हरिवंश ने अपने दायित्वों का निर्वाह किया, शोध रिपोर्ट में दावा 

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हरिवंश, राज्यसभा के उपसभापति
हरिवंश, राज्यसभा के उपसभापति
हरिवंश ने राज्यसभा के उपासभापति की हैसियत से कृषि विधेयक पारित करने के दौरान जो कदम उठाया, उसे एक शोध रिपोर्ट में उचित ठहराया गया है।
  • कृपाशंकर चौबे

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पीएच.डी. शोधार्थी देवेंद्रनाथ तिवारी ने 20 सितंबर 2020 को राज्यसभा में कृषि बिल पर हुई चर्चा/बहस/सवाल/विवाद की वस्तुस्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है।  जिन्होंने संसद की गरिमा, मर्यादा और संसदीय परंपरा को तार-तार किया, उन्हें दोषी ठहराने की बजाय चेयर पर ही सवाल खड़े करने के निहितार्थ जानने के लिए यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण है। उस दिन की संसदीय कार्यवाही का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से अब अखबारों में और मीडिया के अन्य माध्यमों में भी अनेक तरीके से आ चुका है। तथ्य खुद निष्कर्ष तक पहुंचा देते हैं कि उस दिन राज्यसभा में यह सब करने के पीछे किसकी क्या मंशा थी?  उस दिन एक घंटे, एक मिनट में क्या हुआ? कैसे-कैसे और किन-किन लोगों ने, क्या-क्या किया? मिनट टू मिनटः

12.56 बजे : केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने कृषि संबंधित दोनों बिल पर जवाब शुरू किया।

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01.01 बजे: चार सांसद जयराम रमेश, संजय सिंह, डोला सेन और अर्पिता घोष सदन के वेल में पहुंची. सेक्रेटेरियट टेबल के पास पहुंचकर हंगामा करने लगे. ये चारों सांसद चेयर की अनुमति के बिना वहां तक पहुंचे थे और कोविड 19 में जारी सभी आवश्यक दिशा-निर्देश और सोशल डिस्टैंसिंग के नियम की अवहेलना कर हंगामा शुरू किया।

01.02 बजे: सदन में जब चेयर की अनुमति से प्रतिपक्ष के नेता अपनी बात रखने लगे, तब ये चारों सांसद अपनी जगह पर वापस गये।

01.03 बजे: फिर पांच सांसद सैयद नसिर हुसैन, संजय सिंह, डोला सेन, अर्पिता घोष, राजीव सातव चेयर की इजाजत के बिना वेल में घुसे और हंगामा करने लगे।

01.04 बजे: हंगामा करने के साथ ही संजय सिंह ने दूसरे सदस्यों को वेल में बुलाना शुरू किया, ताकि वे भी हंगामा में उनका साथ दें।

01.05 बजे: सभी पांचों सदस्य ट्रेजरी बेंच के सामने, दायीं ओर से बढ़ने लगे। डोला सेन केंद्रीय कृषि व कृषक कल्याण मंत्री के सामने खड़ी हो गयीं।

01.06 बजे: पांच और संसद सदस्य रिपुन बोरा, प्रताप सिंह बाजवा, पीएल पुनिया, श्रीमती छाया वर्मा, अखिलेश प्रसाद सिंह, केके रागेश और जयराम रमेश चेयर की अनुमति के बिना वेल में आ गये।

01.08 बजे: डेरेक ओ ब्रायन चेयर के पास पहुंचे और रूल बुक को फाड़ डाला।

01.09 बजे : डेरेक ओ ब्रायन ने चेयर के टेबल की बायीं ओर से कुछ दस्तावेज छिनने की कोशिश की। मार्शल ने उन्हें रोका ने तो मार्शल से दुर्व्यवहार किया। रिपुन बोरा ने सेक्रेट्री जनरल के टेबल से कागजात लेकर हवा में उछाला। चेयर पर रूल बुक फेंका गया।

01.10 बजे : जब सदन में हंगामा चल रहा था, डेरेक ओ ब्रायन महासचिव की सीट के पीछे खड़े हो गये।

01.10 बजे: जयराम रमेश और रिपुन बोरा ने चेयरमैन की टेबल पर रखे संसदीय प्रक्रिया के कागजात छीनने-झपटने की कोशिश की।

01.11 बजे : तिरुचि शिवा भी जयराम रमेश के पास पहुंचे। चेयर की बाईं ओर। उन्होंने मार्शल के फेसशिल्ड, जो कोरोना बचाव के लिए लगाया था, छीनकर फेंका।

01.11 बजे: डेरेक ओ ब्रायन दाहिनी ओर से पुन: चेयर के पास पहुंचे और रोकने पर चेयर की ओर झुके और चेयर की ओर पीठ कर खड़े होकर हंगामा करने लगे।

01.13 बजे: तीन सांसद इलमारम करीम, रिपुन बोरा और सैयद नसीर हुसैन चेयरमैन की टेबल पर लगे माइक को ध्वस्त किया और उसे तोड़ दिया।

01.14 बजे: विनय विश्वम भी इस विरोध और हंगामा में शामिल हुए।

01.15 बजे: इलमारम करीम और सैयद नसीर हुसैन सेक्रेट्री जनरल की सीट के पीछे खड़े हो गये।

01.15 बजे : केके रागेश ने टेबल पर रखी हुई किताबों व रजिस्टर को उठाने,पटकने की कोशिश की, जिसे मार्शल ने बचाया।

01.18 बजे: तिरुचि शिवा ने कागजातों को सदन के टेबल पर फेंका।

01.19 बजे: दो और सांसद बी लिंगैया यादव और शक्ति सिंह गोहिल भी इस हंगामे में शरीक हो गये।

01.20 बजे:  संजय सिंह और रिपुन बोरा ने सेक्रेट्री जनरल के टेबल पर जोर-जोर से हाथ पटकना शुरू किया।

01.21 बजे: डा के केशवराव ने मोबाइल से इस पूरे दृश्य को मोबाइल में रिकार्ड करना शुरू किया। मार्शल और सुरक्षाकर्मी ने ऐसा करने से मना किया।

01.22 बजे:  जयराम रमेश ने पुन: मार्शलों को धक्का देते हुए चेयरमैन टेबुल के पास पहुंचने की कोशिश की।

01.22: जोगिनीपल्ली संतोष कुमार और के आर सुरेश रेड्डी भी हंगामे में शरीक हुए।

01.23 बजे: सैयद नसीर हुसैन ने शपथ के लिए लगे माइक को तोड़ा।

01.24 बजे: सैयद नसीर हुसैन, संजय सिंह और रिपुन बोरा ने साथ-साथ सेक्रेट्री जनरल की टेबल को पीटना शुरू किया।

01.26 बजे : सदन स्थगित

01.41 बजे: केके रागेश, सैयद नसिर हुसैन, रिपुन बोरा,संजय सिंह ने चेयर तक पहुंचने के लिए आक्रामक रूप से सुरक्षाकर्मियों और मार्शल को धक्का देना शुरू किया।

01.44 बजे: संजय सिंह सदन में टेबुल पर बैठ गये। मार्शल ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की। अंतत: मार्शल ने उन्हें हटाया।

01.45 बजे: 30 सेकेंड बाद संजय सिंह सदन में रखे टेबुल पर खड़े हो गये। साथ ही सैयद नसिर हुसैन, राजीव सातव भी टेबुल पर चढ़े। इन तीनों को मार्शलों ने उतारा।

01.46 बजे: इलमारम करीम ने ‘मिनट्स बुक’, जो सदन के टेबुल पर रखा जाता है, उठाकर फेंका।

01.47 बजे: सैयद नसीर हुसैन पुन: ताकत लगाकर चेयर तक पहुंचने की कोशिश करने लगे। मार्शल ने उनके प्रयास को विफल कर दिया।

01.52 बजे: सैयद नसिर हुसैन, रिपुन बोरा, राजीव सातव ने सुरक्षाकर्मियों और मार्शलों को धक्का देने और आक्रामक रूप से आगे बढ़कर चेयर तक पहुंचने की कोशिश की। तीनों सांसद चेयर तक पहुंचने की कोशिश करते रहे, मार्शलों ने उनके प्रयास को विफल किया।

01.53 बजे : केके रागेश ने चेयर की दायीं ओर से फिर से आक्रामक ढंग से चेयर तक पहुंचने की कोशिश की। मार्शलों ने उनके प्रयास को विफल किया।

01.57 बजे: इलमारम करीम ने कुछ कागज और दस्तावेजों को हवा में उछाला।

01.57 बजे: धीरज प्रसाद साहू को मोबाइल से रिकार्डिंग करते हुए देखा गया। उन्हें मना किया गया।

01.57 बजे : सदन स्थगित।

राज्यसभा में उपसभापति एक संवैधानिक पद है। ‘राज्यसभा एट वर्क’ किताब में पृष्ठ 90 से 96 तक विस्तार से राज्यसभा के उपसभापति के निर्वाचन, दायित्व, अधिकार, सीमा आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। एक पूरा अध्याय ही है। राज्यसभा के उपसभापति पर जितने सवाल उठाये गये, उन सवालों का जवाब वे खुद आकर दे सकते थे, लेकिन उन्हें ऐसा करने की अनुमति उनका संवैधानिक पद नहीं देता। वे न तो कहीं स्पष्टीकरण दे सकते हैं, न जवाब और न खंडन। एक अखबार में जब टीवी फुटेज के आधार पर रिपोर्ट छपी तो इस पूरे मामले पर सिर्फ एक छोटी सी टिप्पणी राज्यसभा के उपसभापति कार्यालय की ओर से मीडिया को दी गयी। सारे तथ्यों को क्रमवार देकर, वीडियो फुटेज देकर सिर्फ एक छोटी-सी टिप्पणी गयी, “I hold a constitutional post and therefore, cannot issue a formal rebuttal. i am bringing these facts to your notice and leave it to your conscience for your judgement. I am also sending you a video footage of Rajyasabha TV and a detailed incident report.”

उस दिन उपसभापति पर मुख्यतः छह सवाल उठेः1. चेयर ने उस दिन बहस का समय क्यों बढ़ा दिया? 2. वोट डिवीजन कराने की बजाय वायस वोटिंग से बिल क्यों पास करवा दिया? 3. कुछ सदस्य, विशेषकर तिरुचि शिवा द्वारा अपनी सीट पर बैठकर वोटिंग की मांग करने पर नजरअंदाज क्यों किया गया? 4. चेयर ने उस प्रस्ताव पर डिविजन क्यों नहीं कराया या वोटिंग क्यों नहीं कराया, जिस प्रस्ताव में बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने की मांग की गयी थी? 5. जब हंगामा हो रहा था तो चेयर ने सदन को स्थगित क्यों नहीं कर दिया अगले दिन के लिए? 6. एक सवाल यह भी कि जब हंगामा हो रहा था तो राज्यसभा टीवी को कुछ देर के लिए म्यूट क्यों करवा दिया गया?

जहां तक बहस का समय बढ़ाने की बात है तो उसे बिजनेस एडवाइजरी कमिटी तय करती है जिसके चेयरमैन राज्यसभा के सभापति होते हैं और इसके सदस्य के रूप में केंद्रीय मंत्री, नेता प्रतिपक्ष, सदन में विभिन्न दलों के नेता आदि होते हैं। वही कमिटी यह तय करती है कि किस बिल के लिए बहस पर कितना समय दिया जाएगा। उसी बैठक में  20 सितंबर 2020 के लिए दोनों कृषि विधेयकों पर भी चर्चा होना तय हुआ। ये आर्डिनेंस बिल थे, निश्चित अवधि में संसद में निबटारा होना था। 20 सितंबर को भी ऐसा ही हुआ। दोनों कृषि अध्यादेशों पर विपक्ष का स्टेच्युरी रिजोलूशन था। स्टेच्युरी रिजोलूशन लानेवालों में सात लोगों के नाम थे। केके रागेश, इलमारम करीम, विनय विश्वम, एमवी श्रेमांश कुमार, केसी वेणुगोपाल, डेरेक ओ ब्रायन, दिग्विजय सिंह। इनका प्रस्ताव था कि यह सदन किसानों से संबंधित अध्यादेशों को अस्वीकार (डिस्प्रूव) करती है। दूसरे स्टेच्युरी रिजोलूशन को भी उक्त विपक्षी नेताओं ने ही मूव किया था।

संसदीय प्रक्रियाओं/प्रावधानों के तहत सदन में सबसे पहले विपक्ष का स्टेचुरी रिजोलूशन मूव होता है। उसे मूव करनेवालों में अगर सात नाम हैं तो उसे मूव करते समय पहला नाम पुकारा जाता है। अगर वह अनुपस्थित हैं तो क्रमवार अगले दूसरे नामों को पुकारा जाता है। फिर उस पर बहुत संक्षेप में रिजोलूशन मूव करनेवाले को बोलने का भी अधिकार है।

स्टेच्युरी रिजोलूशन मूव होने के बाद ही सरकार का बिल मूव होता है। पर, बहस दोनों पर एक साथ होती है। इसी तरह प्रक्रिया के तहत वोटिंग भी पहले विपक्ष के स्टेच्युरी रिजोलूशन पर होती। यह बड़ा महत्वपूर्ण बिंदु है। अगर सदन विपक्ष के स्टेच्युरी रिजोलूशन को स्वीकार कर लेता है यानी अध्यादेश को वहीं रिजेक्ट कर देता है तो फिर आगे उस बिल को सरकार की ओर से लाने का कोई मतलब नहीं रह जाता। वह बिल वहीं खत्म हो जाता है।

20सितंबर 2020 की घटना पर विपक्ष का आरोप था कि सदन में चेयर ने डिवीजन नहीं दिया, नहीं तो संख्या बल हमारे पक्ष में था, हम कृषि बिल को पास नहीं होने देते। सच यह है कि अगर विपक्ष चाहता तो बिल पास होने की बात कौन कहे, बिल आगे ही नहीं बढ़ पाता। यह आसानी से संभव था। शर्त यह थी कि सच में विपक्षी नेताओं में इस बिल को रोकने की चाहत होनी चाहिए थी और साथ ही पर्याप्त संख्याबल भी। विपक्षी नेता कह रहे हैं कि उनके पास पर्याप्त संख्या थी। और साथ में इस बिल को रोकवाने या पास न होने देने के बारे में दृढ़ इच्छाशक्ति जैसी बात बता ही रहे हैं तो फिर जो काम बहुत आसानी से, वैधानिक तरीके से, संसदीय प्रक्रिया के तहत बिना किसी हो-हंगामा किये कर सकते थे, वैसा क्यों नहीं किया गया? ऐसा इसलिए, क्योंकि उस दिन विपक्षी दलों के पास दोनों का ही अभाव था। न बिल रोकवाने के लिए पर्याप्त संख्याबल और ना ही दृढ़ इच्छाशक्ति। बात जब संख्याबल की है तो उस समय संख्याबल का गणित जानने के लिए 23 सितंबर को प्रकाशित इंडिया टुडे की राहुल श्रीवास्तव की एक रिपोर्ट को देखा जा सकता है। राहुल श्रीवास्तव ने उस दिन राज्यसभा में सांसदों के अटेंडेंस रजिस्टर के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने लिखा है कि उस दिन विपक्ष के अधिकतर सांसद आए ही नहीं थे। जब बहस का समापन हो रहा था, उस समय सदन में बिल के समर्थन में रहनेवाले सांसदों की संख्या 110 थी, जबकि बिल का विरोध करनेवाले विभिन्न विपक्षी दलों के सांसदों की संख्या मात्र 70 थी। अब तो मीडिया में बात सामने आ गई है कि उस दिन विपक्षी दलों के कुल 107 सांसदों में से 33 सांसद अनुपस्थित थे। इनमें अनेक वरिष्ठ व जानेमाने नेता थे। इनमें से कुछ तो सदन को पहले सार्वजनिक रूप से सूचित कर सदन की अनुमति से अनुपस्थित थे। यह प्रश्न तो इस अफसाने में किसी ने उठाया ही नहीं कि कृषि बिल पर विपक्ष के पास बहुमत था तो उस दिन इसके खिलाफ अपने सांसदों को सदन में रहने के लिए किसी ने व्हिप जारी की थी? साफ है ​कि विपक्ष को पता था कि बहुमत हमारे पास नहीं है, इसलिए न ह्विप जारी हुआ, न वोटिंग होने दी गई। वोटिंग न होने देने की कोशिश कर यह सार्वजनिक संदेश देने की कोशिश हुई कि किसान बिल के विरोधी हैं?

सरकार को इस बिल पर नैतिक रूप से हरा देना एकदम आसान था। पहला मतदान विपक्ष के स्टेच्युरी रिजोलूशन पर होना था। उसी में विपक्ष शांत रहकर, अपनी सीट पर रहकर डिवीजन मांगता। एकजुटता दिखाते, उनके पास संख्या होती तो वहीं पर सरकार हार जाती, विपक्ष जीत जाता। बिल गिर जाता। सरकार के दोनों बिलों के निपटारे के पहले विपक्ष के दोनों स्टेच्युरी रिजोलूशन पर ही विपक्षी दल एकजुटता दिखाकर, संख्या बल के आधार पर इस बिल को रुकवा सकते थे, गिरा सकते थे। फिर आगे न एमेंडमेंट मूव करने की जरूरत पड़ती, न बिल को सेलेक्ट कमिटी में ले जाने की। उस दिन अगर करीब डेढ़ घंटे सदन शांतिपूर्ण तरीके से, विधिवत चलता तो, यह प्रक्रिया पूरी हो जाती। देश जानता कि कृषि बिलों पर संख्यावार क्या स्थिति थी? जहां तक सदन में बोलने का समय देने या निर्धारित करने की बात है, वह वर्षों नहीं, दशकों पहले बनाई हुई व्यवस्था या परंपरा के अनुसार ही चल रहा है।

जिन्हें समय कम मिलने या समय को लेकर शिकायत थी, उन्हें इस मांग को बिजनेस एडवाइजरी कमिटी में ही रखना चाहिए था और तय करवा लेना चाहिए था कि बिल पर चार घंटे में काम नहीं चलेगा। इस सत्र के पहले बीएसी मीटिंग में दोनों कृषि बिलों पर सबकी सहमति से कुल चार घंटे बहस का समय तय हुआ। जब बहस का यह समय तय हो रहा था तो उपसभापति इसके सदस्य नहीं थे। वजह यह कि उस वक्त उपसभापति का पद खाली था। 20 सितंबर 2020 को कृषि पर सरकार के जो दो बिल थे, वे दोनों आर्डिनेंस थे। उस दोनों आर्डिनेंस को तय समय के तहत सदन से अनुमति लेने के लिए सरकार बिल के रूप में सदन में ले आई। यही परंपरा सदन बनने के बाद से ही है, चाहे सरकार कोई भी हो।

सवाल उठाया जा रहा है कि 20 सितंबर 2020 को बिल को पास कराने के लिए चेयर की ओर से समय क्यों बढ़ा दिया गया? उस दिन सदन में पूर्व निर्धारित समय को थोड़ा आगे पहली बार नहीं बढ़ाया गया था। सदन के किसी सत्र में नियमित बैठक के दौरान समय बढ़ते-घटते रहता है। 20 सितंबर 2020 के दो दिन पहले का ही रिकार्ड देख लें। पिछले दो दिन 19 एवं 18 सितंबर 2020 को सदन लगातार देर तक बैठा। 19 सितंबर को निर्धारित समय से 35 मिनट अधिक, 18 सितंबर को 17 मिनट अधिक देर तक सदन की कार्यवाही चली थी, जिसके लिए इसी तरह समय बढ़ाने की इजाजत ली गयी थी, जिस तरह से 20 सितंबर को अनुमति ली गयी।

बीएसी द्वारा निर्धारित समय में काम कैसे होगा, इस संबंध में सदन के चेयरमैन का साफ निर्देश होता है। संसदीय परंपरा में इस पर मतविभाजन की व्यवस्था नहीं है, न कभी इस पर बहस होती है या हर एक से राय ली जाती है। मोटेतौर पर जो इसके खिलाफ होते हैं, वे अपनी जगह पर खड़े होकर आसन को बताते हैं, जो पक्ष में होते हैं वे अपनी सीट पर बैठे रहते हैं। आसन को अगर लगता है कि बहुसंख्यक लोग बैठना चाहते हैं, तो समय बढ़ाया जाता है।

20 सितंबर को सबसे पहले सुबह लगभग साढ़े नौ बजे के आसपास इस बिल पर चर्चा शुरू हुई। 35 सदस्यों ने बहस में हिस्सा लिया। चेयर द्वारा बार-बार मना करने के बाद भी कई सदस्य निर्धारित समय से काफी अधिक बोले। अन्य सदस्यों ने समय-सीमा बताने के बाद भी अधिक समय लिया। निर्धारित समय में बिजनेस पूरा करने के लिए सत्ता पक्ष को कहना पड़ा कि वह अपना समय कम करे, विलंब से चीजें ना चले। अगर सभी लोग अपने निर्धारित समय पर बोलते तो समय बढ़ाने की नौबत ही नहीं आती।

20 सितंबर को जब समय विस्तार का प्रस्ताव आया, उस पर विवाद छिड़ गया। उस विवाद के बीच भी विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सदन में बहुमत से तय नहीं होता कि सदन देर तक बैठे। यह कंसेंसस से तय होने की परंपरा रही है। स्पष्ट था कि बहुमत बैठनेवालों का था, यानी बहुमत सदन को चलाने देने के पक्ष में था। अब यह तय होना है कि अगर अधिक लोग बैठना चाहते हैं और कुछ लोग न बैठने के लिए सदन में हंगामा करते हैं, लोकसभा और राज्यसभा की गैलरियों से आकर राज्यसभा वेल में हंगामा करते हैं, तोड़फोड़ करते हैं तो उनके दबाव में सदन की कार्यवाही रोक देनी चाहिए? दूर बैठे सदस्यों का अचानक वेल में आ जाना, स्पष्ट बताता है कि यह पहले से सोचा गया होगा कि उस दिन बिजनेस नहीं चलने देने के लिए क्या-क्या करना है? क्या यह सुनियोजित या पूर्व निर्धारित नहीं था? एक क्षण के लिए फर्ज कीजिए कि उस दिन अधिक सदस्य समय बढ़ाने के विरोध में थे। वे मर्यादित और संसदीय तरीके से वाकआउट कर जाते।  स्वाभाविक है कि सदस्यों की संख्या घट जाती। कोरम पूरा नहीं होता। समय बढ़ानेवाले के पक्ष में संख्या कम दिखती, सदन स्थगित हो जाता।

उस दिन के टीवी दृश्य बताते हैं कि पहले मूवर केके रागेश को चेयर ने बुलाया तो वह अपनी सीट पर नहीं थे। राज्यसभा के मानक के तहत वेल में खड़े सदस्यों को राज्यसभा टीवी नहीं दिखाता। पहले मूवर उस वक्त वेल में नहीं थे. साफ है कि अगर वह वेल में थे, तो अपने प्रस्ताव पर सदन में वोट के प्रति कितने गंभीर थे?

यह भी कहा जा रहा है कि रिजोलूशन या एमेंडमेंट मूव करनेवाले सांसद को अधिकार है कि वह वोट डिवीजन की मांग करे। बिल्कुल यह अधिकार है। विधान में इसका प्रावधान भी है। इसी अधिकार का हवाला देकर यह कहा जा रहा है कि तिरुचि शिवा तो अपनी जगह से मांग कर रहे थे, तो फिर उनकी मांग क्यों नहीं मानी गयी? तिरुचि शिवा दोपहर 1.10 बजे अपनी सीट से वोट डिवीजन की मांग करते हैं। उसके ठीक एक मिनट पहले चेयर के सामने अराजक स्थिति बन चुकी होती है। चारो ओर से चेयर को घेरकर हंगामा किया जा रहा था, कागज फाड़े जा रहे थे, चिल्लाया जा रहा था, माइक तोड़ा जा रहा था, सदन में रूलबुक फाड़कर चेयर पर फेंका जा रहा था, मार्शल पर हमला हो रहा था और उसी समय अपनी सीट से तिरुचि शिवा वोट डिवीजन की मांग कर रहे थे। और फिर ठीक कुछ पलों बाद यानी दोपहर 01.11 बजे वह चेयर के उपर बायीं तरफ खड़ा होकर चेयर के पास खड़े मार्शल के फेसशिल्ड नोचने में लगे थे। यह कैसी स्थिति थी? फर्ज कीजिए कि चुनाव के समय बूथ पर आप मतदान करने जाएं। वहां लोग मतदान कर्मी, प्रीजाइडिंग आफिसर, मतदान के बाद उंगली पर इंक लगानेवाले, मतदान पत्र देनेवाले या चुनाव करानेवाले कर्मचारी पर पहले से हमला कर रहे हों। इवीएम लेकर तोड़ रहे हों या बैलेट पेपर लेकर फाड़ रहे हों, उनके सामने हंगामा कर रहे हों और उसी में कोई एक आदमी कहे कि हमें अभी तुरंत वोट देना है। फिर दूसरे क्षण वही मतदान करने की मांग करनेवाला हंगामा में शामिल हो जाता है।

टीवी दृश्य में सबने देखा कि उसी समय टेबल पर चढ़कर डांस हो रहा है, कागज फाड़े जा रहे हैं, चेयर पर हमले की कोशिश हो रही है, जिस कागज से चेयर को सदन का संचालन करना था, उसे छीनकर फाड़ा जा रहा है। कागज फाड़कर फेंके जा रहे हैं। माइक तोड़ा जा रहा है। आक्रामक और भद्दे नारे लगाये जा रहे हैं। वोट करानेवाले जो सदन के महासचिव या उनके अधिकारी-कर्मचारी हैं, उनके टेबल पर चढ़कर डांस हो रहा है, उनसे कागजात छिनकर फाड़े जा रहे हैं। जिन अधिकारियों को वोट कराना था, वे दहशत में थे। उन पर हमले हो रहे थे। मार्शल का गला दबाया जा रहा था। ऐसी स्थिति में डिवीजन की मांग का क्रियान्वयन संभव है? संसदीय नियमों के तहत कहीं से भी सदन में वोट डिवीजन की स्थिति नहीं थी। माहौल नहीं था लेकिन कुछ लोगों का फिर भी यही सवाल है कि चेयर ने वोट डिविजन क्यों नहीं कराया? यहां यह जान लेना जरूरी है कि वोट डिविजन की पहली शर्त है कि सभी सदस्य अपनी सीट पर हों। पूरा हाउस आर्डर में हो। बिल्कुल शांत माहौल हो। माहौल शांतिपूर्ण होने के बाद सबसे पहले लॉबी खाली कराई जाती है। इस बार तो और भी स्थिति चुनौतीपूर्ण थी। कोरोना की वजह से सभी सदस्य एक जगह नहीं बैठे थे। तीन स्थानों पर यानी राज्यसभा, राज्यसभा गैलरी और लोकसभा में राज्यसभा के सदस्यों को बैठाया गया था। यानी तीनों जगह पहले शांत माहौल होना चाहिए था। सबने देखा या टीवी पर देखना चाहिए कि जिस समय डिवीजन की मांग हो रही थी, उस समय क्या स्थिति थी। लोग दूसरी जगह से उठकर राज्यसभा वेल में आ गये थे। 20 सितंबर को दोपहर 01.09 बजे चेयर के सामने हंगामा चरम पर था, 01.10 बजे तिरुचि शिवा डिविजन की मांग करते हैं, चेयर के लिए उस समय किसी को देखना या किसी की आवाज सुनना संभव नहीं था और फिर अगले ही मिनट तिरुचि शिवा भी अपनी जगह छोड़कर चेयर के पास आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में कौन डिवीजन करा सकता था और कैसे? नियम (252-1) कहता है कि सदस्य को अपनी सीट पर रहना है और वहीं से बोलना है।  सामान्य दिनों में वोटिंग का नियम यह होता है कि सभी सदस्यों के टेबुल पर वोटिंग बटन लगा होता है, जब वोट डिवीजन होता है, तो वहीं से वे वोट देते हैं। इस बार तो वह स्थिति भी नहीं थी। वोट डिवीजन होता भी तो इस बार वोट मशीन की बजाय, पर्ची से होता। सबको सदन में मतदान करानेवाले अधिकारी-कर्मचारी पर्ची देते और फिर सब अपना वोट देते। जब सांसद अपनी सीट पर ही नहीं थे तो उन्हें कहां पर्ची दिया जाता और कैसे दिया जाता?

कुछ लोगों का यह सवाल रहा कि जब इतना हंगामा हो रहा था तो चेयर ने सदन को स्थगित क्यों नहीं कर दिया? जानना चाहिए कि यह परंपरा रही है कि एक बार जब किसी बिल पर मंत्री के जवाब के बाद स्टेच्युरी रिजोलूशन, अगर उस बिल से संबंधित है, वह वोटिंग के लिए रखा गया, तो एक तरीके से वोटिंग प्रोसेस उसी समय से शुरू हो जाता है। संसदीय परंपरा यह है कि प्रक्रिया एक बार शुरू हो जाए तो फिर बीच में रोका नहीं जाता, क्योंकि वोटिंग बीच में छोड़ने से प्रक्रिया संबंधी समस्याएं अलग हैं। हालांकि चेयर ने उस दिन स्थगन दिया। करीब 15 मिनट का। इस उम्मीद के साथ कि शायद विरोध कर रहे माननीय संसदीय मर्यादा का ख्याल रखते हुए संसदीय परंपरा का पालन करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 15 मिनट के स्थगन के बाद फिर जब कार्यवाही शुरू हुई, तो आसन पर बैठे उपसभापति ने कई बार कहा कि अपनी सीट पर जाएं, कई बार कहा कि सीट पर ही जाकर रिजोलूशन भी मूव करे और डिवीजन भी मांगे। उस दिन का राज्यसभा प्रोसिडिंग राज्यसभा के वेबसाइट पर उपलब्ध है। उपसभापति ने बार-बार कहा कि वेल में रहेंगे तो डिवीजन नहीं होगा। फिर भी व्यवधान नहीं रुका।

विरोध कर रहे लोग नियम का पालन करने को तैयार नहीं थे। वोटिंग की आरंभिक प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। 16 बार से अधिक आसन से उपसभापति माननीय सदस्यों को अपनी जगह पर जाने का आग्रह कर चुके थे। विरोध कर रहे लोग मानने को तैयार नहीं थे। सदन संचालन का नियम 252 में इस बात का प्रावधान भी है कि कोई भी सवाल जब सदन में निर्णय के लिए रखा जाता है तो पहले वॉयस वोटिंग का ही रास्ता अपनाया जाता है। नियम कहता है कि वायस वोटिंग के बीच में अगर कोई भी एक सांसद नियम का पालन करते हुए, अपनी सीट से वोट डिवीजन की मांग करता है तो फिर डिविजन कराना पड़ता है। इसलिए जो टीवी पर सदन को चलते हुए देखते होंगे, उन्होंने गौर किया होगा कि चेयर वायस वोटिंग कराते समय एक ही विषय पर तीन बार यस और नो के लिए अपनी बात रखता है। वह इसलिए कि इस बीच भी अगर कोई सांसद वोट डिवीजन की मांग कर ले तो वायस वोटिंग की बजाय डिवीजन कराया जा सके।  20 सितंबर 2020 को भी कृषि बिल के समय चेयर के पास यह अधिकार था कि विरोध कर रहे लोगों को मार्शल से निकलवा दे और फिर पहले की तरह ही बिल पास करवा ले। लेकिन, चेयर ने ऐसा नहीं किया।

‘राज्यसभा एट वर्क’ पुस्तक के पृष्ठ 1012 में कहा गया है कि सदन शांतिपूर्ण चले, सांसद मत विभाजन या मतदान की मांग करे तो यह मानना जरूरी है। यह जरूरी है लेकिन इसके लिए सदन का आर्डर में रहना सबसे आवश्यक है। सभी अपनी जगह पर हों। ऐसी स्थिति नहीं होती तो चेयर वायस वोटिंग के आधार पर निर्णय लेता है। कृषि बिल पर चार घंटे बहस के बाद भी मतदान न होने के लिए कुछ लोग पहले से संकल्पबद्ध थे, यह साफ है।

यह सवाल भी सामने आया कि जब हंगामा हो रहा था तो राज्यसभा टीवी को कुछ देर के लिए म्यूट क्यों कर दिया गया? उन्हें राज्यसभा टीवी के बारे में जानना चाहिए। शुरू से ही राज्यसभा टीवी को यह आदेश रहा है कि जब हंगामा हो तो उस समय कैमरे को हंगामा की बजाय चेयर की ओर रखना है। यही शुरू से हुआ ही भी है। वजह भी साधारण है। राज्यसभा टीवी देश को हंगामे को दिखाकर, असंसदीय व्यवहार और आचरण को दिखाकर आखिर देश को क्या संदेश देगा कि जहां देश की नीति और ​नियति तय होती है, जो जनता के प्रति जिम्मेवार लोगों की पंचायत है, वहां क्या होता है? भारतीय परंपरा में कहा भी गया है-महाजनो येन गत: स पंथा। जब संसद में ही हंगामा दिखाया जाएगा तो पूरे देश में क्या संदेश जाएगा?

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