आपातकाल के दरम्यान जार्ज फ़र्नान्डिस की गतिविधि का कोई अर्थ नहीं था। जैसे कोई युवा बगैर आगे-पीछे सोचे ‘थ्रील’ महसूस करने के लिए कुद-फाँद करता है, जार्ज वही कर रहे थे। अपने इस ‘एडभेंचरिज्म’ में रेवतीकांत सिंहा को तो बरबाद कर दिया उन्होने। बुरी मौत मरे रेवतीकांत जी। 65 में केबी सहाय की कांग्रेसी सरकार के विरूद्ध सरकारी कर्मचारियों का लंबा आंदोलन चलाने वाले रेवतीकांत जी लोहिया के अतिप्रिय थे। 67 के चुनाव में रेवती कांत जी पटना से केबी सहाय के ख़िलाफ़ लड़ें लोहिया की यह इच्छा थी, लेकिन महामाया बाबू को लड़ा दिया गया। लोहिया ने पटना में चुनावी भाषण तक नहीं किया। उस जुझारू समाजवादी रेवतीकांत के घर में आकर जार्ज ने डायनामाइट रखवा दिया। दो दिन उनके यहाँ लोगो से लगभग सार्वजनिक रूप से मिलते-जुलते रहे। बाद में पुलिस रेवती बाबू को पकड़ कर थाना ले गई। दो-चार हाथ मारा और रेवती कांत जी ने बयान दे दिया। उनपर मुखबिरी का आरोप लग गया। कोई उनसे बतियाने वाला नहीं था। लोग लगभग नफ़रत करने लगे थे। उनमें मैं भी था।
1977 में बाबूजी एम.पी बन गए थे। मैं भी दिल्ली में था। रेवतीबाबू को बचपन से मैं चाचा कहता आया था, लेकिन उस प्रकरण के बाद उनकी ओर ताकने की इच्छा नहीं होती थी। बाबूजी से मिलकर जब रेवती चाचा जाने लगे तो बाबूजी ने जेब से कुछ पैसा निकालकर उनकी जेब में डाल दिया। जब वे निकल गए तो मैंने बाबूजी से उनके पैसा देने का विरोध प्रकट किया। बाबूजी के चेहरे पर पीड़ा और दर्द वाली वह मुस्कान मुझे भी भी याद है। उन्होंने कहा कि ‘शिवानन्द रेवतीकांत के एगो ग़लती से जीवन भर के उनकर काम मिट जाई? रेवतीकांत त जीवन में कबहीं बम-गोली के राजनीति ना कइले। बेचारे फँस गइले। आ एगो बात जान ल-पुलिस के सामने केहु चार लाठी मे मुँह खोल देला त केहु चालीस लाठी में।’
बाबूजी की बात सुनकर मुझे अपने उपर बहुत ग्लानि हुई। रेवती चाचा के प्रति मैं अन्याय कर रहा था। जल्द मर गए। जीने की उनकी सारी प्रेरणा ख़त्म हो गई थी। यह तो ग़नीमत था कि उसी समय पटना में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया था। नहीं तो शायद मैं भी फँसता। आज याद करने पर सबकुछ बचकाना लगता है। लाड़ली जी का सफ़ारी सुट में पटना में घुमना। उस पोशाक में वैसे ही विशिष्ट लगते थे। कभी भी पकड़ा सकते थे। मेरे घर के सामने गुप्त बैठक। कैसे ‘कोड’ में तार आएगा। उसके बाद अहमदाबाद में कहाँ पहुँचना है आदि, आदि। बैठक में विनयन, रघुवति, अख़्तर, लाड़ली जी आदि। एक ढंग से मेरे घर में बैठक। आयोजन करता मैं। सबकुछ काग़ज़ पर नोट हो रहा था। यह तो कहिए कि प्रशासन ने घोषणा शुरू किया कि ‘घर ख़ाली कीजिए। शहर में पानी का प्रवेश हो रहा है।’
बैठक ख़त्म हुई। कुछ ही दिन बाद पानी में ही मैं मैं पकड़ लिया गया। बाद में विनयन ने डायनामाइट के साथ अपना ‘एडवेंचर’ सुनाया था। कहिए कि उन लोगों की जान बच गई। किसी को इस रास्ते का ज्ञान नहीं था। कोई प्रशिक्षण नहीं था। यह तो गनीमत है कि हमारे देश की पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग इतना अक्षम और निकम्मा है, नहीं तो कितने लोग जार्ज के ‘बचकाना एटभेंचर’ मे बरबाद हो गए होते।
फेसबुक पर एक वरीय पत्रकार मित्र का पोस्ट देखा तो उसी को देखकर मैंने भी लिख दिया। माफी चाहूँगा। जार्ज कभी मेरे आदर्श या प्रेरणा नहीं रहे। जो आदमी दिन में भाषण कर जिसकी वकालत करता है और शाम में उसीके ख़िलाफ़ खड़ा नज़र आता है वह किसी के लिए आदर्श या प्रेरणा कैसे बन सकता है !
- शिवानंद तिवारी