- सरोज सिंह
पटना। कोरोना का कहर काबू में नहीं आया और लाक डाउन-2 के बाद भी जारी रहा तो बिहार विधानसभा के चुनाव पर पर भी संकट के काले बादल मंडराने लगेंगे। अगर लाक डाउन 3 मई से भी आगे बढ़ा तो यह तय मानिए कि समय पर बिहार में चुनाव करा लेना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी और कड़ी चुनौती होगी। फिर अगर चुनाव समय पर नहीं हुए तो सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाना मजबूरी हो जाएगी।
गौरतलब है कि सामान्य परिस्थितियों में 10 सितंबर तक बिहार में चुनावी डंका बज जाना चाहिए। 2015 में 9 सितंबर को चुनावी समर का आगाज हो गया था। चुनाव पांच चरणों में हुए थे और पहले चरण का मतदान 12 अक्टूबर को हुआ था। अंतिम चरण का मतदान 5 नवंबर को हुआ। लेकिन इस बार परिस्थितियां बहुत ही विकट हैं। पूरे देश के साथ बिहार में भी लाक डाउन है। इस कारण चुनाव आयोग अपनी पूरी क्षमता के साथ चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप नहीं दे पा रहा है।
सबसे ज्यादा परेशानी ईवीएम को लेकर हो रही है। बिहार में इस दफा M3 मॉडल के ईबीएम से मतदान होना तय हुआ है। बिहार में 72227 बूथ हैं। मोटे तौर पर 90000 से 100000 ईवीएम की जरूरत हो सकती है। ये सारे ईवीएम दूसरे राज्यों से बिहार को मंगाने हैं। बहुत सारे ईवीएम तो तमिलनाडु और कर्नाटक से आने हैं। कहने का अर्थ यह है कि करोना संकट के कारण आवाजाही में बहुत सारी परेशानियां आ रही हैं। कायदे से तो अब तक सारे ईवीएम बिहार में अलग-अलग जिलों में चले जाने थे, लेकिन कोरोना के कारण यह नहीं हो पाया। चुनाव आयोग के सामने संकट केवल यही नहीं है, बल्कि आने वाले बरसात के दिन भी आयोग की तैयारियों को कष्टदायक बना सकते हैं।
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इन दोनों चुनौतियों से निपटने के बाद अगर ईवीएम आ भी गए तो उसकी फर्स्ट लेवल चेकिंग में महीने-डेढ़ महीने का वक्त लगता है। इन सारी चुनौतियों से निपटने के बाद चुनाव आयोग के सामने सबसे असली परीक्षा सुरक्षित तरीके से मतदान कराने की होगी। कोरोना संकट के कारण चुनाव आयोग को इस बार अपने बूथों पर सुरक्षा और स्वच्छता के खास इंतजाम करने होंगे, ताकि कोरोना का संक्रमण लोगों तक न फैल पाए।
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चुनाव आयोग को पहली बार इस तरह की चुनौतियों का सामना करना है। वोट डालने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती हैं और ईवीएम का बटन दबाना पड़ता है। स्वाभाविक है कोरोना में इन दोनों चीजों के कारण कोई संक्रमित न हो जाए, इसका ख्याल चुनाव आयोग को रखना होगा और इसकी तैयारियां भी जोर-शोर से शुरू कर देनी होंगी। चुनाव आयोग इन सारी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है, लेकिन सबसे अधिक दिक्कत वक्त की है।
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10 सितंबर तक चुनाव का बिगुल फूंकने की संवैधानिक बाध्यता है और इस समय की मर्यादा में ही चुनाव आयोग को अपने सारे काम निपटाने हैं। हालांकि चुनाव आयोग पूरी मेहनत से बिहार विधानसभा का चुनाव तय समय पर कराने में जुटा हुआ है, लेकिन आयोग के सामने कुछ दिखने वाली चुनौतियां हैं और कुछ न दिखने वाली चुनौतियां हैं। मसलन लाक डाउन की मियाद कब खत्म होगी, इसका आकलन करना अभी किसी के वश की बात नहीं है। 3 मई तक की घोषणा हो चुकी है। आगे की बात परिस्थितियों पर निर्भर करती है। सभी चाहते हैं कि 3 मई को लाक डाउन पूरी तरह खत्म हो जाए, पर क्या होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। ऐसे हालात चुनाव आयोग के काम को और भी कठिन बना दे रहे हैं। कोरोना संकट के कारण ऐसे ही तैयारियां प्रभावित हो चुकी हैं। इसके बाद बरसात का मामला है। और इस सबसे भी जरूरी कोरोना से बचाव के गाइडलाइन के मुताबिक मतदान कराना है। चुनाव आयोग के लिए यह अपने तरह का नया और पहला अनुभव होगा। इसलिए ऐसा लगता है कि बिहार विधानसभा के चुनाव समय पर करा लेना बहुत ही मुश्किल भरा काम है।
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