झारखंड की युवा शक्ति का पलायन चर्चित रहा है। यदि उसे रोकना है तो क्षमता अनुकूल स्किल डेवलपमेंट करना होगा। सभी आदमी सब काम नहीं कर सकते। इसलिए परंपरा, प्रवृत्ति. इच्छा और शैक्षिक योग्यता आधारित प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए बजटीय उपबंध ही नहीं, ढांचा की आवश्यकता है। पढ़ें, अयोध्या नाथ मिश्र का बजट पर यह आलेख, जिसमें कई तरह के सुॉॉजाव दिये गये हैं।
- अयोध्या नाथ मिश्रा
झारखंड जैसे राज्यों का विकास केंद्र और राज्य सरकार के बजट संयोजन पर निर्भर करता है। ऐसे राज्य हैं, जिनमें बजट को बढ़ाकर दिखाया जाता है और बार-बार पुनरीक्षण से विनियोग सीमित हो जाता है। परिणाम है कि अपेक्षा अनुकूल प्रगति नहीं होती। कुछ ऐसे राज्य हैं, जो बहुत अधिक राजस्व घाटे में चलते हैं तथा ऋण की मात्रा बढ़ती जाती है। यद्यपि कर्जा विकासशील राज्य के लिए आवश्यक है पर उसकी भी सीमा है।
ग्रोथ की होड़ में हम बजट की मौलिकता को भूल जाते हैं। बजट एक आर्थिक संतुलन और विकासशील प्रक्रम है। राजस्व प्राप्तियां किसी कारण प्रभावित होंगी तो विकास असंतुलित होगा। साथ ही आय का क्रम बंद होगा। प्रायः देखा गया है कि जिन राज्यों में बजटीय व्यवस्था में असंतुलन रहा है, उसे बीमार घोषित कर दिया जाता है। राज्य के पास जो स्रोत हैं, उनमें कैसे वृद्धि हो, इसका प्रयास राज्य को करना चाहिए। इतना ही नहीं, छोटे-छोटे अतिरिक्त संसाधनों पर भी नजर रखनी चाहिए।
आमतौर पर सरकारें करारोपण या कर वर्धन तथा शेष और अतिरिक्त कर के माध्यम से राजस्व वृद्धि का ख्याल रखती हैं, पर यह अर्थ नीति के अनुकूल नहीं है। चाणक्य कहते हैं कि कर उतना ही लगाया जाना चाहिए, जितना देने में प्रजा को कष्ट न हो। आज झारखंड जैसे राज्य में आय के विविध स्रोत बड़ी सरलता से बन सकते हैं। यदि हम अपने संसाधनों यथा मानव एवं प्राकृतिक को गुणात्मक बनाएं, वैल्यू एडिशन करें, मातृशक्ति को समृद्ध करें, बेरोजगार हाथों को कोई न कोई काम दें तो राज्य का जीएसडीपी काफी आगे बढ़ जाएगा।
सबसे बड़ी बात है झारखंड की खेती को यदि समृद्ध किया जाए, प्रसंस्करण की व्यवस्था हो, संचयन का विकल्प बने तो अकूत पैसा किसानों के पास आएगा। आज हरी सब्जियों का कोई मोल नहीं है। यहां के पपीता तथा अन्य बन उत्पाद यदि परिष्कृत होकर बाजार में जाएं तो काफी आय होगी। झारखंड की युवा शक्ति का पलायन चर्चित रहा है। यदि उसे रोकना है तो क्षमता अनुकूल स्किल डेवलपमेंट करना होगा। सभी आदमी सब काम नहीं कर सकते, इसलिए परंपरा, प्रवृत्ति. इच्छा और शैक्षिक योग्यता आधारित प्रशिक्षण की व्यवस्था के लिए बजटीय उपबंध ही नहीं, ढांचा की आवश्यकता है।
इस क्षेत्र में यदि सीएसआर और और बैंकों को लगाया जाए तो परिणाम आएंगे। इसी प्रकार कृषि को रोजगार उन्मुख बनाने के लिए भी बजटीय प्रबंधन की जरूरत है। राज्य में लाख प्रयास के बाद भी बैंक कृषि क्षेत्र में अभिरुचि कम दिखाते हैं। एक प्रकार की बाध्यता होनी चाहिए कि सीडी रेशियो में संतुलन हो। हमारा पैसा हमारे काम आए। एक सबसे महत्वपूर्ण विषय फिजूलखर्ची और स्थापना मद में में वृद्धि है। स्थापना मद बहुत सरलता से सीमित किया जा सकता है। पर देखने में तो यही आता है की मार्च का महीना स्थापना मद का होता है। हमारे राज्य में एक कठोर वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता है, जिसके आधार पर राजस्व प्राप्तियां भी बढ़ें और खर्च में अतिरेक भी न हो।
आज स्थिति बदल गई है। विभिन्न मदों में केंद्र, केंद्रीय निकाय तथा वित्तीय संस्थानों द्वारा हमें धन प्राप्त हो रहा है। ऐसी स्थिति में हमें अपना रोड मैप स्पष्ट बनाना चाहिए, ताकि राजस्व प्रतियों में वृद्धि के साथ-साथ परिव्यय गुणात्मक हो और हर निवेश परिणामी सिद्ध हो सके।
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