पुण्यतिथि पर एपीजे अब्दुल कलाम को सलाम

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  • नवीन शर्मा

एपीजे अब्दुल कलाम सबसे यूनिक किस्म के राष्ट्रपति थे। रामेश्वर के छोटे से शहर के एक साधारण से मुस्लिम परिवार में जन्में कलाम के जीवन की कहानी किसी भी आम आदमी के लिए काफी प्रेरणादायक है। काफी मेहनत कर उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। देश के उत्कृष्ट वैज्ञानिक संस्थानों डीआरडीओ और इसरो में काम किया। भारत के मिसाइल प्रोग्राम को नई दिशा दी। इस वजह से उन्हें मिसाइलमैन भी पुकारा जाने लगा लेकिन कलाम मिसाइलमैन ही बनकर नहीं रहे। उन्होंने उससे आगे का सफर तय किया। वे देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हुए। उस पद को नई परिभाषा दी।

आम तौर पर राष्ट्रपति जैसे पद पर बैठा व्यक्ति समाज से कट सा जाता है लेकिन कलाम साहब तो जनता के आदमी थे उन्हें लोगों से मिलने जुलने का सिलसिला जारी रखा। खासकर विद्यार्थियों से उनकी मुलाकातें उन्हें अन्य राष्ट्रपतियों और राजनेताओं से अलग करतीं हैं। वे बच्चों को अपने जीवन में कुछ नया, विशेष और अलग करने के लिए प्रेरित करने का विशेष प्रयास करते थे।

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पंडित नेहरू ने भले ही बच्चों के प्रति अपने प्रेम और लोकप्रियता के कारण चाचा नेहरू का नाम पाया हो,  उनका जन्मदिन बालदिवस के रूप में मनाया जाता हो, लेकिन सच में विद्यार्थियों के बीच सबसे लोकप्रिय राजनेता की बात होगी तो शायद कलाम ही अव्वल होंगे।

क्यों खास हैं कलाम

कलाम साहब एक तरफ मिसाइलमैन हैं तो दूसरी तरफ वे सितार भी बजाते हैं। वे अविवाहित रहे। उनपर भाई-भतीजावाद और परिवारवाद का आरोप आप नहीं लगा सकते। उनकी जीवन शैली साधारण थी। वे दिखावा और चमक-दमक पसंद नहीं करते थे।  उन्होंने अपनी जीवनी विंग्स ऑफ फायर खूबसूरत अंदाज में लिखी है। यह काफी प्रेरक किताब है।उनकी दूसरी किताब  ‘गाइडिंग सोल्स- डायलॉग्स ऑफ द पर्पज ऑफ लाइफ’ धार्मिक विचारों को दर्शाती है।85 साल की उम्र में भी वो नौजवानों सा हौंसला रखते थे। इसी वजह से शिलांग में कार्यक्रम को संबोधित करने पहुंचे थे।

मुझे भी कलाम साहब को एक बार सुनने का मौका मिला था। सीएमपीडीआइ में वो एक सेमिनार को संबोधित करने आए थे। दुबला-पतला सा कम लंबाई का वो शख्श कहीं से भी आकर्षक नहीं लगा था। चेहरा-मुहरा भी साधरण था। आवाज भी काफी महीन थी. लेकिन उनके बोलने की शैली और विषय की जानकारी और लोगों को प्रेरित करने की उनकी सदाइच्छा उन्हें हमारे समय के सबसे महान लोगों में शुमार करने के लिए काफी थी।

कलाम हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति की शानदार मिसाल हैं। वे मोहम्मद अली , जिन्ना, मो. इकबाल और आज के अलगाववादी कश्मीरी नेताओं का माकूल जवाब हैं। इनके मुहं पर करारा तमाचा है जो मुसलमानों को भड़काते हैं कि उन्हें इस देश में उनका वाजिब हक नहीं मिलता। पुण्यतिथि पर कलाम साहब को सलाम।

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