- अनूप नारायण सिंह
आंखों में आंसू, लिखते समय कांपते हाथ, विचलित मन और विचार शून्यता। आखिरकार हम इस बहन को नहीं बचा सके और हमारी तीस्ता हमेशा के लिए खामोश हो गई। वीर रस की वह बुलंद आवाज और अपनी भाव-भंगिमा से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बाबू वीर कुंवर सिंह की विजय गाथा के माध्यम से बिहार की माटी का मान बढ़ा रही थी।
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17 वर्ष की आयु जाने की कोई उम्र होती है। तुम नहीं गई हो तीस्ता, तुम्हारे साथ हम सबके सपने, अरमान और वे सभी भावी योजनाएं भी विलीन हो गईं, जो हम सब ने सम्मिलित रूप से भोजपुरी के उत्थान के लिए देखा-सोचा था। हम तुम्हारे दोषी हैं बहन कि हम सब सजग रहते हुए उस व्यवस्था की क्रूरता के शिकार हो गए, जो तुम्हें मौत के आगोश तक ले गयी। हम जब तक जगे, तब तक तुमने आंखें मूंद लीं। जब तुम इलाज के लिए आई थी और तुम्हारा गलत इलाज हो रहा था, दवाओं का ओवरडोज दिया जा रहा था, तब तक हम सभी सोए थे। काश, हम सब ससमय जग गए होते तो आज तुम्हें नहीं सोना पड़ता। तुम नहीं जा सकती तुम हमेशा हमारे दिलों दिमाग और जेहन में जिंदा रहोगी।
तीस्ता ने 26 जुलाई को अपने फेसबुक वॉल पर बहुत ही मार्मिक पोस्ट अपने पिता और संगीत गुरु उदय नारायण सिंह के लिए लिखा था कि पिता के चेहरे की झुर्रियां बेटे-बेटियों की सफलता की कहानियां गढ़ती हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी बेटी हूं और हर एक जन्म में मैं आपकी बेटी बनना चाहती हूं।
मूल रूप से छपरा के रिविलगंज इलाके से आने वाली तीस्ता के पिता उदय नारायण सिंह भोजपुरी संगीत के मर्मज्ञ हैं। उन्होंने भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्र की परंपरा को जिंदा रखा है। तीस्ता के माध्यम से वह भोजपुरी को एक नई विधा बाबू वीर कुंवर सिंह विजय गाथा के रूप में दे चुके थे। 10 दिन पहले जब वह बुखार से पीड़ित हुई थी, उसे बेहतर इलाज के लिए पटना के एम्स में भर्ती कराया गया था। जहां उसकी बीमारी डॉक्टरों को समझ में नहीं आ रही थी। डेंगू का इलाज चल रहा था। दवाओं का ओवरडोज दिया जा रहा था। इस कारण तीस्ता की स्थिति बिगड़ती गई और अंततः विगत 4 दिनों से जीवन और मौत की जंग में वह आज हार गई। और, साथ ही हार गईं वे सभी संभावनाएं, जिसमें हम सब ने भोजपुरी को एक नई विधा, एक नई परंपरा का सपना दिखाया था।