चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के 70 पादरियों को 2 साल से नहीं मिला वेतन

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लॉक डाउन में मुश्किलों की मार दिहाड़ी मजदूर ही नहीं झेल रहे, बल्कि चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के पादरी भी मुश्किल का सामना कर रहे हैं।
लॉक डाउन में मुश्किलों की मार दिहाड़ी मजदूर ही नहीं झेल रहे, बल्कि चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के पादरी भी मुश्किल का सामना कर रहे हैं।
  • संजय रावत/ अंकित तिवारी

प्रयागराज। चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के 70 पादरियों को 2 साल से वेतन नहीं मिला है। लॉक डाउन में मुश्किलों की मार दिहाड़ी मजदूरों की तरह पादरी भी झेल रहे हैं। चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के ये पादरी मुश्किल का सामना कर रहे हैं। मामला है CIN (चर्च ऑफ नार्थ इंडिया) के ईस्टर्स  (पादरी) की जहां तनख्वाह नहीं मिल रही। लॉक डाउन में उनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उत्तर भारत के ये तमाम पादरी ईसाई धर्म में प्रोटेस्टेंट मत को मानने वाले हैं।

करीब 35 वर्षों में अलग-अलग  समयावधि से चर्च में सेवाभाव से लगे इन पादरियों का मूल वेतन  महज 12 हजार से 20 हजार के बीच तय है। तनख्वाह की रकम चढ़ावे, मिशनरी स्कूल या अन्य ट्रस्ट के रहमोकरम पर निर्भर थी। अब नई नीतियों के तहत इसे बंद कर दिया गया है। उससे पहले चढ़ावा, स्कूल-कॉलेज और अन्य ट्रस्ट से आने वाली रकम के 60 प्रतिशत में से पादरियों की तनख्वाह निकाली जाती थी। 40 प्रतिशत रकम हर  धर्मक्षेत्र से मुख्यालय भेज दी जाती थी।

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इलाहाबाद, लखनऊ, गोंडा, देवरिया, मुजफ्फरनगर, झांसी, फूलपुर, बस्ती, मिर्जापुर, वाराणसी  आदि जगहों के पादरियों का कहना है कि वेतन तो 28 माह से मिला ही नहीं है, लॉक डाउन के चलते मुश्किलें और बढ़ गई हैं। ऊपर से यह फरमान जारी हो गया है कि पादरी खुद ही चर्च से अपना वेतन निकालें। लॉक डाउन के समय जब चर्च में आवाजाही ही नहीं, तब ऐसा कर पाना संभव ही नहीं है। इन सभी पादरियों के दर्द कमोवेश एक से ही हैं, पर स्वभावतः बयान सबके जुदा-जुदा से हैं। कोई क्षुब्ध है तो कुछ परेशानियों से आजीज आ चुके हैं। कोई निःस्वार्थ सेवा की बात कहता है तो कोई वाकए से ही अनभिज्ञता जताता है।

आदित्य कुमार वाराणसी में पादरी हैं। वे बताते हैं कि 28 माह से वेतन न मिलने के कारण स्थिति पहले ही बहुत बुरी थी। अब लॉक डाउन में और भी बदतर हो गई है। जब भी हम वेतन की गुहार लगाते हैं तो चर्च प्रबंधन सस्पेंड कर देने की बात कहता है। अनर्गल आरोप लगाया जाता है। हम यह भी कह चुके हैं कि अब आपके साथ काम ही नहीं करना चाहते, हमारे वेतन और फंड का हिसाब कर दीजिए। आपको यह भी बता दें कि कई चर्चों पर FIR दर्ज हैं।

के. सोलोमन झांसी में पादरी हैं। वे कहते हैं- हमें पता चला है कि किसी कारणवश बैंक ने  एकाउंट सीज कर दिया है। इसलिए वेतन नहीं मिल पा रहा है। हम यह मान कर चल रहे हैं कि नहीं मिल रहा तो इकट्ठा हो रहा है, आज नहीं तो कल मिलेगा ही। मुश्किलें तो बढ़ ही रही हैं, पर ईश्वर के भरोसे चल रहा सबकुछ। हम धार्मिक व्यक्ति हैं, किसी से लड़ने तो जाएंगे नहीं, पर वेतन की अनियमितता का हाल यह है कि हमने वर्ष 2013 से अपनी पासबुक तक अपडेट नहीं कराई है।

विलियम इलाहाबाद में पादरी हैं। वे कहते हैं- CNI में हम वेतनभोगी पादरी हैं, जिन्हें वेतन नहीं दिया जा रहा है। ये बहाना बना रहे हैं कि कुछ लोगों ने CNI के खिलाफ FIR करा रखी है, जिस वजह से वेतन नहीं दिया जा सकता, पर ऐसा कुछ भी लिखित में नहीं दिया गया है। हमारा कहना है कि जब चर्च में नियुक्तियां संस्थान द्वारा की गई हैं तो वेतन भी संस्थान द्वारा दिया जाना चाहिए। वेतन न दिया जाना दरअसल बड़े घोटाले का एक छोटा हिस्सा है। हमें तकलीफ इस बात भी है कि जब हम धार्मिक संस्थान से पारिवारिक रूप में सेवाभाव से जुड़े हैं, बावजूद इसके मुश्किल वक्त में हमारा हाल-चाल भी कोई पूछने नहीं आता। उनका कहना है कि वर्ष 2000 से 2014 तक का हमारा PF भी जमा नहीं किया गया है। पूछने पर कहते है कि ठीक है दे देंगे। आयुष हैरिसन झांसी में पादरी हैं। उनका कहना है-  कुछ क्राइसिस के चलते वेतन नहीं दिया जा रहा है, क्राइसिस खत्म हो जाएगी तो मिलने लगेगा। परेशानियां तो हैं ही, पर क्या किया जा सकता है। इस पर ज्यादा बेहतर इलाहाबाद या लखनऊ के लोग ही बता पाएंगे।

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प्रयागराज इलाहाबाद के पादरी बेबस्टर जेम्स से इस बाबत पूछा गया तो उनका कहना था कि पिछले वेतन की तो बात ही छोड़िए, ये अब कह रहे हैं कि अपना और अन्य कर्मचारियों का वेतन भी आप चर्च के चढ़ावे से निकालें। आय के स्रोतों  से 60 प्रतिशत से वेतन दिया जाता था, जो अब ये नहीं दे रहे हैं। ऐसा ही इन्होंने प्रोविडेंट फंड मामले में भी किया है कि कुछ खास लोगों को दिया है, बाकी का हड़प लिए हैं। अभी सचिव प्रवीण ने एक लेटर जारी किया है, जिसमें चर्च से वेतन निकालने की बात कही गई है, पर असल में ये सब बरगलाने वाली बातें हैं।

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CNI में 28 माह से तनख्वाह न दिए जाने के बाबत जब अकाउंटेंट राजेश भट्ट से बात की गयी तो उनका कहना था कि आप इस विषय पर सचिव से बात करें। सचिव प्रवीण मैसी से इस बाबत बात की गयी तो उनका कहना था- लखनऊ डाइसेस में सिस्टम है कि अमुक स्रोतों से आने वाली इनकम में से पादरी अपनी तनख्वाह निकल लेंगे, जो कुल असेसमेंट से माइनस कर ली जाएगी। पर कुछ समय से यह क्रम गड़बड़ा गया है। शहरों के पादरी अपनी तनख्वाह निकाल लेते हैं। चूंकि वहां बड़े चर्च हैं। ये परेशानी गांव के चर्च में आई है। वैसे 70 पादरियों की बात नहीं है, कुल 55 पादरी ही हैं। एकाउंट सीज होने की बात पर उनका कहना था कि डेढ़ साल पहले ऐसा कुछ हुआ था, जिस वजह से देनदारियां पेंडिंग हो गई हैं, पर कोशिश है कि सबको उनका पैसा मिल जाए।

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