कोई कुछ भी कहे, बिहार में भाजपा 10 से ज्यादा सीटें जदयू को नहीं देगी

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फाइल फोटो

पटना। सीटों के तालमेल को लेकर बिहार एनडीए में फिलहाल शांति है और जदयू के सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह के मुताबिक अगले महीने तक सीट शेयरिंग पर फैसला हो जायेगा। अमित शाह बिहार के पिछले दौरे में कह गये कि उन्हें साथियों को संभालने आता है। उनका यह बयान पटना दौरे के वक्त तब आया था, जब सीटों के बंटवारे को लेकर नीतीश को बड़ा भाई का दर्जा देने की मांग जदयू ने जोर-शोर से उठाई थी।

भाजपा के अंदरखाने वाकई बिहार में सीट शेयरिंग का फारमुलातैयार कर लिये जाने की बात बतायी जा रही है। इस फारमूले के तहत जदयू को 10 और बाकी सहयोगियों में लोक जनशक्ति पार्टी को 6 एनडीए से नाराज बताये जा रहे रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा को 4 सीटें दी जानी हैं। भाजपा अपनी जीती 22 सीटों को छोड़ने के लिए तैयार तो नहीं है, लेकिन बारगेनिंग में वह अपनी दो सीटों पर समझौता तकर सकती है।

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भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में दो तरह की रणनीति पर काम कर रही है। नैतिक दबाव व तार्किक तरीके से वह अपने साथी दलों को साधने की कोशिश कर रही है। जदयू के राज्यसभा सदस्य हरिवंश को राज्यसभा का उपसभापति बना कर भाजपा ने जदयू पर नैतिक दबाव तो बना ही दिया है। उसके इस एहसान के कारण जदयू ज्यादा जोर देने की स्थिति में नहीं रहेगा। जहां तक तर्क से जदयू को घेरने की बात है तो भाजपा के पास यह आधार है कि उसने 22 सीचें जीती थीं और जदयू ने सिर्फ 2 सीटों पर ही सफलता पायी थी।

जहां तक लोजपा और रालोसपा का सवाल है तो उनके साथ भी भाजपा नाइंसाफी तो नहीं ही कर रही है। इसलिए उन्हें उनकी जीती सीटों से कम इस बार भी भाजपा देने की बात नहीं कर रही। अब उन पर सारा दारोमदार है कि वे दूसरा रास्ता अख्तियार करते हैं कि भाजपा के साथ मन मार कर बने रहने को तैयार होते हैं।

भाजपा ने 2019 चुनाव के लिए बिहार में बी प्लान भी तैयार रखा है। इसके तहत अगर सहयोगी दल अपना अलग रास्ता चुनते हैं तो वह सभी सीटों पर अकेले चूनाव लड़ेगी। यही वजह है कि सीट शेयरिंग की परवाह किये बगैर उसका जमीनी कार्य पंचायत और बूथ स्तर तक जोर-शोरो से चल रहा है। इसे देख कर साफ अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा सीट शेयरिंग और स्वतंत्र लड़ाई, दोनों को साथ लेकर चल रही है।

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