अमेरिका में साफ-सफाई और कड़े अनुशासन के बावजूद कोरोना का कहर बरपा है। कोरोना से दुनिया के सर्वाधिक तबाह देशों में अमेरिका की गिनती हो रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति इससे सर्वाधिक चिंतित है। कोरोना काल में अमेरिका की जीवन शैली और साफ-सफाई को याद किया है वरिष्ठ पत्रकार कुमार रंजन ने।
- कुमार रंजन
कोरोना काल में ही फेसबुक ने याद दिलाया कि एक साल पहले इस समय हमलोग अमेरिका में थे। एक साल गुजर गया, पता ही नहीं चला। वक्त कहां थमता है! वह तो अपनी गति से चलता रहता है। पूरी दुनिया अभी कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रही है और इस मामले में अमेरिका तो बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहा है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली समझा जाने वाला यह मुल्क आज कोरोना वायरस के संक्रमण से अत्यधिक प्रभावित है। वहां की स्थिति बहुत ही भयावह और चिंताजनक है। वहां से आ रही खबरें डराने वाली हैं। इस खतरनाक वायरस ने अब तक वहां हजारों लोगों की जान ले ली है। ईश्वर करे, वहां जल्द स्थित सामान्य हो।
सोचने लगा- पिछले साल जब मैं और मेरी पत्नी वहां गये थे तो सब कुछ कितना सामान्य और सुंदर था। मेरी बेटी-दामाद अमेरिका में रहते हैं। उन्हीं से मिलने हम वहां गये थे। मेरी बेटी मां बनी और हमें नाना-नानी बनने का सौभाग्य मिला। उसी खुशी को साझा करने हम लोग वहां गये थे। बेटी अमेरिका के लुईविल (लुइसविले) शहर में रहती है। वहां के लिए भारत से सीघी फ्लाइट नहीं है। हमलोग एयर इंडिया से सीधे शिकागो गये और फिर वहां से दूसरी फ्लाइट लेकर केंटकी प्रांत के लुईविल शहर पहुंचे।
लुईविल एक छोटा सा शांत शहर है अमेरिका का। करीब हजार वर्ग किलोमीटर में फैले इस खूबसूरत शहर की आबादी आठ लाख के करीब है। पूरा शहर साफ सुथरा, चारों ओर हरियाली। वैसे भी अमेरिका में कोई भी शहर घूम जाइए, कहीं भी धूल-धक्कड़ नजर नहीं आयेगा। और हां, मच्छर-मक्खी का तो सवाल ही नहीं। पूरा शहर साफ सुथरा। सड़कों पर कहीं कोई गंदगी नहीं। न ही कहीं कूड़ा-करकट दिखता है। इस मामले में प्रशासन के साथ-साथ लोग भी सक्रिय रहते हैं। लोग डस्टबीन का खूब इस्तेमाल करते हैं। डस्टबीन वहां ट्रैस कहलाता है। हम जब भी शहर में कहीं निकलते तो रास्ते में गाड़ी के शीशे से नजरें लगातार बाहर टिकी रहतीं। वैसे भी नई जगह पर हर चीज चकित करती है। सुंदर और साफ सुथरी सड़कें। चारों ओर हरियाली। सड़कों के किनारे हरी-हरी घास, जैसे कालीन बिछी हो। कहीं कोई चिल्ल-पों नहीं। भव्य और शांत। वैसे ही जैसे हालीवुड की फिल्मों में अमेरिकी शहरों के दृश्य दिखते हैं। छोटे छोटे और दूर-दूर पर कलात्मक ढंग से बने मकान। कहीं किसी चौराहे और रेड लाइट पर ट्राफिक पुलिस का कोई जवान नहीं, जैसा कि अमूमन भारत में दिखता है। वहां वर्दी में पुलिस कम ही दिखती है। सड़कों पर सिर्फ गाड़ियां। पैदल चलते हुए तो इक्का-दुक्का लोग ही दिखते हैं। कोई ठेला गाड़ी नहीं, न जहां-तहां रोड पार करते लोग, न कहीं झुग्गी-झोपड़ी, न ऑटो, टेंपो न रिक्शा। ये सब यहां नजर नहीं आते।
अमेरिका में करीब दो महीने रहा और वहां के जीवन को नजदीक से देखने का मौका मिला। वहां की कई चीजों ने प्रभावित किया। अनुशासन और सेनिटेशन अमेरिकी जीवन के मुख्य तत्वों में शामिल हैं। यह विश्व-शक्ति कहे जाने वाले अमेरिका के चरित्र का एक अहम हिस्सा है या यूं कहें कि जीवन का हिस्सा है। यह कहीं भी दिख सकता है। चाहे वह सड़क हो, हाइवे हो या कोई भी सार्वजनकि स्थान। कहीं भी अराजकता नज़र नहीं आती। लाइन लगना है तो लगना है। कहीं लिखा नहीं होता, न कोई बताता है। लोग चुपचाप लाइन बना कर खड़े हो जाते हैं। और हां, लाइन में एक-दूसरे से दूरी भी रखते हैं।
दूरी तो सड़कों पर गाड़ियों के बीच भी दिखती है। हर वाहन एक दूसरे से दूरी बना कर चलते हैं। सड़कों पर गाड़ियां तेज रफ़्तार में चलती हैं लेकिन अनुशासन भंग नहीं होता। और हां, यहां हार्न बजाने का रिवाज भी बिल्कुल नहीं है। सड़कों पर हार्न की आवाज यदा कदा ही सुनाई देती है। अगर कोई वाहन चालक सड़क पर किसी नियम को तोड़ता है तो साथ आने वाला वाहन चालक हार्न बजा कर उसे आगाह जरूर करता है, इस पर वह नाराज नहीं होता, बल्कि विनम्रता के साथ थैंक्स कह कर अपनी गलती को स्वीकार करता है। हाइवे पर कहीं कोई आपाधापी नहीं और न ही एक-दूसरे को पीछे छोड़कर आगे निकलने की होड़। सूनी पड़ी सड़क पर भी अगर कहीं रूकने का संकेत है तो वाहन चालक अनिवार्य रूप से वहां रुकता ही है। अनुशासन का ही नतीजा है कि दुर्घटनाओं की संख्या बहुत ही कम है। या कहें न के बराबर है।
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अमेरिका में एम्बुलेंस, फायर-ब्रिगेड, स्कूल बस और पुलिस की गाड़ियों को सबसे पहले रास्ता देने का रिवाज है। सायरन की आवाज सुनते ही लोग रुक जाते हैं। बच्चों और पैदल चलने वालों की सुरक्षा सर्वोपरि है। ट्रैफिक के नियम तो हालांकि कमोबेश वही हैं जो हमारे देश में हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि यहां सख्ती से इनका पालन होता है। यह अलग बात है कि यहां की सड़कें भी काफी अच्छी हैं। कोई सड़क ऐसी नहीं दिखीं जो टूटी फूटी हों या जिस पर गड्ढे हों। हाइवे पर गाड़ियों की रफ़्तार सौ सवा सौ किलोमीटर प्रति घंटे की, फिर भी दुर्घटनायें बहुत ही कम या कहें न के बराबर। सड़क का यह अनुशासन सीखने लायक है।
शहर के साथ साथ व्यक्तिगत साफ सफाई भी वहां लोगों के जीवन का हिस्सा है। बचपन से ही इसकी आदत डाल दी जाती है। इसकी कुछ झलक मुझे भी देखने को मिली। बेटी नियमित जांच के सिलसिले में अस्पताल जा रही थी तो हम लोग भी उसके साथ अस्पताल गये। अस्पताल में हर जगह और खासकर दरवाजे के पास एक सामान्य उंचाई पर सेनेटाइजर की बोतल रखी दिखी। अस्पताल आने जाने वाले लोग इसका इस्तेमाल कर रहे थे। प्रवेश करते समय तो खासकर इसका इस्तेमाल करते।
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हम लोग वहां रिसेप्शन में बैठे थे। इतने में तीन चार साल की एक छोटी सी बच्ची अपनी मां के साथ वहां आई। बच्ची ने रिसेप्शन पर बैठी लड़की से कुछ कहा, जो हमें सुनाई नहीं दिया। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने सेनेटाइजर की एक बोतल निकाल कर बच्ची की ओर बढाया। बच्ची ने सेनेटाइजर हाथों में अच्छे से लगाया और फिर अपनी मम्मी से कहा, मम्मी चलिए डाक्टर के पास। बच्ची में सेनीटेशन के प्रति इस जागरूकता को देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया।
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इसी तरह का एक और उदाहरण मिला। मेरा एक फूफेरा भाई पिछले 15 20 साल से अमेरिका के क्लीवलैंड शहर में रहता है। वह अपने बेटा बेटी के हाथ छह सात घंटे की डाइव करके हम लोगों से मिलने आया। हम लोग गपशप में मशगूल हो गये। उस समय मेरा नाती विवान दो-तीन हफ्तों का ही था। भाई के दोनों बच्चों को विवान को गोद में लेने के लिए अपनी मम्मी से अनुरोध करते मैंने देखा। उसकी मम्मी ने बच्चों से कहा, पहले बढिया से हाथ धो कर आइये फिर बाबू को गोद में लीजिएगा। बच्चोें ने तुरंत कहा, मम्मी हम लोगों ने हाथों को अच्छे से सेनेटाइज कर लिया है। आश्वस्त होने के बाद उनकी मम्मी ने बारी बारी से विवान को उनके गोद में दिया।
काश, हम अमेरिका की इन चीजों सबक ले पाते। वैसे, अब अपने देश में भी साफ सफाई पर पूरा जोर दिया जा रहा है। खासकर इस कोरोना काल में तो हाथों को अच्छे से धोने की सलाह दी जा रही है। लेकिन जमीनी स्तर तक इसके जीवन का हिस्स बनने में अभी वक्त लगेगा।
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