आगरा के स्कूली छात्र की करामात, अश्लील फोटो डाली

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बेरोजगारी पर बहस नयी नहीं, लेकिन सेन्टर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की ताजा रिपोर्ट ने बहस को नया जीवन दे दिया है।
बेरोजगारी पर बहस नयी नहीं, लेकिन सेन्टर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की ताजा रिपोर्ट ने बहस को नया जीवन दे दिया है।
  • अनिल भास्कर

आगरा में एक स्कूली छात्र ने अपने सहपाठी की फ़ोटो फेसबुक से निकाली और उसे फोटोशॉप के जरिये अश्लील बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी। वजह औऱ चौंकाने वाली है। दरअसल, आरोपित छात्र परीक्षा में  अपने सहपाठी के बेहतर अंक लाने, उसके कक्षा में अव्वल आने से इस कदर ईर्ष्या करने लगा कि यह आपराधिक कृत्य कर बैठा। जनता हूं, पहली नज़र में हम, आप, सब उस बच्चे को गुनहगार मान बैठेंगे। हो सकता है नफरत का भाव भी उपजे। मगर क्या वाकई वह नफरत के काबिल है? क्या वह इस कृत्य के लिए सज़ा का अकेला हक़दार है??

वाराणसी प्रवास के दौरान बीएचयू के तत्कालीन कुलपति प्रो. लालजी सिंह के साथ गहन विमर्श का अवसर मिला था। वही लालजी सिंह जिन्हें हम सब डीएनए फिंगरप्रिंट के जनक के रूप में जानते हैं। यह पद्मश्री लालजी सिंह ही थे जिन्होंने हैदराबाद स्थित देश के पहले कोशिकीय एवं आण्विक जीवविज्ञान केंद्र का नेतृत्व करते हुए जीन थेरेपी की मदद से अनुवांशिक रोगों पर पूर्ण विजय का मिशन चलाया। और यही प्रयास अपने पैतृक गांव में जीनोम फाउंडेशन के जरिये जारी रखा। उन्होंने मानव शरीर की कोशिकीय संरचना का विस्तार रखते हुए बताया था कि इंसान बाहर से चाहे कितनी भी साम्यता दर्शाता हो, अलग कोशिकीय संरचना के कारण आंतरिक तौर पर बिल्कुल भिन्न होता है। सामान्य भाषा में समझें तो हर इंसान का आंतरिक गुण अलग होता है। हर कोई अलग-अलग प्रतिभा से सम्पन्न होता है। यानी सभी में एक जैसे गुण-अवगुण नहीं हो सकते।

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जाहिर है, सुरसम्राज्ञी लता मंगेशकर शायद बेहतरीन साइंटिस्ट नहीं हो सकती थीं। विराट कोहली बेहतरीन अभिनेता नहीं हो सकते। दीपिका पादुकोण अपने पिता की तरह बैडमिंटन स्टार नहीं हो सकती थीं। अब्दुल कलाम अच्छे कारोबारी नहीं हो सकते थे। अमिताभ बच्चन बड़े चित्रकार नहीं हो सकते थे। उसी तरह मक़बूल फिदा हुसैन शायद बहुत अच्छे संगीतकार नहीं हो सकते थे। जाने और कितने सफलतम लोग हैं जो किसी और क्षेत्र में शायद मुकाम नहीं बना सकते थे। वे अपनी प्रतिभा, हुनर, क्षमता पहचानने और उसे तराशने में सफल रहे तभी नए प्रतिमान गढ़ सके। क्या हम इन विभूतियों से दूसरी विधाओं में समानांतर उपलब्धियों की अपेक्षा कर सकते हैं? और अगर करते हैं तो क्या इससे उनकी विफलता साबित होगी??

तो फिर हर बच्चे से क्लास में अव्वल आने की अपेक्षा क्यों? क्या यह हमारी कमजोरी नहीं कि हम चार-छह विषयों का एक पाठ्यक्रम तय करें और उसे हर बच्चे की प्रतिभा या दक्षता का मानदंड बना दें? एक डंडे से सबको हांकने का मुहावरा यहीं तो चरितार्थ होता है ना? इसे तो अब विज्ञान भी खारिज कर चुका है तो फिर दोष सिर्फ बच्चों का क्यों? दरअसल हमें यह समझना होगा कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में हम व्यक्तित्व निर्माण की बजाय सिर्फ अंकमशीन तैयार करने में जुटे हैं। जैसे भी करो, परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा नम्बर लाओ ताकि आगे चलकर नोट उगलने वाली एटीएम बन सको। क्या यही जीवन की सफलता का मानक होना चाहिए? जरा ठहरकर सोचिए। और अगर वास्तव में यही मानक है तो फिर न भ्रष्टाचार गलत है, न आपराधिक जरिये से धन कमाना।

आगरा की घटना का अब दोबारा संदर्भ लीजिए। क्या यह संभव नहीं कि आरोपित छात्र पर पीड़ित से बेहतर अंक लाने, कक्षा में अव्वल आने का अनावश्यक और अनुचित दवाब डाला जाता रहा हो? ऐसा न कर पाने पर उसे घर-बाहर बौनेपन का अहसास कराया जाता हो? आमतौर पर होता ऐसा ही है। अपने तीन दशक के पत्रकारीय जीवन में मैंने ऐसे दर्जनों मामले बड़े नज़दीक से देखे हैं जिनमें इस अनुचित दवाब के कारण या तो बच्चे ने आत्मघाती या परघाती कदम उठा लिये। यकीन मानिए, उन तमाम मामलों में जितनी बड़ी गलती उन बच्चों की थी उससे कहीं बड़ा गुनाह उनका था जो बेवजह उन बच्चों से दूसरों जैसा बनने की अपेक्षा रखते थे। उनपर किसी और जैसा बनने का बेहूदा दवाब डालते थे। इसलिए आगरा का वह आरोपित छात्र भी शायद अपने आपराधिक कृत्य के लिए अकेला दोषी नहीं।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि कुदरत ने हर इंसान को कुछ खास गुण, कुछ खास हुनर, कुछ खास प्रतिभा से नवाज़ा है। इसलिए अभिभावकों-शिक्षकों से मेरा अनुरोध होगा कि वे बच्चों की तुलना किसी और बच्चे से करने की बजाय उनके आंतरिक गुणों को पहचानें, उनकी आंतरिक प्रतिभा को संवारने-तराशने की कोशिश करें-कराएं। उनपर अपने सपने न थोपें। उन्हें उड़ने दें। खूब ऊंची उड़ान। हो सकता है अपने सपनों की डोर पकड़े वे ज़िन्दगी की उस ऊंचाई तक जा पहुंचें जो हमारी-आपकी आशाओं के क्षितिज के पार हो और इसलिए हमारे मन की आंखों को फिलवक्त दिखाई न दे रही हो।

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