकसभा चुनाव के दौरान या उसके पहले हमलावर थे, अभी उन्होंने चुप्पी साध ली है। उल्टे में राजद कोर टीम के सदस्य रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश को न्यौता दे दिया कि 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह नीतीश कुमार को साथ आ जाना चाहिए।

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