सार्थक समय डेस्क : कुमार गौरव को ‘लव स्टोरी ‘ (1981) का हीरो बनने में कतई संघर्ष नहीं करना पड़ा। पसीने की एक बूंद भी नहीं टपकानी पड़ी। न जूता घिसा और न चप्पल। बल्कि राहों में फूल ही फूल बिखरे पड़े रहे। चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए थे। और आख़िर ऐसा क्यों न होता! वो पचास और साठ के सालों के जुबली स्टार राजेंद्र कुमार के पुत्र जो ठहरे। वस्तुतः अस्सी के उन सालों में बड़े-बड़े स्टार्स के होनहारों की भव्य लांचिंग हो रही थी। ‘रॉकी’ (1981) में सुनील दत्त के नूरे चश्म संजय दत्त लांच हो रहे थे और ‘बेताब’ में धर्मपुत्र सन्नी द्योल को उतारने की चर्चाएं चल रही थीं। मनोज कुमार के सपूत कुणाल गोस्वामी ‘क्रांति’ में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट से सफलता का स्वाद चख चुके थे। अब ‘घुंघरू’ (1983) में बतौर हीरो उतारने की तैयारी में लगे थे। सत्तर के सालों में राजकपूर अपने लालों रंधीर कपूर और ऋषि कपूर को उतार कर सफलता का अचूक मंत्र दे चुके थे कि स्टार पुत्र बोले तो सफलता की कुंजी। दर्शक बी बच्चों में आपको तलाशेंगे दोहरा फायदा होगा।
चमकीली शुरूआत के बाद घुप्प अंधेरा
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