- डा. संतोष मानव
कोरोना हमारे संस्कार पर हमला कर रहा है। हमारे पारिवारिक जीवन पर आघात कर रहा है। यह हमें मिटाने पर तुला है। आग कितनी ही खौफनाक सही। उसकी लपटों की उम्र थोड़ी होती है। हे बंधुओ, निश्चिंत रहिए, कोरोना वायरस थोड़े दिनों का अनचाहा मेहमान है। जाएगा यह भी, जल्द ही, अपने पूर्ववर्तियों की तरह। कौन वायरस कितने दिन टिका है? या तो यह खुद गायब हो जाता है या इससे जनित रोगों के लिए दवा/ वैक्सीन ईजाद कर ली जाती है।
स्मरण कीजिए जीका, मारबर्ग, इबोला, सार्स या स्वाइन फ्लू अब कहां हैं? एक समय स्वाइन फ्लू ने अकेले भारत में 1100 लोगों की जान ली थी। जैसे बाकी गए, कमीना कोरोना भी जाएगा। हां, फिलहाल तो इसने कोहराम मचा रखा है। कल एक शुभचिंतक ने फोन पर जो बताया, वह सुनिए। धनबाद से फोन था- अब तो खांसने या छींकने में भी डर लगता है कि पड़ोसी कहीं अस्पताल या पुलिस वालों को फोन न कर दे। ऐसे ही एक सज्जन ने बताया कि खाने-पीने में भी भय है। सब्जी वाले की हांक हड़का देती है। क्या पता, ककड़ी के साथ कोरोना भी लाया हो! इसलिए दूर से पकड़ते हैं टोकरी। सब्जी के दाम ठेला पर फेंक भागते हैं अंदर। मलते हैं सेनेटाइजर। बदलते हैं कपड़ा। और मन भर कोरोना को गरियाते हैं।
पूरा खानदान पलट देते हैं। काली कीरिया भाई जी, इतना डर-भय पूर्व के विषाणुओं ने नहीं दिया था। कोरोना कुछ ज्यादा ही डरावना और जहरीला है। खबरें भी डराती हैं। उस दिन अखबार बांच लिए। ई-पेपर देख लिए। बैठे टेलीविजन के पास। स्वीच आन करते ही एक न्यूज चैनल की खबर से नर्वस हो गए। खबर थी कि पानी में भी कोरोना के अंश मिले हैं। पेरिस की सेन नदी से लिए गए सैम्पल में। खबर यह भी है कि बिल्ली तक में कोरोना है। दिल्ली में पिज्जा वाला लड़का भी कोरोना दे गया था। हे भगवान, बचा क्या?
नोट लेने में भी लोग कतरा रहे हैं। बीच में अखबार तक बंद कराने लगे थे लोग। डर की और भी वजहें हैं। एक तो यह कि हजारों कोरोना पाजीटिव ऐसे भी हैं, जिनमें कोरोना के लक्षण भी नहीं पाए गए। न सर्दी, न खांसी, न बुखार, न पेट दर्द, न बदन ऐंठना, न गला सूखना पर निकले कोरोना पाजीटिव। ऐसे हालात में डरना लाजिमी है भाई। किसे और कैसे कहें डरपोक? बदमाशी तो कोरोना की है जी, जो इतना डरा रहा है।
एक अखबार ने चौंकाने वाली खबरें छापी है। एक छात्रा ने उस अखबार को बताया कि वह बीस दिनों से घर में थी। एक दिन कुछ मिनटों के लिए दवा दुकान गई थी, पर निकली कोरोना पाजीटिव। है न हैरत की बात? कोरोना की हिमाकत देखिए। यह राष्ट्रपति भवन और लोकसभा सचिवालय तक दस्तक दे चुका है। थल सेना, जल सेना को भी नहीं छोड़ा। जहाँ सब चकाचक, सारी सावधानी, वहां कैसे कोरोना? तो फिर रास्ता क्या है? कैसे चलेगी जिंदगी? जिंदगी चलेगी। यह कभी रुकती नहीं। हमें कुछ हिदायदों, कुछ सावधानी के साथ जीना होगा। बहुत जी घबराए, तो मिर्जा गालिब का शेर याद कीजिए- गुजर जाएगा यह दौर भी गालिब। जरा इत्तमीनान तो रख । खुशी ही नहीं ठहरी, तो गम की क्या औकात है।
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पर बात यहीं तक नहीं है। अब तो अपने खून ने भी साफ कह दिया, मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं- कोरोना का कहर/ डर ऐसा कि रिश्ते ही बेमानी होने लगे हैं। सुना है कभी कि पुत्रों या पुत्र के होते हुए भी पिता का अग्नि संस्कार सरकारी अधिकारी ने किया! नहीं सुना है, तो सुनिए कि कोरोना ने यह संभव कर दिया है। भोपाल के पास की घटना है। एक बुजुर्ग की जान कोरोना ने ले ली। कायदे से पुत्र को अग्नि देनी थी। लेकिन, पुत्र ने इनकार कर दिया। सरकारी अधिकारियों ने समझाया। बेटा नहीं समझा। मां ने भी बेटे का ही साथ दिया। अग्नि अधिकारी ने दी और बेटा पचास फिट दूर खड़ा रहा।
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दूसरा दृश्य देखे- अभी-अभी जन्मी बच्ची मां से अलग कर दी जा रही है। डॉक्टर कहते हैं- मां कोरोना पाजीटिव है। कहीं बच्ची पर कोरोना का साया न पड़ जाए, इसलिए मां-बेटी अलग-अलग। हे ईश्वर! यही दिन देखना बाकी था। यह दिन भी आना था? मर जाओ कोरोना। क्या यह कोरोना हमारे पारिवारिक जीवन को समाप्त करने आया है? अगर वायरस है, संक्रमण का भय है, तो सावधान होना ही चाहिए, पर ऐसी सावधानी कि संस्कार को ही भूल जाएं? सुना था कभी कि कैंसर की पुष्टि होते ही मरीज हिम्मत हार जाता था। जीवन की उम्मीद धुंधली हो जाती थी। कोरोना का भय इससे आगे चला गया है। कोरोना पीड़ितों की आत्महत्या की खबरें आने लगी हैं। अस्पतालों से मरीजों के कूदने की घटनाएं घटने लगी हैं। दुष्यंत की पंक्तियाँ हैं- कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं। संदर्भ अलग हो सकता है, पर हो ऐसा ही रहा है।
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मध्य प्रदेश में अच्छे-भले दो थानेदार देखते ही देखते कोरोना की बलि चढ़ गए। इंदौर शहर में दो डॉक्टरों के साथ भी ऐसा हुआ? अपना देश तो अब तक ठीक है, इटली-स्पेन में तो अंतिम दर्शन भी नहीं हो रहा है। मृत देह को सेना के लोग ले जाते हैं, फिर सारी जिम्मेदारी उनकी होती है। परंपरा, विधि-विधान सब खत्म। आपका अपना अस्पताल गया, अब आप उससे मिल नहीं सकते। ठीक हुआ तो आ जाएगा, नहीं तो भूल जाइए कि उसका क्या हुआ? यानी मानव, मानवीय संबंध को मिटाने पर तुला है कोरोना।
इस घटाटोप अंधेरे के बीच उत्साहित करने वाली खबरें भी आ रही हैं। खबर है कि कोरोना के वैक्सीन का जानवरों पर सफल प्रयोग हो चुका। अब इंसान पर हो रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि सितंबर तक वैक्सीन बाजार में आ जाएगी- ये रास्ते ले ही जाएगी मंजिल तक, तू हौसला तो रख। कभी सुना है कि अंधेरे ने सुबह न होने दी।
(लेखक दैनिक भास्कर, हरिभूमि, राज एक्सप्रेस के संपादक रहे हैं)
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