- ओमप्रकाश अश्क
कोविड- 19 की वजह से देश बड़ी आर्थिक तबाही की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था का आकलन करने वाली एजेंसियां आर्थिक विकास दर के अनुमान घटा रही है। ऐसा सिर्फ भारत के साथ ही नहीं हो रहा, बल्कि वैश्विक स्तर पर यह हालत बनी है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का ताजा अनुमान यह बताता है कि कोविड-19 की वजह से दुनिया भर में जो मंदी आई है, उसका असर भारत पर भी व्यापक रूप से पड़ने वाला है। इस वर्ष के लिए आईएमएफ ने भारत की आर्थिक विकास की दर 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इतनी बड़ी कमी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के तमाम विकसित और अति विकसित देशों में सर्वोच्च स्तर पर रहने का अनुमान है। दूसरे नंबर पर चीन की अर्थव्यवस्था होगी, जहां आर्थिक विकास की दर 1.2 रहने का अनुमान है।
विकसित राष्ट्रों में अमेरिका, इटली, स्पेन और ब्रिटेन जैसे बड़े मुल्क ऋणात्मक वृद्धि के साथ पीछे की कतार में खड़े दिख रहे हैं। आईएमएफ का यह अनुमान तब आया है, जब कोविड-19 का कहर-असर महज तीन-चार महीने में ही दिखा है। आने वाले समय में इसकी स्थिति कैसी रहती है, यह इससे भी विकराल रूप लेता है या काबू में आता है, उस पर निर्भर करेगी दुनिया की अर्थव्यस्था की असली स्थिति।
जहां तक रोजगार के सवाल हैं तो कोविड-19 ने सब की कमर तोड़ दी है। पिछले महीने (मार्च) आए एक आंकड़े के मुताबिक इस बीमारी ने 50000000 लोगों का रोजगार छीन लिया है। इस महीने भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है और यह आंकड़ा उससे भी आगे अगर बढ़ गया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। औद्योगिक उत्पादन बंद रहने, मांग में कमी ने औद्योगिक आर्थिक संकट को बढ़ाया है। उद्योगों की इसने कमर ही तोड़ दी है।
उद्योग जगत का मानना है कि सब कुछ ठीक रहा तब भी इस हालत से उद्योगों को उबारने और पटरी पर लाने के लिए सरकार को 15 लाख करोड़ रुपए की सहायता देनी पड़ेगी। अब सवाल उठता है कि कोविड-19 की वजह से जब सरकार ही दबाव में है तो इतनी बड़ी रकम का बंदोबस्त वह कैसे करेगी। उसके पास रिजर्व बैंक से कर्ज लेने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। आने वाले दिनों में कोविड-19 की वजह से पैदा हुए संकट कई उद्योगों को तालाबंदी की ओर धकेलने या श्रमिकों के वेतन में कटौती और बड़े पैमाने पर छंटनी का रास्ता अख्तियार करने को मजबूर करें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
सबसे दुखद पहलू यह है कि इन सारे हालात को उजागर करने में लगे मीडिया की हालत खुद ही खराब है। विज्ञापनों के बकाए की वसूली नहीं हो पा रही है। विज्ञापन आने तो बंद ही हो चुके हैं। विज्ञापनों का मौसम भी बीत चुका है। अखबारों को अपने पन्ने घटाने, रंगीन पृष्ठों में कमी और बंटने वाले सप्लीमेंट्स बंद करने को बाध्य होना पड़ा है। ये सारे संकेत हैं कि मीडिया जगत में जल्दी ही बड़े पैमाने पर छंटनी होगी। कुछ अखबारों ने या मीडिया घरानों ने छंटनी जैसे कदम उठाने शुरू भी कर दिये हैं। कई संस्थानों में महीनों से सैलरी नहीं मिली है तो कहीं आधी-अधूरी तनख्वाह मिल रही है।
यह भी पढ़ेंः मोदीराज में आर्थिक वृद्धि दर 7.4% से अधिक रहने का अनुमान: राजीव