संकल्प शक्ति का प्रतीक पर्व हरतालिका तीज 12 सितंबर को

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  • नंदकिशोर सिंह

संकल्प शक्ति का प्रतीक और अखंड सौभाग्य की कामना का परम पावन व्रत हरतालिका तीज हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है।

इस बार तीज पर्व 12 सितंबर बुधवार दिन को पड़ रहा है। उत्तर भारत में हर सुहागन यह पर्व मनाती है। उपवास रख कर पति की मंगल कामना करती है। कहीं-कहीं कुंवारी कन्याएं भी तीज का व्रत रखती हैं।

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हर सुहागन अपने पति की लंबी आयु के लिए और कुंवारी कन्या अपने मनोनुकूल पति प्राप्त करने के लिए यह व्रत करती हैं। हर भगवान भोलेनाथ का ही एक नाम है और चूँकि शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां पार्वती ने इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ गया।

इस व्रत के शुभ अवसर पर सुहागन महिलाएं नये लाल वस्त्र पहन कर मेहंदी हाथ और पैरों में लगाकर सोलह श्रृंगार करती हैं और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा आरंभ करती हैं। इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक पापों को हरने वाले हरतालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सुहाग की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। शिवपुराण की एक कथा अनुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। हरतालिका तीज व्रत बड़ा ही कठिन नियमों वाला व्रत होता है। ज्यादातर स्त्रियां इस व्रत को निर्जला ही रखती है। इस दिन सुहागन महिलाएं कठोर तप और पूजा से भगवान शिव को प्रसन्न करके अपने लिए अमर सुहाग का वरदान मांगती है।

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