तेरी चाहत का दिलवर बयां क्या करूं…………..

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पहले से तय प्रोग्राम के मुताबिक रामधनी दुसाध और रामजी चेरो ने नलराजा के मेले में आधा-आधा सेर गुड़हिया जलेबी खाई, एक-एक लोटा पानी पिया।
पहले से तय प्रोग्राम के मुताबिक रामधनी दुसाध और रामजी चेरो ने नलराजा के मेले में आधा-आधा सेर गुड़हिया जलेबी खाई, एक-एक लोटा पानी पिया।
  • अरविंद चतुर्वेद

पहले से तय प्रोग्राम के मुताबिक रामधनी दुसाध और रामजी चेरो ने नलराजा के मेले में आधा-आधा सेर गुड़हिया जलेबी खाई, एक-एक लोटा पानी पिया। फिर बीड़ी का सुट्टा मारते तीन बजेवाला शो देखने के लिए सीधे नौटंकी के तंबू में जा बैठे। दोनों ने परदे की शोभा देखी और देखा कि उसपर छपी सचमुच की औरत जैसी सुंदरी के दूर तक लहराते आंचल को कैसे एक हिरन मुंह में दबाए है और वह उसे गरदन घुमाकर बड़ी-बड़ी आंखों से देखती हुई हंस रही है। अपनी जगह पर खड़े-खड़े मुड़कर देखने में औरत की छातियां ब्लाउज में तनी-तनी दिख रही हैं। नौटंकी वाले भी खूब हैं, टिकट की चवन्नी तो परदा देखने में ही वसूल हो गई, रामधनी मन ही मन निहाल हो गए। फिर साजिंदों के उस्ताद ने थान के लंबे कपड़े पर चलती कैंची की तरह हारमोनियम पर पांच मिनट तक उंगलियां फेरकर देखने वालों का करेजा चीर दिया। तभी ढोलकिया ने जोश में आकर धिन् धिन् ढमक ढमक ढम्, ढमक ढमक ढम्, धिन् धिन् धिन् ढमक धिन्, ढमक धिन् धिन्, ढमक धिन् धिन् के साथ जो ढमकाया कि पूछिए मत। इसके बाद शायद वह इशारा था कि ढोलकिया ने जैसे ही पांचवीं बार ढमक ढम ढम ढमाढम बजाया, परदे के पीछे से बाएं किनारे पर निकल कर लौंडा लचकते-मटकते स्टेज के बीचोबीच आया और बड़ी अदा से दोनों हाथ जोड़े, झुककर दर्शकों को सलाम किया। फिर हारमोनियम मास्टर के सामने जाकर पांव छूने की तरह हारमोनियम को छूकर उठा और ठुमकने लगा। जैसे ही हारमोनियम और ढोलक की जोशीली जुगलबंदी तेज हुई, घुंघरू की छम-छम के साथ लौंडा कमर लचकाते हुए नाचने लगा। ताजा-ताजा दाढ़ी-मूंछ सफाचट किए, कजरारी आंखोंवाले, ओंठ रंगे, तीस की उमर छू रहे इकहरा बदन लौंडे के लिए यह गाना पर्याप्त था-

लाले-लाले ओठवा से

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बरसे ला ललइया हो

के रस चुवेला,

जइसे अमवा के मोजरा से रस चुवेला…।

किसी पुरुष का स्त्री हो जाना हंसी-खेल नहीं है। भगवान विष्णु ने कैसे मोहिनी रूप धरकर लुभाया होगा यह तो वही जानें, लेकिन नाचते हुए लौंडे ने वे सारे नाज-नखरे और लटके-झटके दिखाए जो उसे अधिक से अधिक औरत साबित कर सकें। इस सबके ऊपर सबसे दिलफरेब चीज थी उसका घूंघट से आधा चेहरा ढंकते हुए निचले होठ का एक छोर दांत से दबाकर शुक्रिया अदा करती हूं कहने का अंदाज। इस पर गुणग्राही दर्शकों के मुंह से बरबस निकल पड़ता- ईह, जीय हो करेजा, जीय!

रामधनी और रामजी ने अपनी-अपनी पारखी निगाह से नाच और नौटंकी की एक-एक बारीकी बड़े गौर से देखी। शो खतम हुआ तो मेले की भीड़भाड़ से बाहर निकलकर गांव के रास्ते पर रामधनी ने डबल बीड़ी जलाई और एक रामजी को थमाते हुए पूछा- नाच में सबसे बढ़िया का लगा, चच्चा? रामजी बोले- सबसे मजेदार त ऊ ढुनमुनिया जैसा जोकर था, चलता तो लगता लुढ़क रहा है। क्या करेला जैसी आवाज थी उसकी! हमको तो उसकी बात याद हो गई है-

मछरी के रसा में

खिलाके रोटी गरम

नाशि देला मलकिन तू

पंडीजी क धरम,

हाय रे पंडीजी क करम!

रामधनी दुसाध थोड़ा-बहुत हारमोनियम बजाना जानते थे। रामजी से मन माफिक प्रतिक्रिया पाकर उत्साहित होते हुए उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया- चच्चा, बस आप साथ दीजिए, हम भी गांव में अपनी नाच मंडली बनाएंगे। मैं अपना उदंत बछवा बेच दूंगा। थोड़ा-बहुत हिसाब लगाकर गैसबत्ती और परदा ले आएंगे। चार-छे आदमी को साथ लेकर साज-बाज का इंतजाम कोई मुश्किल काम नहीं है। मौका-मौका पर अट्ठ-पट्ठ के गांव से दो-चार गुनी शौकीन लोगों को बुला लिया जाएगा।

इस तरह हफ्ते भर में शाम की चिलम-चौकड़ी के गर्भ से गांव की नाच मंडली का जन्म हुआ। रामजी चेरो का चौड़े-चकले चेहरे वाला उन्नीस साल का लड़का लग्गन, जिसके दाढ़ी-मूंछ निकलने की संभावना न के बराबर थी, लौंडा बनने को तैयार हो गया। सांवले-सलोने, भरे-भरे गाल और बड़ी-बड़ी आंखोंवाले लग्गन को रामजी ने कड़ी हिदायत दी- बीड़ी बिल्कुल नहीं पियोगे, एक-दो बार चिलम खींच सकते हो! पहली बार अपनी मां की छापावाली साड़ी और ब्लाउज पहनकर जब लग्गन नाचमंडली के वर्कशाप वाली ओसरिया में प्रकट हुआ तो उसकी नजर उतारने के बाद हारमोनियम सामने रखकर बैठे रामधनी ने उठकर बताया कि सबसे पहले दर्शकों को हाथ जोड़कर और कितना झुककर सलाम करना है। फिर हारमोनियम को किस तरह पांव छूने के अंदाज में छूना है। खुद कमर लचकाकर मटकते हुए रामधनी ने लग्गन को शुक्रिया अदा करना सिखाया। इसमें शुरू-शुरू में थोड़ी मुश्किल आई, क्योंकि मटकते हुए नखरे के साथ ‘शुक्रिया अदा करती हूं’ को लग्गन बार-बार ‘शुक्रिया अदा करता हूं’ बोल रहा था। तब उसके बाप रामजी ने समझाया- शुक्रिया अदा बाद में करना, पहले बार-बार शुक्रिया अदा करती हूं का रट्टा मारो।

इस बीच गांव में खबर फैल गई थी कि नाचमंडली बन गई है और जल्दी ही किसी दिन गांव में नाच होगा। आखिर पंद्रह दिन में जब ठीकठाक यानी कामचलाऊ तैयारी हो गई तो रघुनाथ बाबा उर्फ सरपंच के लंबे चौतरे पर गुलाबी ठंड वाली शाम को छह बजे उनके बैठने के लिए मचिया रखकर सामने दरी बिछा दी गई। कुछ बुजुर्ग दर्शक चौतरे पर बैठे और ज्यादातर लोग चौतरे के नीचे खड़े हो गए। जैसे ही सात बजे गैसबत्ती जली, चारों ओर दूधिया अंजोर फैल गया। चौतरे के सामने वाले छोर पर हारमोनियम मास्टर रामधनी, उनके बगल में रामजी, फिर नई साड़ी पहने ओठलाली लगाए लग्गन और चौखड़ा से बुलाया गया ढोलकिया एक पांत में बैठे नजर आए। तीन-चार लोग उनके पीछे थे जिन्हें गाए जानेवाले गाने को कोरस के रूप में दोहराना था।

हारमोनियम और ढोलक का तालमेल बैठाने के बाद जब रामधनी ने इशारा किया तो पांव में घुंघरू बांधे लग्गन उठा। सिखाए गए ढंग से रघुनाथ बाबा और उनके अगल-बगल बैठे लोगों को सलाम करके हारमोनियम छूकर वह ठुमकने लगा। तभी एक टेर के साथ रामधनी ने गाना शुरू किया-

तेएएरीईइर्ई बांकी अदा पर 

मैं खुद हूं फिदा,

तेरी चाहत का दिलवर बयां क्या करूं…।

पीछे से कोरस वालों ने पांच बार दोहराया- तेरी चाहत का दिलवर बयां क्या करूं। लग्गन एक हाथ कमर पर रखे दूसरा हाथ उठाकर लहराते हुए गोल-गोल घूमकर छमाछम नाचने लगा। हारमोनियम और ढोलक का तालमेल अच्छा जम गया। लग्गन भी ठीकठाक नाच रहा था, लेकिन रामधनी के दोबारा गाने के बावजूद कोरस वाले तीसरी बार में ही तेरी चाहत का दिलवर बयां क्या करूं को प्रार्थना के सुर में ऐसे ढाल देते थे, जैसे हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए गा रहे हों। नतीजा यह हुआ कि गांव के सबसे बुजुर्ग लोगों में एक छांगुर कहार जो कहीं आते-जाते नहीं थे, उस दिन नाच देखने आए और इस गाने का कोरस सुनकर इतने भाव विभोर हुए कि नाच रुकते ही जोर से नारा लगा बैठे- बोलो, सियावर रामचंद्र की जै!

कुल मिलाकर रामधनी और रामजी की साझी मैनेजरी में गांव की नाच मंडली चल निकली। इसी बीच गोरा-चिकना कैलाश धोबी भी नया लौंडा तैयार हो गया। लग्गन और कैलाश की जोड़ी नाच मंडली की सांवर-गोरिया बनकर चमक उठी। गरमी का मौसम आते-आते शादी-ब्याह में रात भर के नाच का तीन हजार से लेकर पांच हजार रुपए तक सट्टा भी मिलने लगा। लेकिन दो साल बाद जून में गरमी की एक रात भगेलू की औरत छनमनी रामधनी की बांकी अदा पर फिदा होकर चुपके से गांव छोड़ निकल क्या गई कि नाच मंडली पर एकाएक वज्रपात हो गया।

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