पटना। राज्यसभा में दूसरी बार बिहार से जेडीयू के टिकट पर जा रहे पत्रकार से राजनीतिज्ञ बने हरिवंश ने बतौर पत्रकार तकरीबन दो दर्जन देशों की यात्रा की है। पर्चा दाखिले के वक्त दिये हलफनामे में उन्होंने लिखा है- सांसद बनने के बाद कई देशों की यात्रा की।
उपसभापति बनने के बाद कई देशों की यात्रा में भारत का प्रतिनिधित्व और भारतीय संसदीय मंडल का भी नेतृत्व किया। इन देशों में मुख्य रूप से यूएसए, ब्रिटेन, रूस, चीन, मैक्सिको, ब्राजील, इथियोपिया, तंजानिया, मॉरीशस, जापान, मलेशिया, वियतनाम, इटली, सूरीनाम, सिंगापुर, हांगकांग, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया, स्वीडन, दोहा, कनाडा, जापान आदि शामिल हैं।
लिखित व संपादित किताबें
उन्होंने बिहार, झारखंड, पत्रकारिता, यात्रा वृत्तांत आदि मिलाकर करीब 15 किताबों का लेखन-संपादन किया है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से संबंधित उनकी जेल डायरी व संवाद श्रृंखला की छह पुस्तकों का संपादन भी किया। Chandrashekhar : The Last Icon Of Ideological Politics उनकी अद्यतन किताब है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल किया था।
सम्मान/ पुरस्कार
पत्रकारिता व हिंदी में योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार व सम्मान हरिवंश को मिले। इनमें भारतीय पत्रकारिता विकास परिषद, कोलकाता द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान, माधव राव सप्रे संस्थान द्वारा प्रथम माधव राव सप्रे पुरस्कार, जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में आयोजित नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान हिंदी के प्रति उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान आदि शामिल हैं। हरिवंश के पिता का नाम स्वर्गीय बांके बिहारी सिंह और माता का नाम: स्व. देवयानी देवी है। पत्नी का नाम आशा सिंह है। उन्हें दो संतान है- एक बेटा, एक बेटी।
व्यक्तिगत तौर पर किसी से न कोई विवाद है, न मुकदमा
हरिवंश ने हलफनामे में लिखा- व्यक्तिगत तौर पर किसी से न कोई विवाद है, न मुकदमा। मेरे उपर सभी मामले प्रधान संपादक के रूप में लगभग अखबार में रहने के दौरान, खबरों के छपने के कारण मानहानि से जुड़े हैं। उनमें से कुछ मनीसूट हैं, कुछ सिविल सूट और कुछ मानहानि के अन्य धाराओं से जुड़े हैं। अंगरेजों के समय का कानून है कि कोई खबर छपी तो प्रिंटर, पब्लिशर और एडिटर पर एक साथ मुकदमे होते हैं। हालांकि अखबारों में यह नियमित छपता है कि पीआरबी नियम के तहत मुख्य या प्रधान संपादक जिम्मेवार नहीं होते, फिर भी लोग किसी का नाम दे सकते हैं।
2014 से पहले के इस तरह के मामलों का उल्लेख मैंने तब सांसद बनते हुए किया था, इस बार भी किया। अब उच्चतम न्यायालय के निर्देश के तहत चुनाव आयोग का आदेश है कि इसे मीडिया में विज्ञापित भी किया जाए। यह अच्छी बात है। पर, मानहानि के जो मामले 1997 से अदालतों में पड़े हैं, उनका डिस्पोजल न होना, यह कौन देखेगा? जो मामले मानहानि के- लगभग 10- खत्म हो चुके हैं, उनका भी विवरण अपनी सूची में डाला, जो कानूनन आवश्यक नहीं था। पर सार्वजनिक जीवन में हूं, जिस पार्टी में हूं, उसकी सार्वजनिक जीवन को स्वच्छ और शुचितापूर्ण बनाने में यादगार भूमिका को देखते हुए मैंने अतीत से लेकर अब तक सभी मामले को सार्वजनिक किया।
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