जार्ज फर्नांडिस के नाम पर देश में ढंग का कोई स्मारक क्यों नहीं?

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जार्ज फर्नांडिस के नाम पर किसी हवाई अड्डे का नामकरण करने की मांग भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने केंद्र सरकार से की है।
जार्ज फर्नांडिस के नाम पर किसी हवाई अड्डे का नामकरण करने की मांग भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने केंद्र सरकार से की है।
  • सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार
सुरेंद्र किशोर, वरिष्ठ पत्रकार

जार्ज फर्नांडिस के नाम पर किसी हवाई अड्डे का नामकरण करने की मांग भाजपा के राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने केंद्र सरकार से की है। सुरेश प्रभु व पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं। श्री प्रभु ने इस संबंध में मौजूदा नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी को चिट्ठी लिखी है। पता नहीं, इस पर केंद्र सरकार क्या फैसला करेगी! पर, यह सच है कि जार्ज फर्नांडिस के नाम पर कोई ढंग का स्मारक नहीं है।

पर, मेरा मानना है कि जार्ज जैसे नेता की स्मृति को बनाए रखना राजनीति की नई पीढ़ी के लिए और भी जरूरी है। हर व्यक्ति में कुछ कमियां हैं तो कुछ खूबियां भी। जिनमें अधिक खूबियां होती हैं, उन्हें हम अधिक याद करते हैं। जार्ज के साथ मैंने वर्षों तक काम किया है। मैं उनकी खूबियों को भी जानता हूं और कमियों को भी। उनमें कमियां नगण्य थीं।

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इमर्जेंसी में जार्ज ने जिस तरह अपनी जान हथेली पर लेकर एक तानाशाह व निरंकुश शासक का मुकाबला किया, वह अतुलनीय है। जार्ज में जातीय-सांप्रदायिक-क्षेत्रीय भावना नहीं थी। जार्ज ने न तो अपने लिए कहीं कोई घर बनाया और न कोई संपत्ति एकत्र की। जो भी आरोप उन पर लगा, उसमें वे सुप्रीम कोर्ट से निर्दोष करार दे दिए गए थे।

उन्होंने एक-दो राजनीतिक गलतियां जरूर कीं, पर वैसी गलतियां तो अधिकतर नेता करते रहे हैं। जार्ज फर्नांडिस की प्रामाणिक जीवनी हाल में आई है। पर वह मराठी में है। लेखक हैं मशहूर मराठी पत्रकार नीलू दामले। हिन्दी संस्करण भी आने की उम्मीद है।

जार्ज को अधिकतर लोग टुकड़ों में जानते हैं। जीवनी हिन्दी में आ गई तो उससे हिन्दी भारत को भी जार्ज के संपूर्ण व्यक्तित्व-कृतित्व से परिचय हो जाएगा। मजदूर आंदोलन में जार्ज की भूमिका बेहद सराहनीय रही। ऐस नेता का कोई ढंग का स्मारक न हो, जिसने देश को दिया बहुत अधिक व लिया बहुत कम, तो इस पीढ़ी के नेताओं के लिए भी यह कोई अच्छी बात नहीं। जबकि दूसरी ओर देश को सपरिवार लूटने वाले अनेक नेताओं के स्मारक जहां-तहां दिखाई पड़ते हैं।

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