- सुशील मिश्रा
लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग के चक्रव्यूह में जनता फंसी है। कोरोना बेकाबू हो रहा है। कोरोना को सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन से रोकने की कोशिश बेमानी लग रही है। बीमारी बढ़ती ही जा रही। कोरोना से ग्रसित लोगों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की सफलता पर सवाल उठ रहे हैं। इतना ही नहीं, वायरस के फैलने के बारे में आईसीएमआर की ओर से 23 अप्रैल को जारी आंकड़े और उस ग्राफ पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। उसके दावे लॉकडाउन के 43वें दिन तब गलत होता दिखा, जब 6 मई को एक ही दिन में 195 लोगों की मृत्यु तथा 3900 लोग बीमार हुए।
वैसे, इस बात पर विवाद हो सकता है कि दोनों का लोगों ने सही तरीके से पालन किया या नहीं तथा केंद्र इन्हें लागू करने या कराने में कितना सफल रहा? लेकिन एक बात स्पष्ट है कि केंद्र ने राज्यों पर लॉकडाउन थोप तो जरूर दिया, परन्तु उसके पास इससे निकालने के रास्ते और तरीके नहीं दिख रहे। उल्टे संकेत दे रहे कि स्थिति से निपटने और इससे बाहर निकलने के उपाय राज्यों को ही करना होगा, क्योंकि अनिश्चितकाल तक लॉकडाउन नहीं चल सकता। इससे राज्यों की हालत बदतर होती जा रही तथा जनता में भी असंतोष बढ़ रहा है।
लॉकडाउन के 36वें दिन 73 मौत और 1800 से अधिक संक्रमण ने आईसीएमआर के उस दावे पर भी सवाल उठा दिया, जिसमे उसने 24 अप्रैल को दावा किया था कि संक्रमण दर का ग्राफ फ्लैट हो रहा। मात्र एक सप्ताह बाद ही 6 मई को मृत्यु और संक्रमण करीब 3 गुना बढ़ गया। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और दिल्ली के हालात सबसे बदतर हैं। बंगाल व पंजाब राज्य भी खराब संकेत दे रहे। ऐसे में इस बात की उम्मीद काफी कम है कि Corona की दवा या टीका नहीं बनने तक हालात में कोई चमत्कारी सुधार होगा।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान में भी हालात अच्छे नहीं दिख रहे। देश में पीड़ितों की संख्या 45000+ तथा मृतकों की संख्या 1568+ तक पहुंच गई है, जो आने वाले संकट को दर्शाने के लिए काफी हैं। केवल 6 दिनों में 10000 से अधिक लोग बीमार हुए, जबकि 631 से अधिक लोग मृत हुए हैं। मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन का यह दावा भी सही नहीं लगता कि कोविड 19 से पीड़ितों का ग्राफ ऊपर जाने के बजाय फ्लैट हो रहा है।
यह भी पढ़ेंः रोटियां जुगाड़ने-सहेजने का वक्त है यह, जानिए क्यों और कैसे
वर्तमान हालात में इतना ही कहा जा सकता है कि एक तरफ जहां केंद्र स्थिति की भयावहता को समझ पाने में नाकाम रही, वहीं उसका यह अनुमान भी गलत साबित रहा कि लॉकडाउन करके संक्रमण को रोका जा सकता है। लॉकडाउन का कठोरता से पालन नहीं करा पाने की जिम्मेवारी से राज्यों को भी संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता है। इतना ही नहीं, सरकार को बीमारी के बारे में अवगत करा रही संस्था आईसीएमआर की विश्वसनीयता भी खतरे में है, क्योंकि पीड़ितों के ग्राफ का फ्लैट होने का दावा गलत साबित हो रहा है, भले ही केंद्र इसे स्वीकार न करे। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि लॉकडाउन के माध्यम से जनता अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में तो घुस गई है, लेकिन इससे निकलने के रास्ते फिलहाल उसे नहीं दिख रहे।
यह भी पढ़ेंः कोविड-19 के सुपर हीरो का जब हो साथ तो चिंता की क्या बात