आठ माह पहले दिल्ली मेट्रो में लोगों की आवाजाही रवाँ-दवाँ चल रही थी, मगर बेतहाशा बढ़े किराये ने लोगों की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दी। वजह, बसों के मुक़ाबले मेट्रो का चार गुना बढ़ा किराया था। छिटफुट विरोध हुआ। आंदोलन करनेवाले आखिरकार थक-हारकर बैठ गए, सरकार की मोटी चमड़ी पर रत्ती भर असर नहीं हुआ।
छोटी-सी मिसाल है। डीटीसी बसों में पांच किलोमीटर तक का किराया पांच रूपये है और इस समय मेट्रो में उतनी ही दूरी का किराया है 20 रूपये! मित्र लोग कहेंगे, “मेट्रो में एसी की ठंडी-ठंडी हवा भी तो खाते हैं!” तो भइये, डीटीसी की एसी बस से पांच किलोमीटर का सफर मेट्रो से आधे किराये, यानी 10 रूपये में कर सकते हो। मेट्रो में सुविधा क्या है? तीन डिब्बों के यात्री, एक डिब्बे में ठूंस दिए जाते हैं !
किराया तय करने वाले बाबुओं ने ज़मीनी हक़ीक़त से आँख मूँदते हुए आठ महीने पहले किराया बेतहाशा बढ़ा दिया। अब उसका परिणाम सामने आया है। पिछले साल के मुक़ाबले इस महीने पांच लाख यात्री दिल्ली मेट्रो में कम हुए हैं।2017 मार्च में 27.6 लाख, अप्रैल में 27.5 लाख और मई 2017 में 26 .5 लोगों ने दिल्ली मेट्रो की सवारी की थी।2018 मार्च में 22 लाख और अप्रैल में 22.67 लाख और मई 2018में 22.5 लाख यात्री मेट्रो में थे। बाबू तो मेट्रो किराये पर अपनी रिपोर्ट देकर मौज कर रहे हैं। सरकार के पास आम लोगों की जेब नोंचने का बहाना मिल चुका था। भुगत कौन रहा है ?
- पुष्प रंजन के फेसबुक वाल से