आरक्षण का जिन्न फिर बोतल से बाहर, बिहार में मचेगा घमासान

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आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर सीधे तौर पर और सबसे पहले बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।
आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर सीधे तौर पर और सबसे पहले बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।

पटना। आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर सीधे तौर पर और सबसे पहले बिहार विधानसभा के होने वाले चुनाव पर पड़ेगा। चूंकि इस बार यह जिन्न सुप्रीम कोर्ट से निकला है, इसलिए इस पर पुनर्विचार की प्रक्रिया आसान नहीं होगी। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि विपक्ष के साथ सत्ताधारी दल भी इसके विरोध में बोलने लगे हैं। रामविलास पासवान का कहना है कि पूना ऐक्ट के तहत आरक्षण का प्रवाधान हुआ था। इस पर अक्सर विवाद होता रहता है। इसके स्थायी समाधान का एक ही रास्ता है कि इसे संविधान की नौंवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाये। नौंवी अनुसूची में शामिल मुद्दों को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

इधर भाजपा कोटे से बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तो यहां तक कहने से नहीं चूकते कि आरक्षण एससी, एसटी व पिछड़ों का मौलिक अधिकार है। भाजपा के रहते कोई ताकत दलितों व पिछड़ों के आरक्षण के अधिकार को कभी छीन नहीं सकती है। यह एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीधे तौर पर चुनौती है। सुशील कुमार का इस तरह का बयान इसलिए भी जरूरी है कि इसी साल नवंबर में विधानसभा का चुनाव होना है। पिछले विधानसभा चुनाव में आरक्षण को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का खामियाजा भाजपा को भोगना पड़ा था। विपक्ष ने इसे यह कह कर भुना लिया कि भाजपा आरक्षण को खत्म करना चाहती है। मोहन भागवत ने सिर्फ इतना ही कहा था कि आरक्षण की समीक्षा का समय आ गया है।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि संविधान के खंड-3 के अन्तर्गत धारा 15 (4) और (5) के तहत आरक्षण अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों का मौलिक अधिकार है। भाजपा के रहते कोई ताकत इस अधिकार से इन वर्गों को वंचित नहीं कर सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान संशोधन कर प्रोन्नति में आरक्षण दिया तो नरेंद्र मोदी की सरकार ने दलित अत्याचार निवारण अधिनियम में 23 नई धराएं जोड़ कर उसे और कठोर बनाया तथा जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ धाराओं को शिथिल किया तो कानून में संशोधन कर उसे पुनस्र्थापित किया।

उन्होंने देश की संवैधानिक संस्थाओं से भी अपील की है कि वे आरक्षण से जुड़े अत्यंत संवेदनशील मुद्दों पर काफी सावधानी बरतें, क्योंकि यह लाखों-करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला है। यानी मोदी ने सुप्रीम कोर्ट को एक तरह से सलाह दी है। मोदी ने कहा कि एससी, एसटी को मिला आरक्षण बाबा साहेब अम्बेदकर और महात्मा गांधी की देन है। दलितों-पिछड़ों को आरक्षण दिलाने के लिए ही 1932 में महात्मा गांधी को अंग्रेजों के खिलाफ 5 दिन तक यरवादा जेल में आमरण अनशन करना पड़ा था। उसके बाद पूना समझौते के तौर पर आरक्षण का प्रावधान किया गया।

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अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने एससी, एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए संविधान में 77 वां, 81वां और 82 वां यानी तीन-तीन बार संशोधन किया तथा उनकी रिक्तियों को सुरक्षित रखने का भी प्रावधान किया। आरक्षण को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध भाजपा जहां नौकरियों में दलितों के प्रोमोशन में आरक्षण का समर्थन करती है, वहीं दलित आरक्षण में क्रीमी लेयर का कभी पक्षधर नहीं रही है। भाजपा का स्पष्ट मत है कि अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों का आरक्षण अक्षुण्ण रहना चाहिए और उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए।

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