सरकारी आवास का स्वाद जिन्होंने चखा, वे छोड़ना नहीं चाहते

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अवकाशप्राप्त न्यायाधीश सी.एस. कर्णन हमेशा विवादों में रहे हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट में रहते उनके फैसले पर इस कदर विवाद हुआ कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा। अब उन्होंने नौकरी के दौरान मिले सरकारी फ्लैट को छोड़ने की शर्त रख कर फिर विवाद खड़ा कर दिया है। उनके इस फैसले पर पेश है वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर की टिप्पणी

सरकारी आवास में अवैध तरीके से बने रहने का ऐसा तर्क आपने पहले कभी नहीं सुना होगा! कलकत्ता हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त जज सी.एस. कर्णन ने  हाल में यह कहा है- ‘मैं सरकारी फ्लैट तब तक नहीं छोड़ूंगा, जब तक उस फ्लैट से दिए गए मेरे आदेश का पालन नहीं होता।’

अब जानिए कि वह आदेश क्या था। जब सेवारत थे तो कर्णन साहब ने अपने उसी फ्लैट को ‘काम चलाऊ’ कोर्ट का रूप देकर सुप्रीम कोर्ट के आठ न्यायाधीशों के खिलाफ आदेश पारित कर दिया था। याद रहे कि हाईकोर्ट के जज को किसी भी स्थान को मेक शिफ्ट कोर्ट में परिणत करके सुनवाई करने का अधिकार है। कई दशक पहले पटना हाई कोर्ट के जज ने बोरिंग रोड चैराहे पर कोर्ट लगा कर एक मंदिर के बारे में आदेश पारित कर दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से छह माह की सजा काट कर कर्णन साहब जेल से रिहा हुए हैं। खैर, कर्णन साहब तो कर्णन साहब ही हैं, पर ऐसे मामले में दिल्ली व पटना के अनेक बड़े नेताओं के बोगस तर्क सुने-पढ़े हैं।

नेता तो नेता,कुछ पत्रकारों का भी यही हाल है जो पूरे समाज को उपदेश देते नहीं थकते ! कुछ दशक पहले दिल्ली के एक अत्यंत सम्मानित पत्रकार ने पद्मश्री तक लेने से इनकार कर दिया था। क्योंकि उस केंद्र सरकार की नीतियों से उनका मेल नहीं था।पर जब उन्हीं महाशय से सरकारी मकान खाली करने के लिए कहा गया तो वे अदालत पहुंच गए। अदालत से हार गए तभी मकान छोड़ा। शहरी इलाके में सरकारी मकान का ऐसा लोभ होता है।

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