बिहार को माडल बनानेवाले नीतीश कोरोना काल में मात खा गये

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नीतीश कुमार के बदले अंदाज और उनकी चुप्पी से बिहार की सियासत में सस्पेंस पैदा हो गया है.
नीतीश कुमार के बदले अंदाज और उनकी चुप्पी से बिहार की सियासत में सस्पेंस पैदा हो गया है.

ओमप्रकाश अश्क

  • ओमप्रकाश अश्क

पटना। बिहार को बतौर बिहार को पेश करने वाले नीतीश कुमार कोरोना काल के दौरान मात खा गये। अपने कामकाज की शैली से उन्होंने जगहंसाई करा ली। संकट की घड़ी में जब हर सूबे के मुख्यमंत्री अपने लोगों को दूसरे राज्यों से लाने की जुगत कर रहे थे तो नीतीश कुमार जो जहां है, वहीं रहे का राग अलाप रहे थे। बाहर फंसे लोगों के खाते में हजार रुपये की सहायता राशि भेजने की अपने अफसरों की सलाह पर अव्यावहारिक तकनीक अपना रहे थे। इधर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने सबसे पहले अपने लोगों को बसें भेज कर वापस बुला लिया। पड़ोस का झारखंड लगातार केंद्र से ऐसा करने की छूट मांग रहा था। लेकिन अपने कई उम्दा कामों से बिहार को माडल के रूप में पेश करने वाले नीतीश कुमार केंद्र के गाइडवलाइन के आज्ञाकारी पालक बने हुए थे।

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हैरत तो इस बात पर है कि गैर भाजपा शासित राज्य झारखंड के युवा और नीतीश से कम राजनीतिक अनुभव रखने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्र लिख कर न सिर्फ केंद्र की दोरंगी नीति की संयमित भाषा में आलोचना की, बल्कि केंद्र सरकार को शालीन तरीके से आग्रह कर स्पेशल ट्रेन चलाने पर मजबूर कर दिया। ट्रेन के जरिये अपने लोगों को बुलाने में कामयाबी भी हासिल कर ली। सबसे पहले स्पेशल ट्रेन प्रवासी मजदूरों को लेकर झारखंड ही पहुंची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत ने तो यह भी घोषणा कर दी कि सरकारी खर्च से सबको बुलाएंगे और जांच के बाद उन्हें घर तक सुरक्षित पहुंचाएंगे। जरूरत पड़ी तो प्लेन से विदेशों में रहने वाले लोगों को भी बुलाएंगे।

यह अलग बात है कि बिहार और दूसरे राज्यों को भी इसका लाभ मिला, लेकिन पहली बाजी झारखंड ने ही मारी। ऐसा इसलिए हुआ कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अधिकारियों के साथ-साथ सभी दल के नेताओं, विधायकों-सांसदों से इस पर लगातार चर्चा करते रहे। पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने दो बार के वीडियो कान्फ्रेंसिंग में जब हेमंत सोरेन से न खैरियत पूछी और न बात की तो हेमंत ने दूसरे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के बाद पीएम को पत्र लिखा। उसमें शालीन तरीके से उन्होंने अपने प्रवासी झारखंडियों की पीड़ा का इजहार किया। इस बीच ऐप के जरिये उन्होंने प्रवासी लोगों के डाटा जुटाने शुरू कर दिये थे। शायद यही वजह रही कि बिना किसी शोरगुल के चुपचाप पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन झारखंड के लिए ही रवाना हुई।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन की तत्परता और तन्मयता देखिए कि उन्होंने स्टेशन पर यात्रियों के उतरने से लेकर, उनकी जांच और घर तक भेजने की न सिर्फ व्यवस्था की, बल्कि आगमन के पहले स्टेशन पर तैयारियों का जायजा लिया और ट्रेन पहुंचने के  वक्त देर रात वह हटिया स्टेशन पर मौजूद भी रहे। यह अलग बात है कि सरकार ने किराया देने का वादा किया था, लेकिन आने वाले यात्री बताते हैं कि वे टिकट के पैसे देकर आये। किराये का विवाद सिर्फ झारखंड तक ही सीमित नहीं रहा। यह मुद्दा केंद्रीय बन गया। रेलवे ने कहा कि उसने 85 फीसदी किराये में छूट दी और 15 प्रतिशत राज्य वहन कर रहे हैं। राज्य सरकार पूरा किराया चुकाने की बात कह रही है। लेकिन यात्री खुद से किराया चुकाने की बात कह रहे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश ने कोरोना काल में खुद को आवास तक सीमित कर लिया है। सारी बैठकें, समीक्षा और निर्देश देने का काम वे वहीं से निपटा रहे। अधिकारियों पर उनका भरोसा आरंभ से रहा है, इसलिए अधिकारी जो उन्हें सिखाते-बताते हैं, वे वही काम करते हैं। अभी तक वे राशन कार्ड ही बनवा-बंटवा रहे हैं, जबकि झारखंड ने पहले लाक डाउन के वक्त से ही यह ऐलान कर दिया कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें भी आवेदन के आधार पर राशन दिया जाये। इसकी सख्त मानीटरिंग भी सुनिश्चित की। गरीबों के लिए राज्यभर में हजारों दाल-भात केंद्र खोलवाए, जहां जरूरतमंद मुफ्त में भोजन कर रहे हैं। एनजीओ और फिलवक्त विपक्ष में बैठी भाजपा के नेताओं ने भले ही मोदी के नाम पर भोजन की व्यवस्था की, फिर भी यह कह कर इसकी कोई आलोचना हेमंत सोरेन ने नहीं की कि इस संकट काल में भाजपा राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है।

कोटा, बेंगलुरु, केरल, आंध्रप्रदेश से झारखंड के लोगों को लेकर कई ट्रेनें आ चुकी हैं या रवाना हो चुकी हैं। बिहार में एक-दो ट्रेनें आईं भी तो उसमें आये लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए न मुख्यमंत्री नीतीश घर से निकले और न भाजपा कोटे से बने उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी। घरों से ही दोनों की बयानबाजी चलती रही। झारखंड में कोरोना को लेकर को लेकर उतनी राजनीतिक बहसबाजी नहीं हुई, जितनी बिहार में। जब नीतीश ने बाहर फंसे बिहारियों को लाने को असंभव और अव्यावहारिक बताया तो पप्पू यादव और तेजस्वी यादव बसें देने की घोषणा करने लगे। कांग्रेस ने तो ट्रेन का किराया देने तक की पेशकश कर दी। आखिरकार नीतीश कुमार की भी जुबान खुली और उन्होंने घोषणा की कि लौटने वाले लोगों को किराया समेत अधिकतम एक हजार रुपये देंगे। यानी नीतीश ने वह सब कुछ किया, लेकिन जगहंसाई कराने के बाद।

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आमतौर पर जब कोई बड़ी आपदा-विपदा आती है तो मुख्यमंत्री सर्वदलीय बैठक करते हैं। नीतीश ने सर्वदलीय बैठक भी की तो सारी किरकिरी कराने के बाद। अब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि राहत के तौर पर किये जा रहे सरकारी कामों में विधायकों-सांसदों की सलाह भी लेनी जरूरी है। उन्होंने अधिकारियों को आदेश अब जाकर दिया है। इसमें भी तेजस्वी यादव ने बाजी मार ली। उन्होंने खुली पेशकश कर दी कि लाक डाउन खत्म होने के बाद नीतीश जी घर से निकलिए। हम भी साथ चलेंगे। उन्होंने हामी भी भर दी। इसके राजनीतिक मायने अलग निकाले जाने लगे हैं।

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