चन्द्रशेखर के बारे में अटल विहारी वाजपेयी ने अपने अंदाज में कहा था, ’चन्द्रशेखर जी एक कुशल वक्ता हैं, परन्तु जब ग़ुस्से में होते हैं तो और भी अच्छा बोलते हैं।’ वह मौका था चन्द्रशेखर जी के 75वें जन्मदिन पर आयोजित अमृत महोत्सव का। नई दिल्ली में आयोजित उस कार्यक्रम में कई बड़े नेता उपस्थित हुए थे।
- अजीत दुबे
चन्द्रशेखर जी (पूर्व प्रधानमंत्री) की 93 वीं जयंती (17 अप्रैल) के अवसर पर कुछ पुरानी तस्वीरों/ संस्मरण को साझा करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित है। पिछले कई वर्षों से चन्द्रशेखर स्मृति न्यास द्वारा उनके समाधिस्थल पर आयोजित प्रार्थना सभा (प्रातः 7 बजे) में हम सभी नियमपूर्वक एकत्र हो उनको स्मरण/ सादर नमन करते आए हैं, परन्तु कोरोना संबंधी परिस्थितियों की वजह से इस वर्ष आयोजन स्थगित करना विवशता रही।
चन्द्रशेखर जी स्वतंत्र भारत के उन सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं में से थे, जिनका देश के राजनीतिक परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव था। उन्हें प्रथमत: उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से 1995 में नवाज़ा गया था एवं विधायिका में अनुशासन और मर्यादा के वो प्रतीक तो थे ही।
1983 में चन्द्रशेखर जी की भारत पदयात्रा के दौरान मुम्बई के रात्रि विश्रामस्थल में उनके दर्शन का मुझे भी सौभाग्य मिला था, जब उनकी लोकप्रियता शायद अपने शिखर पर थी। मुझे आज भी स्मरण है मुम्बई के समाचार पत्र का शीर्षक कुछ इस प्रकार था- ’Watch this man,He isn’t alone’.
चन्द्रशेखर जी की 75 वीं वर्षगाँठ ‘अमृत महोत्सव’ के मौक़े पर 2002 विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित भव्य समारोह की स्मृतियाँ मन-मस्तिष्क में आज भी ताज़ा हैं। तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, वरिष्ठ राजनेतागण जॉर्ज फ़र्नांडीज़, मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, शरद यादव के अतिरिक्त नेपाल से श्री कोईराला जी भी उसमें उपस्थित थे। प्रमुख राजनेताओं के सम्बोधन के उपरान्त अटल जी ने अपने विशिष्ट अन्दाज़ में चन्द्रशेखर जी के व्यक्तित्व का ज़िक्र करते हुए कुछ यूँ कहा,’चन्द्रशेखर जी एक कुशल वक्ता हैं, परन्तु जब ग़ुस्से में होते हैं तो और भी अच्छा बोलते हैं।’
आख़िरी वक्ता होने के नाते चन्द्रशेखर जी ने आभार इत्यादि प्रकट करने के उपरान्त अपने ही अन्दाज़ में बताया कि शुरू से ही वो अटल जी की अध्यक्षता वाली सांसदों की समिति के सदस्य होने के नाते उनको गुरु जी कह के सम्बोधित करते आए हैं। आज जब गुरुजी ने मेरे ग़ुस्से का ज़िक्र किया है तो मैं विनम्रतापूर्वक बताना चाहूँगा, “मैं श्री भृगु ऋषि की तपोभूमि बलिया से आता हूँ एवं भृगुऋषि के ग़ुस्से को कौन नहीं जानता, जिन्होंने भगवान विष्णु के सिंहासन को भी लात मार दी थी।” सभागार में गूंजी तालियों की गड़गड़ाहट उस जननायक की स्मृति को ताज़ा कर दे रही है।
अपने दिल से निकले विभिन्न सम्बोधन के दौरान चन्द्रशेखर जी अक्सर बेहतरीन शायरी का भी प्रयोग करते थे। एक उदाहरणः
“मैदाने इंतेहा से घबरा के हट न जाना, तकमील ज़िन्दगी है,चोटों पे चोट खाना।
अब अहले गुलिस्ताँ को शायद न हो शिकायत, मैंने बना लिया है,काँटों में आशियाना।”
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