बंगाल में AIMIM और फुरफुरा शरीफ ममता का बिगाड़ेंगे खेल

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बंगाल के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नारा था 'जय हिन्द'। ममता ने उसे छोटा कर 'जॉय बांग्ला' बना दिया। मायने कि 'आमरा बंगाली बनाम बहिरागत।' इससे बढ़कर मूर्खता क्या होगी?
बंगाल के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नारा था 'जय हिन्द'। ममता ने उसे छोटा कर 'जॉय बांग्ला' बना दिया। मायने कि 'आमरा बंगाली बनाम बहिरागत।' इससे बढ़कर मूर्खता क्या होगी?
  • डी. कृष्ण राव

कोलकाता। बंगाल की राजनीति में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री और फुरफुरा शरीफ के साथ उनके तालमेल से ममता बनर्जी का खेल बिगड़ेगा। अब तो यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है। बंगाल की राजनीति में ओवैसी की एंट्री हो चुकी है। बिहार चुनाव में 4 सीटें जीतने के बाद AIMIM को आक्सीजन मिल गया है। AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने फुरफुरा शरीफ के मुखिया पीरजादा अब्बास सिद्दिकी से मुलाकात के बाद यह घोषणा की कि वे अब्बास सिद्दिकी में नेतृत्व में बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।

ओवैसी-पीरजादा की मुलाकात को तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता सौगत राय ने हल्के से लिया। उन्होंने कहा कि बंगाल के मुसलमान मतदाता तृणमूल कांग्रेस (TMC) से गद्दारी नहीं करेंगे। राज्य में केवल तृणमूल ने ही मुसलमानों को सामाजिक सुरक्षा दी है। तृणमूल की सरकार उनके हितों के बारे मे सोचती है। तृणमूल का यह भी आरोप है कि ओवैसी बीजेपी के एजेंट हैं और मुसलमान वोट में बंटवारा कर वे बीजेपी फायदा दिलाने के फिराक में हैं।

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इस पर ओवैसी ने पलटवार किया और कहा कि तृणमूल कांग्रेस ही बंगाल में बीजेपी को रोक नहीं पा रही है। उसके नेता खुद ही भाग रहे हैं। पिछले लोकसभा  चुनाव में बीजेपी ने 18 सीटें जीत कर  तृणमूल कांग्रेस को उसकी औकात का संदेश दे दिया था। ओवैसी का मानना है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस ने मुसलमानों को केवल वोटर के रूप में इस्तेमाल किया है।

दरअसल ओवैसी सिद्दिकी के नेतृत्व में इसलिए लड़ना चाहते हैं कि पिछले छह महीने में सिद्दिकी ने बंगाल के कम से कम छह जिलों में गांव-गांव में सभा कर संगठन खड़ा किया है। खासकर उत्तर व दक्षिण 24 परगना, नदिया, हावड़ा, हुगली व पूर्व बर्दवान अब्बास सिद्दिकी का गढ़ माना जा रहा है। अगले कुछ दिनों में सिद्दिकी नयी पार्टी के नाम की घोषणा कर सकते हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सिद्दिकी के संगठन फुरफुरा शरीफ के साथ गठबंधन कर चुनाव क्यों लड़ना चाहती है, इसका गणित समझना जरूरी है। राज्य में 30 प्रतिशत मुसलमान वोटरों में से 60 प्रतिशत बंगाली वोटर हैं, जो अब्बास सिद्दिकी के समर्थक हैं। बाकी 40 प्रतिशत अरबी मुसलमान हैं, जो AIMIM के समर्थक हैं। अगर दोनों गठबंधन कर चुनाव लड़ते हैं तो मुसलमान वोट नहीं बंटेगे। इससे मुसलमान बहुल इलाकों में उनका चुनाव जीतना आसान होगा। तृणमूल कांग्रेस के लिए यह सबसे बड़ा चैलेंज होगा। अब तक  ज्यादातर मुसलमान वोट पर तृणमूल का कब्जा रहा है।

बंगाल विधानसभा की 294 सीटों में से 140 सीटों फर मुसलमान वोटर 20 से 95 प्रतिशत तक हैं। अगर 140 सीटों पर लड़ाई चौतरफा होती है तो बंगाल का चुनाव काफी रोमांचक होगा। इसलिए कि बंगाल की 66 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान  मतदाता 20 से 40 प्रतिशत हैं। वहां लड़ाई अगर चौतरफा होती तो सबसे ज्यादा रोमांचक नतीजा इन सीटों पर  आएगा। अन्य 74 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान मतदाताओं की संख्या 40 से 95 प्रतिशत है। इन सीटों पर बंगाली मुसलमान व अरबी मुसलमान मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो चुनाव का नतीजा चौंकाने वाला होगा। पिछले छह महीने से अब्बास सिद्दिकी गांव-गांव में जलसा के माध्यम से मुसलमानों, खासकर युवाओं को गोलबंद करने की कोशिश करते रहे हैं। उनकी कोशिश रंग लाती दिख रही है।

आगामी एक सप्ताह बंगाल की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा। इसलिए कि अब्बास सिद्दिकी की नयी पार्टी की घोषणा होने वाली है। उसमें कौन-कौन शामिल होते हैं, वह देखना दिलचस्प होगा। अंदरखाने की खबर है कि कांग्रेस सीधा गठबंधन तो नहीं करेगी, लेकिन मुर्शिदाबाद, मालदा, 24 परगना की कई सीटों पर अपना उम्मीदवार नहीं उतार कर AIMIM व अब्बास सिद्दिकी के गठबंधन को समर्थन कर सकती है। इससे बंगाल में मुसलिम पहचान की राजनीति का जन्म हो सकता है।

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इसके पहले सिद्दिकुल्ला चौधुरी ने भी AIUDF बनाकर मुसलिम पहचान की राजनीति करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने केवल बांग्लाभाषी मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश की। इसीलिए वे अपने मिशन में फेल हो गये। बाद में ममता बनर्जी ने फुरफुरा शरीफ के पीरजादा तह्वा सिद्दिकी के साथ मिलकर सिद्दिकुल्ला चौधुरी को अपने कैबिनेट में जगह दे दी और मुसलिम पहचान की राजनीति पर विराम लगा कर उसे अपने पक्ष में मोड़ लिया।

बंगाल की चुनावी राजनीति के देखते हुए एक बात साफ हो गयी है कि लड़ाई चौतरफा होगा। यानी चुनावी मैदान में बीजेपी, तृणमूल कांग्रेस (TMC), वाम-कांग्रेस गठबंधन और असदुद्दीन ओवैसी की  AIMIM-फुरफुरा शरीफ गठबंधन मैदान में होंगे। AIMIM-फुरफुरा शरीफ गठबंधन सीधे-सीधे ममता बनर्जी के आधार को कमजोर करेंगे और हिन्दू वोटरों को ध्रुवीकृत करने में बीजेपी को कामयाबी मिल सकती है।

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इधर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी ने हाल ही में अपने-अपने सर्वे कराये हैं। बीजेपी के आंतरिक सर्वे के मुताबिक उसे 150 से 160 सीटें मिलने का अनुमान है। बीजेपी ने 200 सीटों का लक्ष्य रखा है। तृणमूल कांग्रेस से ही हाल ही बीजेपी में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी के मुताबिक लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 120 सीटों पर बढ़त मिली थी। यानी सरकार बनाने के लिए उसे और 30 सीटों की जरूरत पड़ेगी। दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ने भी एक सर्वे कराया है, जिसमें उसे 190 से 210 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। सर्वे में उसे 52 फीसद वोट शेयर का अनुमान है। इस बीचे ओबैसी की AIMIM-फुरफुरा शरीफ गठबंधन ने आकार ले लिया है। अब इसका किस पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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