चौरीचौरा कांड के शताब्दी वर्ष पर आईपीएस अरविंद पांडेय की टिप्पणी

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चौरीचौरा कांड के शताब्दी वर्ष पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अरविंद पांडेय ने एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखी है, लेकिन इसके मायने काफी प्रासंगिक हैं।
चौरीचौरा कांड के शताब्दी वर्ष पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अरविंद पांडेय ने एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखी है, लेकिन इसके मायने काफी प्रासंगिक हैं।
अरविंद पांडेय, वरिष्ठ आईपीएस
अरविंद पांडेय, वरिष्ठ आईपीएस

चौरीचौरा कांड के शताब्दी वर्ष पर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अरविंद पांडेय ने एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखी है, लेकिन इसके मायने काफी प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस टिप्पणी से संदेश दिया है कि कानून को हाथ में लेने या हिंसात्मक रवैया अपनाने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। आप भी पढ़ेंः उन्होंने क्या लिखा हैः

चौरीचौरा कांड का यह शताब्दी वर्ष है। सभी जानते हैं कि चौरीचौरा में हमारे पूर्वज और असहयोग आंदोलन के महावीरों ने अंग्रेजों का प्रतिकार किया था। महात्मा गांधी के अहिंसावाद का त्याग करते हुए अंग्रेजों की क्रूर पुलिस की हिंसा का प्रतिकार किया था, जिसमें अनेक पुलिस कर्मी हताहत हुए थे। हमारे पूर्वजों द्वारा उस वीरत्व-प्रदर्शन की घटना  के शतायु होने पर देश में चौरीचौरा शताब्दी समारोह के आयोजन का निर्णय यह साबित करता है कि आज हमारा देश चौरीचौरा में भारतीयों के वीरत्व प्रदर्शन पर गांधी जी के विचारों से सहमत नहीं है।

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महात्मा गांधी जी ने चौरीचौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। उनके इस निर्णय से उस समय राष्ट्रीय आंदोलन के अधिकतर नेता सहमत नहीं थे। किन्तु, यहां  यह भी समझना होगा कि गांधी जी अधिवक्ता भी रहे थे। उन्हें कानून की पक्की समझ थी। वे जानते थे कि यदि इस आंदोलन से स्वयं को तुरन्त अलग नहीं करेंगे तो चौरीचौरा में पुलिस पर हमला करते हुए सामूहिक हत्या करने के मुकदमे में उन पर दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाकर अंग्रेज़ सरकार मुकदमा चलाती और इस मुकदमे में अधिकतम मृत्युदंड और न्यूनतम आजीवन कारावास का दण्ड उन्हें मिल सकता था। जैसा कि चौरीचौरा के वीरों को मुकदमा चलाकर फांसी और आजीवन कारावास का दण्ड दिया भी गया था।

इसलिए, इतिहास का तथ्यात्मक पुनर्मूल्यांकन राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है। चौरीचौरा की क्रांति के इस शताब्दी वर्ष से हम भारत के लोग, इतिहास का तथ्यात्मक पुनर्मूल्यांकन प्रारंभ कर चुके हैं।

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