- मिथिलेश कुमार सिंह
नयी दिल्ली। मोदी ने पुलवामा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी। अमेरिका जैसे बड़े देश भी भारत के आतंकवाद विरोधी कदम का समर्थन करते दिखे। भारत ने रणनीतिक ढंग से युद्ध के अंदाज में हमला नहीं किया, बल्कि आतंकी ठिकाने को ही निशाना बनाया। जाहिर है कि ऐसे में भारत पर युद्ध जैसे आरोप भी नहीं लगाये जा सकते।
पुलावामा कांड के विरोध में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई को राजनीतिक, सामरिक और व्यावहारिक दृष्टि से देखने की जरूरत है। पहला यह कि पुलावामा कांड से देशभर में उपजे आक्रोश के मद्देनजर बदला लेने की वायुसेना को हरी झंडी यकीनन सरकार ने ही दिखायी होगी। सरकार यानी नरेंद्र मोदी की सरकार। दूसरा, सामरिक तौर पर पाकिस्तान पोषक आतंकियों को सबक सिखाने के लिए यह जरूरी भी था। और, तीसरा वह व्यावहारिक पक्ष है, जिसमें हर क्रिया की स्वाभाविक प्रतिक्रिया की बात हम कहते-सुनते और देखते-महसूसते आये हैं। वायुसेना की ताजा कार्रवाई पर कुछ कथित ज्ञानी बेवकूफाना अंदाज में सबूत भी मांग सकते हैं। वे 1971 के बांग्लादेश के लिए हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में वायुसेना की ऐसी हो चुकी कार्वाई की नजीर भी पेश करेंगे। ऐसा करते समय उनकी मंशा यह नहीं होगी कि वे इस कार्रवाई से नाखुश हैं, बल्कि राजनीतिक खांचे में बंटे ऐसे लोगों के भीतर बैठा वह भय होगा कि कहीं मोदी चुनाव के ऐन वक्त इसे भुना न ले जायें।
ऐसे लोगों के भय स्वाभाविक और वास्तविक हैं। यकीनन इसका चुनावी लाभ नरेंद्र मोदी को मिलेगा। यह एक ऐसा भावनात्मक और देश प्रेम का मुद्दा है, जिसके आगे देश के सारे ज्वलंत मुद्दे और राजनीतिक खींच-तान गौण हो जाते हैं। पुलवामा कांड के बाद और कल की वायुसेना की कार्रवाई के बाद सर्वदलीय बैठक में या नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी नेताओं ने भी कोई सवाल नहीं उठाया। यहां तक कि पिछली बार की सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगने वाले अरविंद केजरीवाल भी मौन साधने से कही आगे बढ़ कर इसके समर्थन में बोले और खड़े दिखे। पानी पी-पी कर मोदी को कोसने वाली बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इसे सराहा। यानी सामरिक और व्यावहारिक जरूरत को किसी भी दल या नेता ने नजरअंदाज नहीं किया।
रही बात नरेंद्रे मोदी को गिनती के कुछ ही दिनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में इसका लाभ मिलने की तो इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता। मोदी के सधे बयानों के बाद यह कार्रवाई बहुत कुछ साफ कर देती है। मोदी ने पहले कहा कि पुलवामा की घटना से जो आग आप लोगों के दिल में लगी है, वही आग मेरे सीने में भी है। फिर मोदी ने खुद ब खुद नारा दिया- मोदी है तो मुमकिन है। इस नारे के 48 घंटे के भीतर ही वायुसेना की कार्रवाई से यह साफ हो गया कि मोदी ने सुलझी और सोची-समझी रणनीति के तहत सेना को ऐसी कार्रवाई की इजाजत दी।
मोदी ने पुलवामा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ माहौल बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी। अमेरिका जैसे बड़े देश भी भारत के आतंकवाद विरोधी कदम का समर्थन करते दिखे। भारत ने रणनीतिक ढंग से युद्ध के अंदाज में हमला नहीं किया, बल्कि आतंकी ठिकाने को ही निशाना बनाया। जाहिर है कि ऐसे में भारत पर युद्ध जैसे आरोप भी नहीं लगाये जा सकते। खुद पाकिस्तान भी मान रहा है कि भारतीय विमानों ने उसकी वायु सीमा का उल्लंघन किया, लेकिन उसने किसी भी तरह की जानमाल की क्षति की बात नहीं कही है। वह क्षति को इसलिए भी नहीं कबूल कर सकता है कि भारत ने आतंकी ठिकाने को निशाना बनाया, न कि पाकिस्तान को दुश्मन मान कर नागरिक क्षेत्रों पर हमला किया।
यह भी पढ़ेंः सुरक्षा बलों ने दिखा दिया दम, जैश कमांडर समेत दो आतंकी ढेर
कुल मिला कर कहें तो सामरिक, कूटनीतिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति का नरेंद्र मोदी सरकार ने बेहतर प्रदर्शन किया है। अगर उनके इन कदमों को जनता का समर्थन मिलता है तो इसमें किसी की नुख्ताचिनी की गुंजाइश ही नहीं बचती।
यह भी पढ़ेंः 3 फरवरी को राहुल तो 3 मार्च को मोदी गरजेंगे गांधी मैदान में