कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिलाये

0
440
आरक्षण विरोधी कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिला दिये। सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह आरोप लगाया है।
आरक्षण विरोधी कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिला दिये। सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह आरोप लगाया है।

पटना। आरक्षण विरोधी कांग्रेस से दोस्ती करने वालों ने कर्पूरी ठाकुर के आदर्श मिट्टी में मिला दिये। सांसद सुशील कुमार मोदी ने यह आरोप लगाया है। यह एक बेशर्म पाखंड था कि चार्टर प्लेन में बर्थडे केक काटने वाले राजकुमार ने खुद को कर्पूरी ठाकुर का सबसे बड़ा समर्थक बताने वाला ट्वीट किया और उनकी पार्टी ने कर्पूरीजी के आदर्शों की बात की! सांसद सुशील कुमार मोदी का इशारा आरेजेडी नेता तेजस्वी यादव की ओर था। उन्होंने कहा कि राजद के पास तो बेनामी सम्पत्ति बनाने, बालू माफिया की फंडिंग से राजनीति करने और काम के बदले लोगों की जमीन लिखवा लेने के नये आदर्श हैं।

मोदी ने कहा कि जिस राजद ने अपने शासन के दौरान बिहार में पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग के लोगों को पंचायत चुनाव में आरक्षण नहीं दिया, जिसने समाजवाद  को छोड़ कर परिवारवाद को बढ़ावा दिया और जिसने सत्ता का दुरुपयोग बेनामी सम्पत्ति बनाने में किया, उसने ऐसे जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती को अपवित्र किया, जिन्होंने वंचित वर्गों को आरक्षण दिया, सत्ता में रह कर सादा जीवन जिया और ईमानदारी ऐसी कि दो बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपना मकान नहीं बनवाया।

- Advertisement -

राजद ने सत्ता के लिए उस कांग्रेस से हाथ मिलाया, जिसने आरक्षण का विरोध किया और काका कालेलकर समिति की रिपोर्ट लागू नहीं की। दूसरी ओर कर्पूरी सरकार में शामिल जनसंघ के समर्थन से 27 फीसद आरक्षण का फार्मूला लागू हुआ और अब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहले ही कार्यकाल में पिछडा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। राजद के विद्वान बतायें कि 100 बार निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त करने से लेकर आपातकाल लगाने तक संविधान की धज्जियां किसने उडा़यीं? किससे संविधान को खतरा रहा? क्या वे आरक्षण विरोधी कांग्रेस से नाता तोड़ेंगे? कर्पूरी ठाकुर ने कभी गैरकांग्रेसवाद से समझौता नहीं किया था।

कर्पूरी ठाकुर के बारे में जानिए 10 खास बातें

सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

इस बीच कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की सभी दलों ने मांग की है। कर्पूरी ठाकुर के बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने 10 खास बातें बतायी हैं, जिन्हें सभी को जनना चाहिए। उनका कहना है कि इन दस में से पांच बातें भी आज के किसी नेता में हों तो आश्चर्य की बात होगी।

  1. कर्पूरी ठाकुर बिहार में दो बार मुख्यमंत्री व एक बार उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे। शिक्षा मंत्री भी। किंतु झोपड़ी में जन्मे और जब उनका निधन हुआ तो उनके पास उस पुश्तैनी झोपड़ी के अलावा कहीं कोई घर नहीं था।
  2. पटना के कौटिल्य नगर में अनेक मौजूदा-पूर्व विधायकों -सांसदों ने सस्ती दर पर जमीन ली। कर्पूरी जी को भी दिया जा रहा था। पर,उन्होंने हाथ जोड़ लिए। कहा कि मुझे नहीं चाहिए।
  3. उनके जीवन काल में उनके कोई परिजन या रिश्तेदार  राजनीति में कोई पद नहीं पा सका। कर्पूरी जी ने पाने नहीं दिया।
  4. एक बार डा. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि हमारे दल में देश में यदि कर्पूरी जी जैसे पांच नेता होते तो मैं समाजवादियों को केंद्र की सत्ता दिलवा देता।
  5. कर्पूरी ठाकुर 1984 में लोकसभा चुनाव हार गए। पर उसके अलावा वे 1952 से लेकर जीते- जी कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
  6. एक बार  कर्पूरी ठाकुर ने पटना के एक पैसे वाले को फोन किया, ‘ …….. जी, पार्टी के लिए कुछ पैसों की जरूरत है। मैं आ रहा हूं।तैयार रखिएगा।’ उसने कहा कि ‘ठीक है ठाकुर जी।’ फिर एक रिक्शे पर सवार होकर अपने एक  सहयोगी  के साथ पूर्व मुख्यमंत्री वहां गए। उसने पूछा कि ‘मुझे कितना करना होगा?’ कर्पूरी जी ने कहा कि ‘यदि आप पांच हजार दे देंगे तो हमारा काम चल जाएगा।’  उसने तुरंत लाकर दे दिया। कर्पूरी जी जब वहां से निकलने लगे तो उस व्यक्ति ने उनके सहयोगी को अलग हटा कर कहा कि कैसे हैं आपके नेता जी! मैंने तो 50 हजार तैयार रखा था।’ लौटते समय सहयोगी ने रिक्शे पर उनसे कहा कि पार्टी को पैसे की इतनी दिक्कत है। फिर भी  आपने उससे सिर्फ पांच हजार क्यों मांगा?  50 देने को तैयार था। इस पर कर्पूरी जी कहा कि ‘………जी, 5 हजार चंदा होता है और 50 हजार घूस। क्या मुझे एडवांस घूस वसूलते फिरना चाहिए?’
  7. कर्पूरी जी देर शाम कभी किसी आई.ए.एस. अफसर को फोन नहीं करते थे। कहते थे कि शाम में वे लोग कुछ खाते-पीते हैं, अपनी दुनिया में रहते हैं। उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए। कर्पूरी जी अपने नौकर और पुत्रों को छोड़कर किसी को तुम नहीं कहते थे।
  8. एक बार कर्पूरी जी के साथ मैं पूर्व मुख्यमंत्री बी.पी.मंडल के पटना स्थित वाटर टावर रोड स्थित सरकारी आवास गया था। दरवाजा भीतर से बंद था। मैंने सांकल जरा जोर से बजा दिया। कर्पूरी जी ने मुझे समझाया, जोर से बजाना ठीक नहीं है। वहां बरामदे में एक बेंच व कुर्सी रखी हुई थी। कर्पूरी जी बेंच पर बैठ गए। मंडल जी बाहर निकले। वे इकलौती कुर्सी पर बैठ गए। मंडल जी ने कर्पूरी जी के लिए दूसरी कुर्सी नहीं मंगवाई। याद रहे कर्पूरी जी भी मुख्य मंत्री रह चुके थे। उनकी जगह आज का कोई अन्य नेता होता तो कुर्सी न मंगाने को ही मुद्दा बना सकता था।
  9. 1972 की बात है। कर्पूरी ठाकुर बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। विधानसभा भवन स्थित अपने आफिस के मुख्य टेबल पर मेरे  (मैं तब उनका निजी सचिव था) व कर्पूरी जी के लिए दोपहर का खाना आया। मैं खाना खाकर पहले ही उठ गया। हाथ धोने बेसिन की ओर चला गया। जूठी थाली टेबल पर ही छोड़ दी थी। कर्पूरी जी ने जब अपना खाना खत्म किया तो उन्होंने एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से मेरी थाली उठाई और कमरे के बाहर रख दिया। कर्पूर्री जी भी हाथ धोने चले गए। बेसिन थोड़ा दूर था। इस बीच मैं आ गया। वहां पहले से बैठे प्रणव चटर्जी ने पूछा, ‘आपको पता है कि आपकी थाली किसने उठाई?’ कहा कि दुर्गा वेटर ने उठाई  होगी। बक्सर के  पूर्व विधायक  प्रणव जी ने कहा कि ‘नहीं आपकी जूठी थाली खुद कर्पूरी जी उठाई और बाहर रखा।’ यह सुनकर मैं शर्मिंदा हो गया।
  10. 1977 में मुख्य मंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर दिल्ली गए थे। बिहार भवन में टिके थे। वहां उन्हें मंत्रिमंडल के गठन को लेकर जनता पार्टी हाईकमान से विचार-विमर्श करना था। बिहार के अनेक विधायक उनसे मिलना चाहते थे। कर्पूरी जी प्रातःकाल ही बिहार भवन से निकल जाते थे।देर रात लौटते थे। जनता पार्टी के एक  बुजुर्ग विधायक बिहार भवन स्थित मुख्य मंत्री के कमरे में उनकी ही बिछावन पर सो गए।  मुख्यमंत्री जब बिहार भवन लौटे तो देखा कि फलां बाबू साहब उनकी ही बिछावन पर सो गए है। कर्पूरी जी ने उन्हें नहीं जगाया। मुख्यमंत्री फर्श की कालीन पर सो गए। बाबू साहब रात में लघुशंका के लिए उठे। कमरे में अंधेरा था। कर्पूरी जी की कलाई पर अपना पैर रखते हुए वे शौचालय गए और लौटकर फिर उसी बिछावन पर सो गए। बाबू साहब को उम्मीद ही नहीं थी कि कोई फर्श पर भी सो सकता है। उधर कर्पूरी जी को कलाई में तो भारी दर्द हुआ, किंतु वे  जान बूझकर कुछ नहीं बोले। दर्द सह लिया। बाद कर्पूरी जी के निजी सचिव लक्ष्मी साहु ने यह बात कुछ लोगों को बताई।

यह भी पढ़ेंः जननायक का जन्मदिनः कर्पूरी ठाकुर सही मायने में जननायक थे(Opens in a new browser tab)

यह भी पढ़ेंः कर्पूरी ठाकुर में जातीय कटुता की कभी धमक नहीं सुनाई दी(Opens in a new browser tab)

यह भी पढ़ेंः जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगी बेमिसाल व अनुकरणीय है(Opens in a new browser tab)

- Advertisement -