प्रभात खबर जब बिकते-बिकते बचा, जानिए पूरी कहानी

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प्रभात खबर बिकने को तैयाार था। खरीदारों का हुजूम भी उमड़ा था। आखिरकार सौदा दैनिक जागरण की कंपनी के साथ तय हुआ, पर बिकने से प्रभात खबर बच गया। बता रहे हैं ओमप्रकाश अश्क
प्रभात खबर बिकने को तैयाार था। खरीदारों का हुजूम भी उमड़ा था। आखिरकार सौदा दैनिक जागरण की कंपनी के साथ तय हुआ, पर बिकने से प्रभात खबर बच गया। बता रहे हैं ओमप्रकाश अश्क

प्रभात खबर बिकने को तैयाार था। खरीदारों का हुजूम भी उमड़ा था। आखिरकार सौदा दैनिक जागरण की कंपनी के साथ तय हुआ, पर बिकने से प्रभात खबर बच गया। यह बात पत्रकारिता क्षेत्र के ज्यादातर लोग जानते हैं, पर नयी पीढ़ी को शायद इसकी जानकारी नहीं होगी। आइए जानते हैं कि क्यों आई थी ऐसी नौबत और कैसे बचा बिकने से।

ओमप्रकाश अश्क

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टीवी देखते समय कई काम और ज्ञान की बातें सुनने को मिल जाती हैं। एक दिन सुन रहा था अपने पसंदीदा सब टीवी के कार्यक्रम- तारक नाथ का उल्टा चश्मा- में। एक संवाद था- आँधी आने पर बड़े पेड़ उखड़ जाते हैं, पर घास-लताओं को जरा भी नुकसान नही पहुँचता। जानते हैं क्यों? इसलिए कि पेड़ झुकते नहीं और घास-लताएं आँधी के साथ इधर-उधर झुकती रहती हैं। यानी आदमी को कभी अक्खड़पन से नहीं, विनम्रता से काम लेना चाहिए। विनम्रता में बड़ी ताक़त होती है। अपने जीवन में ऐसे प्रसंग तलाश रहा था, तो एक घटना याद आयी।

2006-07 की बात है। प्रभात खबर के विस्तार के लिए तत्कालीन प्रधान संपादक हरिवंश जी मालिकों से पैसा माँगने गये थे। मालिकों ने कहा कि किसी को रणनीतिक साझीदार (स्ट्रैटेजिक पार्टनर) बना लें। साझीदारों की तलाश शुरू हुई। साझीदारों ने पहले कंपनी का मूल्यांकन कराने की बात कही। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनी बहाल हुई।

मूल्यांकन के दौरान मालिकों को पता चला कि 2 करोड़ निवेश वाली कंपनी तो आज कई करोड़ की हो गयी है। फिर यहीं से बात प्रभात खबर को बेच देने की चली। अमर उजाला, भास्कर, हिन्दुस्तान और जागरण समूहों ने बोली लगाई। सर्वाधिक बोली जागरण ने 64.5 करोड़ की लगाई। हरिवंश जी इस बीच मालिकों से कई बार लड़-झगड़ चुके थे कि इसे न बेचा जाये। जब यह तय हो गया क़ि प्रभात खबर अब जागरण का हो जाएगा, जिसकी भनक तक हरिवंश जी को नहीं थी, इसलिए कि मालिकों के साथ वह दिल्ली में बैठे थे। मालिकों ने भरोसा दिया था कि भास्कर से बात पक्की हो गयी है। डील फाइनल होने वाला है।

उधर कोलकाता में उषा मार्टिन के दफ्तर में जागरण के फेवर में डीड का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था। वहीं से मुझे उस आदमी ने सूचना दी कि जागरण प्रकाशन लिमिटेड के नाम से ड्राफ्ट तैयार हो रहा है। तब मैने एसएमएस से हरिवंश जी को सूचना दी। सुन कर वह हतप्रभ हुए। इस बात पर कि मालिको ने सुबह तक उन्हें यही बताया था कि भास्कर के साथ डील पक्की हो गयी है। मेरी सूचना पर वह लौट आए राँची।

तब कार्यकारी संपादक के रूप में एडिटोरियल में समूह का काम उनकी सलाह से मैं ही देख रहा था। यानी हैसियत में नंबर 2। हमने उनसे कहा कि एक बार मालिकों से मीटिंग करा दें। अनमने ढंग से उन्होंने यह संदेश मालिक तक भिजवा दिया। वे राजी हो गये। मैंने जमशेदपुर से अनुज सिन्हा को बुलाया। मीटिंग तय हुई। साथ जाने वालों में विजय पाठक, अनुज सिन्हा, विनय भूषण और विजय बहादुर भी थे। हरिवंश जी, दत्ता जी (आरके दत्ता) और गोयनका जी (केके गोयनका) भी गये थे। जाने से पहले पंडित-ज्योतिषी की सलाह पर किसी ने पान खाया तो किसी साथी ने आईने में अपना चेहरा देखा। सारे टोटके कर हम लोग निकले।

मालिक राजीव झवर ने साफ कहा कि मीडिया हमारा कोर बिजनेस नहीं है। हर आदमी अपने कोर बिजनेस  में जा रहा है। उसी वक़्त टाटा ने ब्रिटेन में अपनी औकात से छह गुनी बड़ी स्टील कंपनी को खरीदा था। हालांकि अब वह कंपनी बिक गयी है शायद।  सबने अपनी बातें (हरिवंश जी, दत्ता जी और गोयनका जी को छोड़ कर) बड़ी विनम्रता से रखी। मैने भी अपने स्वभाव के अनुकूल कहा था कि टाटा ने अपनी औकात छह गुनी बढ़ाई तो प्रभात खबर क्यों नही बढ़ा सकता। जब 2 करोड़ की पूंजी दो दशक में 100 कारोड़ प्रभात खबर कर सकता है तो इसको भी तो कोर बिजनेस बनाया जा सकता है।

बिना किसी नतीजे के मीटिंग ख़त्म हो गयी। सबकी साँसें एक माह से अटकी थीं। दूसरे दिन हरिवंश जी आए, लंबा पत्र मालिकों को लिखा और चेतावनी दी कि जागरण के हाथ बेचा तो यह पत्र मेरा इस्तीफ़ा समझा जाए। मुझे पढ़ाया और मेल भिजवा दिया। बत्ती बुझाई और घर चले गये, यह कह कर कि अब तुम लोगों को जो करना हो करो।

संपादकीय में तब उनके बाद मेरा ही नंबर था। मैंने सबकी बैठक बुलाई और तय हुआ कि अख़बार के दफ़्तर में किसी दूसरे को घुसने नही देंगे और किसी कीमत पर अख़बार बंद नहीं होने देंगे। तब यह माना गया था कि खरीदने वाला मालिक इसे बंद कर देगा और अपने अखबार को प्रमोट करेगा। इसी बीच मैने सबको सुझाया कि मलिक को एक एसएमएस करें- प्लीज़ डू नॉट सेल पीके।

वापस सभी अपनी जगह लौट गये। मैं भी अपने कमरे में मुंह लटकाये आकर बैठ गया। आधे घंटे के अंदर दत्ता जी, जो ग्राउंड फ्लोर पर बैठते थे, दौड़े आए और मुझे नीचे चलने को कहा। मैं उनके साथ भागा। मन में कई सवाल पल भर में तिर गये थे। खैर, वह अपने कमरे में ले गये, दरवाजा बंद किया और कहा कि बसंत बाबू (तब वह चेयरमैन थे) आप से बात करेंगे। फ़ोन मिलाया और मुझे थमा दिया। औपचारिक हालचाल पूछने के बाद बसंत बाबू ने कहा कि अश्क जी, हम लोगों ने तय किया है कि प्रभात खबर को नही बेचेंगे। जितने पैसे की ज़रूरत होगी, देंगे। मैने कहा कि यह घोषणा अगर राजीव बाबू (राजीव झवर) आकर कर दें तो बढ़िया होगा।

तब तक यही मान रहा था कि हैंडओवर के लिए राजीव बाबू राँची में ही हैं। इस पर उन्होंने कहा कि चेयरमैन की बात पर आपको भरोसा नहीं है। मैने क्षमा के साथ कहा कि आपका सम्मान करता हूँ। राजीव बाबू की बात इसलिए कही कि लोगों का मालिकों और कंपनी के प्रति लगाव और बढ़ता। तब उन्होंने बताया कि राजीव बाबू उनके पास ही बैठे हैं। उनसे ही हम लोगों की बातों की जानकारी मिली है। फिर राजीव बाबू से बात भी कराई।

खुशी तो हुई, पर साथियों को बताने में भय यह था कि कही यह धोखा तो नही। फिर भी मैने दोबारा बैठक बुला कर सबको बता दिया, इस टिप्पणी के साथ कि आपके मन में धोखे का भाव हो सकता है, पर जितना बसंत बाबू को जानता हूँ, उस पर मुझे भरोसा है। उस सुखद सूचना के बाद साथियों के चेहरे की रौनक और खुद के भीतर की खुशी सिर्फ महसूस की जा सकती है।

बहरहाल, मीटिंग से लौटते ही हरिवंश जी को फ़ोन किया तो बंद मिला। अंत में भाभी (उनकी पत्नी) के नंबर का ख़याल आया। उनको फ़ोन किया तो उन्होंने उठा लिया। मैने कहा कि भैया को दीजिए। मैंने उनको सारी बातें बताईं। पहले तो वह चौंके और एक ही बात को दो-तीन बार पूछा। मैंने यह भी कहा कि आप अपने सारे फोन आन कर दीजिए। शायद वे आप से बात करना चाह रहे होंगे।

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कुछ ही देर हरिवंश जी का फोन आया कि शाम में वे दफ्तर आ रहे हैं। शाम को वह दफ़्तर आए। मुझसे इतना ही कहा- अश्क, आज दो चीज़ों का अहसास हुआ। पहला यह कि भगवान होता है और दूसरा यह कि लड़ाई से ज़्यादा कामयाबी विनम्रता से मिल सकती है। कल तुम लोगों ने जितनी विनम्रता से अपनी बातें रखीं, उतना झगड़ कर भी मैं नहीं कह पाया। (मेरी शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक- मुन्ना मास्टर बने एडिटर- का एक अंश) 

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