- नवीन शर्मा
देशभक्ति की नहीं, सिर्फ सलमान खान की कहानी है भारत। एक लाइन में सलमान खान की भारत फिल्म देख यही लब्बोलुआब निकलता है। सलमान ने भले ही पहले ही दिन रिकार्ड तोड़ 40 करोड़ का बिजनेस कर लिया है, लेकिन यह बहुत ही औसत दर्जे की फिल्म है।
निर्देशक अली अब्बास जफर ने भारत फिल्म में कई मसालों का इस्तेमाल किया है। पहला मसाला देशभक्ति का है, जो सिर्फ फिल्म व सलमान के नाम में ही झलकता है। लेकिन फिल्म की कहानी में ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे इसे देशभक्ति की फिल्मों में शामिल किया जाए। सिर्फ देश विभाजन की पृष्ठभूमि से यह फिल्म जुड़ी है। इस वजह से हम इसे देशभक्ति की फिल्म नहीं कह सकते। फिल्म का हीरो भारत (सलमान खान) ऐसा एक भी काम नहीं करता, जिसे हम देशभक्ति की श्रेणी में रख सकें। वो सिर्फ देश विभाजन के बाद पाकिस्तान से हिंदुस्तान आए अपने परिवार के पालन-पोषण में काफी कम उम्र में ही मां का सहयोग करना शुरू करता है।
भारत बने सलमान के पिता (जैकी श्राफ) पाकिस्तान के हिस्से वाले मीरपुर में स्टेशन मास्टर थे। बंटवारे के वक्त जब हिंदू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक दंगे शुरू हुए तो यह परिवार ट्रेन से हिंदुस्तान के लिए रवाना होता है। ट्रेन में चढ़ने के दौरान मची मारकाट में भारत के पिता और उसकी छोटी बहन गुड़िया वहीं रह जाते हैं। भारत, उसकी मां और एक भाई और एक बहन दिल्ली पहुंच कर जिंदगी की जद्दोजहद में लग जाते हैं। भारत भी अपने परिवार को चलाने के लिए कई तरह के काम करता है। जैसे सर्कस में मौत का कुआं खेल में बाइक चलाना। मौत के कुएं में बाइक चलाने का दृश्य ही फिल्म का सबसे रोमांच है। शायद हिंदी फिल्म में पहली बार इतने विस्तृत ढंग से ये फिल्मांकन हुआ होगा। सिनेमेटोग्राफी और साउंड इफेक्ट की वजह से एकदम से लगता है कि हम मौत के कुएं में मौजूद हैं।
भारत ज्यादा पैसा कमाने के लिए मिडिल ईस्ट में तेल व गैस के कुएं में भी काम करने जाता है। इसी दौरान उसका अपनी हिरोइन कैटरीना कैफ से प्यार होता है। वहां भारत अपनी जान पर खेल कर अपने साथियों को बचाता है। वहीं कैटरीना भारत से अपने प्यार का इजहार करते हुए शादी का प्रस्ताव देती है, पर भारत अपने परिवार की जिम्मेदारी का वास्ता देते हुए शादी नहीं करता, लेकिन वे लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं। भारत मर्चेंट नेवी में भी काम करता है। यहां वह समुद्री डाकुओं के चक्कर में भी फंसता है। फिल्म में गीत जबरदस्ती ठूंसे हुए लगते हैं। एक भी गाना ऐसा नहीं है, जो लंबे समय तक याद किया जाएगा।
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फिल्म सलमान के ही इर्द-गिर्द घूमती है, दूसरे कलाकारों के लिए कोई खास मौका नहीं है। सिर्फ भारत के जिगरी दोस्त विलायती खान बने सुनील गुत्थी का रोल ही ऐसा है, जिसको कैमरे ने समय दिया है। हिरोइन कैटरीना भी खानापूर्ति जैसी हैं। वैसे भी एक्टिंग में उनसे खास उम्मीद नहीं रहती है। कुल मिलाकर यह एक औसत दर्जे की फिल्म है।
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निर्देशक अली अब्बास की पूर्व की फिल्मों सुल्तान, टाइगर जिंदा है से भी हम तुलना करें तो ये फिल्म कमतर नजर आती है। सुल्तान ज्यादा अच्छी फिल्म थी, हर लिहाज से। भले ही खर्च के हिसाब से भारत में ज्यादा पैसे खर्च किए गए हैं। सुल्तान का एक गीत अब भी याद आ रहा है जग ढूंढया थारे जैसा ना कोई। जहां तक सलमान की हाल के वर्षों की फिल्मों से तुलना करें तो बजरंगी भाई जान सबसे बेहतरीन फिल्म थी।
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