‘अहवा’ भगाने की लुकाठी से असमय दीपावली के टोटके तक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर दीप जलाने से कोरोना का वायरस मरेगा या नहीं, पर ऐसे आयोजन की आलोचना से भी वायरस नहीं मरेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर दीप जलाने से कोरोना का वायरस मरेगा या नहीं, पर ऐसे आयोजन की आलोचना से भी वायरस नहीं मरेगा।
गोपेश्वर सिंह
गोपेश्वर सिंह

‘अहवा’ भगाने की लुकाठी से असमय दीपावली के टोटके तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर डीयू के प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह ने एक पोस्ट लिखा है। हालांकि यह पोस्ट उस दिन का है, जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री ने कोरोना के खिलाफ ताली और थाली बजवायी थी। लेकिन आज रात बत्ती बुझा कर वैकल्पिक रौशनी के उनके आग्रह के मेद्दनजर पोस्ट आज प्रासंगिक है।

  • गोपेश्वर सिंह

‘अहवा’- यही कहते थे- पशुओं को होने वाली उस बीमारी को। बचपन में झांक रहा हूं। हमारे गाँवों में पशुओं को एक रोग होता था, जिसे ‘अहवा’ कहते थे। पशुओं को होने वाला यह संक्रामक रोग था। जब होता था तो पूरा गाँव प्रभावित हो जाता था। तब पशु चिकित्सक/ चिकित्सालय नहीं थे। गाँव वालों को पता भी नहीं था। इस बीमारी के इलाज के लिए गाँव के लोग तब एक टोटका करते थे। सब गाँव वाले रात में लुकाठी जलाते और अपने-अपने पशुओं की परिक्रमा करते। फ़िर लुकाठी के साथ एक जगह एकत्रित होते और सभी अपनी -अपनी लुकाठी उठाये हुए दूसरे गाँव की ओर दौड़ते।

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सभी घरों और सभी वर्णों के लोग इस मशाल जुलूस में वीर भाव से शामिल होते। जुलूस दूसरे गाँव की सीमा तक जाता और लुकाठियों को उस गाँव की ओर फेंक कर वापस आ जाता। मान्यता थी कि ‘अहवा’ रोग उस गाँव में चला जायेगा। इसे अहवा भगाना कहा जाता था। मैं अपने किशोर वय में इस अभियान का एक सक्रिय सिपाही रह चुका हूँ। कभी-कभी दूसरे गाँव वाले जग जाते थे और स्थिति मार-पीट की आ जाती थी। अन्य गाँव वाले भी अपने यहाँ का अहवा हमारे गाँव में भगा जाते थे।

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बावजूद इस लुकाठी अभियान के बहुतेरे संक्रमित पशु मरते थे। अब यह सिलसिला बंद हो चुका है। पशु चिकित्सालय खुल चुके हैं। बीमार पशुओं का वहाँ इलाज़ हो जाता है। 22 मार्च की शाम पाँच बजे प्रोफ़ेसरों के मेरे मुहल्ले में (दिल्ली विश्वविद्यालय का आवासीय परिसर) कुछ घरों के बाहर जब थालियाँ बजीं तो मैं बाहर निकला। देखा। हाथ हिलाया। लेकिन थाली नहीं बजायी। सोचा कि जब मेरे जनपद के लोग अहवा के टोटके से बाहर आ चुके हैं तो हम क्यों नहीं? मैंने तय किया कि इस निमित्त सरकार कोई कोष बनाएगी तो  पाँच-दस हज़ार उसमें ख़ुशी-ख़ुशी जमा करूँगा और कैरोना भगाओ अभियान में सरकार का साथ दूँगा, सभी तरह की सावधानी  ख़ुद रखूँगा और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करूँगा!

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