अभय परमहंस की दो कविताएं………………………..

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अभय परमहंस का मूल नाम अभयानंद शुक्ल। मूल निवासी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के। वर्ष 1989 से लखनऊ (उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता)। सम्प्रति हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ में समाचार संपादक। पिता स्वर्गीय परमहंस शुक्ल पूर्वांचल के प्रख्यात कवि, पत्रकार और साहित्यकार रहे और जीवन पर्यन्त देवरिया में कवि सम्मेलनों का संयोजन और संचालन किया। पिता के सान्निध्य में बचपन देश के नामचीन कवियों जैसे मोती बीए, डॉ शम्भूनाथ सिंह, काका हाथरसी, सोम ठाकुर, गोपालदास नीरज, स्नेहलता स्नेह, रमई काका, विकल साकेती, सूंड फ़ैज़ाबादी, माधव मधुकर, बुद्धिनाथ मिश्र, गिरिधर करून, संत शरण करूणेश, आदि कवियों के बीच बीता। दूरदर्शन के साहित्य सरिता कार्यक्रम में काव्य पाठ। संपर्क- मोबाइल नम्बर 9044031716, मेल आईडी- ashukla1964@gmail .com, पता- मकान नम्बर 263 , शेखुपुरा, अलीगंज, लखनऊ . पिन- 226022

एक  

ऐ सियासतदां झूठे वादे न किया कर,

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सिर्फ वही कहा कर जो कर दिया कर.

मान लिया सियासत झूठ का खेल है,

पर सब झूठ हो, ऐसा मत किया कर। (1)

 

माना कि सच तेरे लिए मुफीद नहीं,

पर नमक में दाल तो मत खाया कर.

इस तरह सबका दिल न दुखाया कर,

अपने वादों में सच भी मिलाया कर। (2)

 

झूठ से बचने की कोशिश किया कर,

प्रभु के पास जाना है, सोच लिया कर,

ये तो पब्लिक है, सब कुछ जानती है,

इसलिए अति तो मत ही किया कर। (3)

 

सेवा करने आया है, वही किया कर,

सबको इधर-उधर मत भटकाया कर,

प्रभु ने जो दिया, उसी में खुश रहो,

हमारी तरह थोड़े में संतोष किया कर। (4)

दो  

चांदनी रात में चाँद देखने लगे हटा के वो हिज़ाब,

मंज़र ऐसा, ज्यों ज़मीं पर भी उतरा हो महताब।

दोनों में मुक़ाबला, कौन है बीस, कौन है इक्कीस

वे एक-दूसरे को देख लें, तो दोनों ही लाज़वाब।

माहौल यूँ खुशनुमा, ज्यों रूह में आ गया हो बाग़,

चारो तरफ है सुगंध, ज्यों महक रहा हो गुलाब।

दो-दो चाँद देख कर तुम कहाँ खो गए हो यार,

हक़ीक़त का दीदार करो, इसे न समझो ख्वाब।

जल्दी करो आसमानी चाँद शरमा के छिप न जाए,

अगर छिप गया, फिर ये नज़ारा हो न हो जनाब।

आसमां का चाँद तो तुमने बहुत देखा होगा यार,

हिज़ाब से आजाद चाँद का, कहाँ है बोलो जवाब।

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