शिवहर। टिशू कल्चर केला की खेती के लिए संजीवनी है। यह कहना है कृषि वैज्ञानिक डा. संजय कुमार राय का। उनका दावा है कि टिशू कल्चर केला की खेती के लिए काफी फायदेमंद है। उन्होंने यह भी कहा कि गेहूं की कटनी के बाद हरित फसल के तौर पर किसान ढैंचा, मूंग, सनई आदि की बुवाई कर सकते हैं। इससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
डा. राय का मानना है कि किसान आज प्रकृति की मार के अलावा कोरोना महामारी की आपदा से जूझ रहा है। इस बीच किसान गेहूं की कटाई समाप्त कर अपने जमीन में सनई, ढैंचा, मूंग की बुवाई के साथ-साथ केला की खेती अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कर सकते हैं। डा. राय कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान कृषि समन्वयक हैं।
डा. राय ने बताया है किसानों के लिए टिशू कल्चर केला की खेती एवं उनके लिए संजीवनी का काम कर सकती है। इसकी उत्पादकता 45 मेट्रिक टन प्रति हेक्टेयर है, जो देश में सामान्य केला उत्पादन के मुकाबले 35 मेट्रिक टन प्रति हेक्टेयर से 10 मेट्रिक अधिक है। अगर किसान टिशू कल्चर से वर्ने केला के पौधों से खेती करें तो निश्चित ही उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ जाएगी।
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टिशू कल्चर केला के पौधा को दक्ष वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया जाता है। यह पौधा पूर्णत: किट रोग से मुक्त होता है तथा एक समान ऊंचाई में बढ़ते हुए आंधी-तूफान में भी गिरता कम है। एक समान खेत में भी दिखता है। एक समय पर इसके सारे पौधे फूल और फल देते हैं। डा. राय ने बताया है कि केला लगाने का उपयुक्त समय 20 जून से जुलाई माह है। अभी किसान अपने खेत को फफूंदी नाशक दवा डालकर खेत को तैयार कर लें। इस कल्चर से प्रति हेक्टर 2500 पौधे लगाये जाते हैं, जिससे किसान खुशहाल हो सकते हैं।
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