- अरविन्द पाण्डेय
फटा जींस पहनने की स्वतंत्रता मूलतः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही एक रूप है। पर इसका उपयोग कई बार आदमी को हास्यास्पद बना देता है। कुछ दिन पहले रजनीश कुमार जी आए मिलने तो देखा कि उनका जींस घुटने पर फटा हुआ है। मुझे लगा, डॉक्टर की सलाह पर पहने हुए हैं क्या? क्योंकि कभी-कभी चर्मरोग में डॉक्टर लोग प्रभावित अंग को खुला रखने की सलाह देते हैं।
मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि ये फैशन चला है आजकल तो हम भी ख़रीद लिए थे। लेकिन इसे पहनकर जिससे मिल रहे हैं, वही चार सवाल ठोक दे रहा है। पहला सवाल होता है- क्या हुआ, आप भी ! मतलब मेरी हालत Julius Caesar के ब्रूटस की हो गयी है। जो भी मिलता है, यही कहता है “You too Rajnish”.
मैने कहा- “नहीं, नहीं ! ऐसा मत सोचिए। ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। आप जैसे चाहें अपनी अभिव्यक्ति कर सकते हैं। थोड़ा सा घुटना ही तो “अभिव्यक्त” हो रहा है। अब इतनी सी अभिव्यक्ति करने में लोगों को क्यों परेशानी होगी।” उस जींस की कीमत पूछने पर रजनीश जी ने बताया कि फटा हुआ जींस सामान्य जींस से अधिक कीमत पर बिकता है।
अध्ययन से यह पता अवश्य चलता है कि फटा हुआ जींस 3 प्रकार के लोग पहनते हैं- 1. जिन्हें अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अधिक प्रिय है और फटे जींस के अतिरिक्त अन्य किसी विधि से वे अपने को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। 2. जिनके पास इतना पैसा बलबलाया हुआ है कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि उस पैसे से क्या ख़रीदें। इसलिए अधिक कीमत देकर फटा हुआ जींस ही खरीद लेते हैं। 3. रजनीश जी जैसे लोग, जो शायद शाहरुख ख़ान जैसे किसी प्रेरक व्यक्तित्व वाले महनीय पुरुष के अनुसरण में अकारण ही फाटल जींस पहन लेते हैं और अनावश्यक प्रश्नों के शिकार बनते हैं। इसलिए फटे जींस पर फ़तवा देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है। इस पर कोई नैतिक निर्णय देने की आवश्यकता नहीं थी, न है ! (लेखक वरिष्ठ आपीएस अधिकारी हैं)