गया। बिहार के गया में रोज एक साथ दर्जनों बच्चे बैठते हैं। फिर वैदिक मंत्र बोलना शुरू कर आत्माओं मोक्तेष दिलाते हैं। यह सब काम वैदिक पाठशाला में होता है। इस पाठशाला में वैदिक मंत्र के साथ कैसे पिंडदान कर आत्माओं को मुक्ति दिलानी है, यह सब बच्चों को सिखाया जाता है। 35 साल से चल रही है यह पाठशाला।
वैदिक मंत्रालय के गुरु रामाचार्य जी ने कहा कि मैं यहां पर 35 साल से वैदिक पाठशाला चला रहा हूं। इसका मकसद है कि ब्राह्मण जाति के बच्चे अच्छे से वैदिक मंत्र सीख लें और शुद्ध मंत्रोचारण के साथ अच्छे से पूजा पाठ करा सकें। हिन्दू सभ्यता-संस्कृति का ह्रास न हो, इसलिए आने वाली पीढ़ी के लिए इस तरह की पाठशालाओं की शिक्षा बहुत जरूरी है।
पाठशाला शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक चलती है। विष्णुपद के आसपास के पंडा समाज के बाल पंडे वेद मंत्र सिखने के लिए आते हैं। हर साल लाखों रुपए की कमाई इस शिक्षा के बाद छात्रों को होती है।
गया में सैकड़ों पंडा पूजा पाठ का काम करते हैं। यह सिलसिला सैकड़ों साल से पुश्तैनी चल रहा है। इस काम में नई पीढ़ी हाथ बढ़ाती रहती है। एक परिवार से कई पंडे हैं। पंडों को हर साल लाखों रुपए की कमाई होती है। पूजा-पाठ के अलावा अपने घर में पिंडदान करने वाले लोगों को ठहराते भी हैं। जिसके बदले पंडों को पैसा भी मिलता है।
यही नहीं, इन पंडों के पास कई पीढ़ियों के नाम-पते लिखे मिल जाते हैं। वह कब गया में आए थे, सारा डिटेल्स इनके पास रहता है। हर जिले और इलाके का अलग-अलग पंडा होते हैं।
मोक्ष की धरती मानी जाती है गया। बिहार के गया को मोक्ष की धरती कहा गया है। यहां पर पिंडदान करने के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं। गया के विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे, प्रेतशीला, रामशीला समेत कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है। यहां पर कई देशों से भी लोग पिंडदान करने के लिए आते हैं। गया के पंडे यहां से बाहर भी जाकर पूजा पाठ कराते हैं। जिससे अच्छी कमाई होती है।
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