कहीं के ढोल कहीं के तासा, पल में तोला पल में मासा। मलिकाइन के पाती के शुरुआत गंवई कहाउत से भइल बा- एह कहाउत के ऊ समझवले बाड़ी अपना अंदाज में। अपना पाती में गांव के कवनो एगो कहाउत ऊ जरूर लिखल करेली। उनकर कहाउत से कबो हमरा ई ना बुझाला कि ऊ कहे के का चाहतारी। सगरी पाती के पढ़ाकू लड़िका अइसन बगुला धेयान से पढ़ला के बाद ओकर माने-मतलब बुझाला। शुरुआत में केहू ई ना बूझ पाई कि ऊ का कहे के चाहतारी। लीं, अपनो सभे पढ़ीं, आज ऊ का लिखले बाड़ीः
पांव लागीं मलिकार। ई त गजबे होता मलिकार। हमरा देयादिन के बड़को मउसी जब भेंटाली त एगो कहाउत बराबर कहेली- कहीं के ढोल कहीं के तासा, पल में तोला पल में मासा। रउरा त जनबे करीले मलिकार कि हम तनी दिमाग के कमजोर हईं। सोझ बात केहू ना कहे त बुझइबे ना करे। जिलेबी पार के केहू कुछ कहेला त माथा के ऊपर से निकल जाला।
आज उनकर कहाउत के माने तनी मनी बुझाइल हा। संझिया बेरा पांड़े बाबा का दुआर पर घूर तापे लोग के जुटान भइल रहल हा। पांड़े बाबा टीवी के खबर सुन के निकलनी हां त लोग के सुनावत रहनी हां। हमहूं संझवत देखावत दोगहा के दुआरी ले पहुंचल रहनी हां, त हमरो कान में परल हा। उहां के कहत रहनी हां कि नीतीश जी खूब ढोल-तासा बजवले कि बिहार में अब दारू कहीं नइखे मिलत। किरिया खइले कि जबले जीयेब, बिहार में दारू ना बेचे देब। एकरा खातिर अइसन कड़ाई उनकर पुलिस करे लागल कि चोर-छिनार, डाकू-खूनी सगरी छुटहा घूमे लगले सन आ पुलिस दारू पकड़े के नाम पर बेचवावे में लाग गइल।
साले भर पहिले नू सुनाइल रहे मलिकार कि गोपालगंज में कवनो दरोगा घर में दारू राख के बेचत में पकड़ाइल रहे। रउरा ना मालूम होई मलिकार, पहिले बाइस टोला के अपना बाजार में दारू के एगो दोकान रहे, अब अपने टोला में पांच गो दोकान खुलल बा। घरभरन के त रउआ चीन्हते होखेब मलिकार। उनकर सबेरे के कुल्ला दारू से होत रहल हा त सांझ के नीन दारुए से आवत रहल हा। परसों आइल रहले त का हमरा मन में आइल, पूछ भइनी कि एह घरी कइसे काम चलत बा घरभरन। अब त नीतीश जी दारू बंद क दिहले बाड़े। उहे बतवले कि ए बहुरिया, पहिले एगो दोकान रहल हा बाजार में। कीने खातिर साइकिल चला के जाये के परत रहल हा। अब त अपने गांव में पांच गो दोकान हो गइल बा। जाहं के नइखे परत। फोन क दीं त घरे पहुंचा जाता लोग। फरक अतने आइल बा कि पहिले जवन 40 में मिलत रहे, अब ऊ 100 में मिलत बा। विलायती पीये वाला 200 के माल 500 आ 500 के बोतल 1000 में कीनत बा। कतहूं दारू बंद नइखे।
हं, त हम बतावत रहनी हां कि पांड़े बाबा का सुनावत रहनी हां। उहां के बतावत रहनी हां कि पटना के कवनो बड़का सरकारी अस्पताल में चालीस-पचास बोतल दारू पकड़ाइल बा। पटना में दू दिन पहिलहूं कवनो दारू के कारखाना पकड़ाइल रहे। घरवो कवनो कब्जावल जमीन पर बनल रहेे। कब्जा हटावे खातिर जब बुलडोजर चलतत त दारू के कारखाना ओइमें मिलल। ई हाल त ओइजा के बा, जहवां दारूबंदी के कानून बनावे वाली सरकार ओकर मुखिया नीतीश जी बइठे ले। अब रउरे बताईं मलिकार, जब अस्पताल में दारू पकड़ाता त अउरी जगहा के बारे में का कहल जाई। खूब ढोल-तासा नीतीश जी दारूबंदी के लेके बजवले, बाकिर पल भर में उनकर कानून तोला-मासा हो गइल।
अब लगन पताई शुरू होता मलिकार। सुरसती पूजा के दिने बियाह के अबही ले पांच गो काड आ गइल बा। रउरा त रही ले ना, हमरा केह-केहू के खोज-कह के भेजे के परेला। कहीं तिलक के दिने भेज के नेवता करा दीले, त कहीं बियाह के दिने भा दोसरका दिने। का कइल जाई मलिकार। रउरा त नेवतरही एतना बढ़ा दिहले बानी कि सांसत हमरा होता। एही से पुरनिया लोग कह के गइल बा- नांव, नेंव आ नेवतरही बेसी ना बढ़ावे के। आज एतने, बाकिर बाद में।
राउर, मलिकाइन
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