डा. राममनोहर लोहिया ने देश और समाज के लिए जो सपने देखे थे, आज उसकी हकीकत देख लीजिए। राजनीति में जातिवाद का जहर और परिवारवाद का असर सामने है। डा. राममनोहर लोहिया की जयंती पर उनके सपने और हकीकत के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर
स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक डा. राममनोहर लोहिया की कल्पना में आजाद भारत का स्वरूप कैसा था? उनके सपने और हकीकत जानिए। बंबई के मजदूर 12 हजार रुपए चंदा करके लोहिया के इलाज के लिए समय पर दिल्ली नहीं भेज सके। यह 1967 की बात है। तब लोहिया लोक सभा के सदस्य थे।
डा. लोहिया जर्मनी में अपने प्रोस्टेट का आपरेशन करवाना चाहते थे। पैसे के अभाव में डा. लोहिया को नई दिल्ली के ही वेलिंगटन अस्पताल में ही आपरेशन कराना पड़ा। सही इलाज नहीं होने के कारण लोहिया की मौत हो गई। तब बिहार सहित कई राज्यों में लोहिया की पार्टी के नेता सरकार में शामिल थे। किंतु लोहिया नहीं चाहते थे कि उन राज्यों से चंदा आए। क्योंकि उससे हमारी सरकार की बदनामी हो सकती है।
सांसद रहने के बावजूद लोहिया के पास निजी कार नहीं थी। कार न खरीदने व मेंटेन करने के संबंध में लोहिया का तर्क यह था कि ‘‘सांसद के रूप में उतनी आय मेरी नहीं है।’’ आज की स्थिति देख लीजिए। स्वतंत्र भारत में महाराष्ट्र सरकार का एक मंत्री चाहता है कि उसके व उसके नेता के लिए वहां की पुलिस हर महीने 100 करोड़ रुपए की उगाही करे।
डा. लोहिया ने अपना कोई परिवार नहीं बसाया। न ही घर बनाया। वे चाहते थे कि राजनीतिक जीवन में जो आना चाहते हैं, उन्हें अपना परिवार नहीं खड़ा करना चाहिए। आज की स्थिति देखिए। कल तेलांगना से एक शर्मनाक खबर आई। उसे पढ़कर एक क्षण लगा कि हम आज भी राजतंत्र में ही जी रहे हैं। खबर है कि वहां के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि वे अपने पुत्र को उसके अगले जन्मदिन के अवसर पर अपना मुख्यमंत्री पद उपहार के रूप में दे दें।
डा. लोहिया राजनीति में वंशवाद के सख्त खिलाफ थे। आज की स्थिति भी देख लें। भाजपा, जदयू और कम्युनिस्ट दलों जैसे थोड़े से दलों को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दल बेशर्म ढंग से वंशवादी-परिवारवादी हो चुके हैं। यानी परिवार के बिना उन दलों की कल्पना ही नहीं हो सकती। अपवादों को छोड़कर जो दल वंशवादी-परिवारवादी हैं, उन पर भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप हैं।
डा. लोहिया ने ‘जाति तोड़ो’ का नारा दिया था। पिछड़ी जातियों के साथ-साथ वे अगड़ी जातियों की महिलाओं को भी पिछड़ा ही मानते थे। उनके लिए भी वे विशेष अवसर की जरूरत बताते थे। डा. लोहिया के लगभग सारे निजी सचिव ब्राह्मण ही थे। यानी, ऊंची जाति में उनके प्रति द्वेष नहीं था, सिर्फ नेहरू भक्तों को छोड़कर। आज क्या हो रहा है? देश भर में वोट के मुख्य आधार जातीय व सांप्रदायिक हैं।
लोहिया सांप्रदायिक मामलों में संतुलित विचार रखते थे। दोनों समुदायों के बीच के अतिवादियों के वे खिलाफ थे। डा. लोहिया समान नागरिक कानून के पक्षधर थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि मुझे लोहियावादी मुसलमानों से मिलकर-बातकर करके बहुत खुशी होती है। पर, आज क्या हो रहा है? आज लोहिया के नाम पर राजनीति करने वाले अधिकतर दल व लगभग सारे तथाकथित सेक्युलर दल व बुद्धिजीवीगण संघ परिवार की तो बात-बात में आलोचना करते हैं, किंतु दूसरी ओर वे उन अतिवादी मुस्लिम संगठनों को भी भरपूर बढ़ावा-समर्थन देते हैं, उनसे राजनीतिक तालमेल करते हैं, जो सरेआम यह घोषणा करते हैं कि हम इस देश में हथियारों के बल पर इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।