कोरोना संकट में छिपा है संस्कार और संयमित जीवन शैली का संदेश

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कोरोना संकट से निपटने में लगे लोगों के उत्सहवर्द्धन के लिए थाली बजाओ अभियान में शामिल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)
कोरोना संकट से निपटने में लगे लोगों के उत्सहवर्द्धन के लिए थाली बजाओ अभियान में शामिल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)

कोरोना संकट ही नहीं, संस्कार और संयमित जीवन शैली का संदेश लेकर भी आया है। संकट के साथ अवसर के अनेक द्वार भी खुलते ही हैं। जीवन के हर क्षेत्र में संयम का पाठ पढ़ा रहा है कोरोना की महामारी का संकट। हिन्दुस्तान की यह विशेषता रही है कि वह संकट को भी उत्सव में बदलने की कला जानता है। कोरोना को अलग अंदाज में देख रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्याम किशोर चौबे। उन्होंने लिखा, जरा आप भी पढ़ लेंः

कोरोना का उत्सवी संदेश

  • श्याम किशोर चौबे
कोरोना संकट के मद्देनजर मास्क पहने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
कोरोना संकट के मद्देनजर मास्क पहने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)

शीर्षक पढ़ते ही अजीब लगा होगा, लेकिन सच मानिए, यह अजीब हरगिज नहीं है। हम भारत के लोग भारत को जीवंत बनाये रखने के लिए उत्सवधर्मिता को अंगीकार कर चुके हैं। कोरोना जैसे हिंसक वायरस को मात देने में लगे हुए वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, मेडिकल कर्मियों और सरकारी अमले-काफिले के उत्साहवर्द्धन के लिए ही सही, कोरोना के ही नाम पर हाल ही में हम थाली-ताली पीटने और दीप जलाने से लेकर बम-पटाखे भी फोड़ चुके हैं। यानी आपदा को भी उत्सवी माहौल में बदले की अदाकारी हमें आती है।

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इस वायरस से उत्पन्न वैश्विक महामारी कोविड-19 के श्याम पक्ष से निपटने में सारी दुनिया लगी हुई है। हर कोई इसे कोस तो  रहा ही है और इससे डर भी रहा है। कोसना ही चाहिए और डरना भी चाहिए। कई शूर-वीर ‘राजा-महाराजा’ भी क्वारंटाइल होकर इससे पनाह मांग रहे हैं तो हम-आप किस खेत की मूली हैं? इसके बीत जाने अथवा इस पर नियंत्रण पा लेने के बाद की दुनिया कैसी होगी, इस पर भी यत्र-तत्र विमर्श प्रारंभ हो चुका है। लेकिन क्षण भर रूककर इसके उत्सवी और उज्ज्वल पक्ष पर भी विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि धीर-वीर कभी घबराते नहीं। वे हमेशा चैतन्य रहते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा कर पाना उन्हीं के बूते की बात है। हर भारतीय धीर-वीर है, इसलिए उसको हर पक्ष पर सोच-विचार लेना चाहिए, ताकि वक्त-जरूरत काम आए।

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कोरोना ने जीवन जीने का हमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण तरीका याद दिला दिया है, जिस पर देश के सभी 130 करोड़ लोग अमल कर रहे हैं। वह तरीका है अनुशासन। भारत ने आजादी के बाद पहली मर्तबा अनुशासन के पाठ पर 1974 की इमर्जेंसी में अमल किया था। तब ट्रेनें समय पर चलती थीं और पीडीएस से राशन भी समय पर मिलता था। तब हर दुकान में वाजिब कीमतों की लिस्ट टंगी रहती थी। तब आप बेमतलब हल्ला-गुल्ला नहीं कर सकते थे। तब अखबार कूढ़ते हुए मन ही मन विरोध किया करते थे। अब अखबारों ने खुद ही अपने स्पेस कम कर दिये हैं। आज की पीढ़ी को यह सब बताया जा रहा है, जबकि उस दौर के नौजवान, जो अब बुजुर्ग बन चुके हैं, को सारी बातें याद ही होंगी। भूल गये हों तो कोरोना याद दिला दे रहा है। कि आप संयमित रहें।  कि आप संतुलित रहें। कि आप सोच-समझकर कदम बढ़ाएं। कि आप अपनी देहरी की लक्ष्मण रेखा बेमतलब ने लांघें। कि आप संयमित भोजन करें। कि ज्यादा मन और जीभ को दौड़ाएंगे भी तब भी नसीब ही नहीं होगा। कि मन और जीभ के चक्कर में लक्ष्मण रेखा लांघेंगे तो डंडे तो पड़ेंगे ही, केस-मुकदमे का भी चक्कर हो जाएगा। कि भागमभाग की जीवन-शैली में आप प्रकृति को भूल गए थे। कि अब सुकून से अपनी बालकनी में गार्डेन चेयर या मोढ़े पर बैठकर जरा आसमान को निहारें। कि इधर-उधर उड़ रही चिड़ियां से भी बातें करें। कि सूर्यदेव के भरपूर दर्शन करें और निश्शुल्क विटामिन डी प्राप्त करें। कि अपने बच्चों को चंदा मामा से बातें करना सिखाएं। कि अपने बच्चों को आप ही पढ़ाएं, बाकी ज्ञान आनलाइन मिल जाएगा। कि आप ध्रुवतारा देखें और मानें कि जीवन का यही ध्रुव सत्य है। कि आसपास के पेड़-पौधों की रंगीनियां देखें, उनकी मस्ती देखें। कि हो सके तो अपने गार्डेन, किचेन गार्डेन या गमला गार्डेन के फूल-पौधों की सेवा करते हुए उनसे मुसीबत में भी मुस्कुराना सीखें। कि वक्त-जरूरत यदि आप लक्ष्मण रेखा के बाहर जाते भी हैं तो देखें कि कैसे सड़कों पर आराम से चला जा सकता है। कि हर चैक-चैराहे पर पुलिस तैनात है तो महसूस करें कि सड़कें प्लाइ करने के लिए बनी हैं, फ्लाइ करने के लिए नहीं। कि वास्तव में भारतीय पुलिस अब अंग्रेजों वाली नहीं है। कि वह आपकी मित्र है। कि वह गा-बजाकर आपको आगाह करती रहती है। कि लक्ष्मण रेखा लांघने पर वह समझाती-बुझाती है। कि कोरोना का यह प्रताप कि चोरी-डकैती, हत्या, दुष्कर्म, छिनतई-बटमारी आदि-इत्यादि मुक्त भारत में आप रहते हैं।

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यह भी कि इतना संयमित और अनुशासित जीवन बिताने पर यह भी देख ही लें कि देखते-देखते अस्पतालों में बीमारों की तादाद खुद-ब-खुद कैसे घट गई। यह भी कि डीजल-पेट्रोल का रोना कैसे कम हो गया। कि आदि ग्रंथों में वर्णित आराम से जीवन जीने का आनंद क्या है। कि ज्ञान-विज्ञान की 21वीं सदी में आपको और केवल आपको ही आदर्श जीवन जीने का यह विलक्षण मौका मिला है। कि आज के बच्चे कल के बूढ़ों को गाथा इमर्जेंसी की नाईं बतायेंगे कि 2020 का भी एक जीवन था।

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यदि और बेशक आप अस्वस्थ होने की शंका-आशंका के बीच अपने को पहले से ज्यादा स्वस्थ महासूस कर रहे हैं तो सच मानिए यह कोरोना की ही कृपा है। क्यों न कोरोना मुक्त दौर में भी आप ऐसे ही हमेशा स्वस्थ रहें! बहुत धन-दौलत कमा कर यदि आपको इंग्लैंड या नीदरलैंड में मुंह छिपाए नहीं फिरना है तो यह भी सच है कि मृत्यु के बाद आपको अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाना है, इसलिए सुकून की रोटियां खाइए और चैन की नींद लीजिए। बाकी काम शासन-प्रशासन और वैज्ञानिकों पर छोड़ दीजिए। वे जैसे ही इससे निपट लेंगे, आपको फिर से दौड़-भाग  के लिए तैयार-तत्पर हो जाना है। इसलिए यह अद्भुत उत्सवी अवसर है। अभी शक्ति संचय करिए। आत्मबल बढ़ाइए और प्रभु के गुण गाइए।

नैतिक चेतावनी: ज्यादा उत्साह दिखाने की जरूरत नहीं। कम से कम फिलहाल समाज में शारीरिक दूरी बनाये रखें, लेकिन सामाजिक सोच को द्विगुणित कर दें। कोरोना इफेक्ट के बाद यही काम आएगा।

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