- कृपाशंकर चौबे
पत्रकार नंदिनी सिन्हा ने अपने व्यक्तित्व का अकादमिक रूपांतरण कर लिया है। शोध के समानांतर सृजन का जुनून है उनमें। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में शोधार्थी बनने से पहले नंदिनी मीडिया उद्योग में थीं। उन्होंने छह वर्षों तक दैनिक जागरण समूह में पत्रकारिता की थी। बाद में उन्होंने टेलीग्राफ और टाइम्स आफ इंडिया में कंटेंट राइटर के रूप में काम किया।
नंदिनी ने झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित 34वें राष्ट्रीय खेल को कवर किया। उन्होंने दूरदर्शन झारखंड के लिए डेढ़ वर्ष तक हर हफ्ते अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम को प्रस्तुति किया। इधर नंदिनी के जो शोध आलेख छपे हैं, उसमें उनके गंभीर अकादमिक रूपांतरण को देखा जा सकता है। नंदिनी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मीडिया की भूमिका पर शोध कर रही हैं। ‘आंचलिक पत्रकार’ के अप्रैल 2020 के अंक में उनका शोध आलेख ‘बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और अमेरिकी मीडिया’ छपा था। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय मीडिया के दृष्टिकोण पर भी उनका शोध आलेख ‘जन मीडिया’ में छप चुका है।
बांग्लादेश के लेखकों सलाम आजाद, तसलीमा नसरीन व मुक्ति संग्राम के समय के सेना के लोगों से भी उनका संवाद हुआ है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम कवर करनेवाले रामबहादुर राय से लंबी बातचीत उन्होंने की है। नंदिनी के शोध की अब तक की प्रगति संतोषजनक है, इसलिए मुझे विश्वास है कि वे तीन साल के अंदर ही प्री सब्मिशन कर देंगी।
नंदिनी ऐसी पीएच.डी. शोधार्थी हैं जिनमें गंभीर शोध वृत्ति है। उन्होंने अभी तक जितने शोध अध्याय, उप अध्याय या शोध आलेख मुझे देखने के लिए भेजे, वे काफी बेहतर थे। मैंने परीक्षण के लिए नंदिनी को हिंदी में तैयार हो रहा जनसंचार का एक शोध प्रबंध दिया था और कहा था कि उसकी भाषा सुधार दीजिए। नंदिनी ने जितनी बारीकी से गलतियां निकालीं और सुधारीं, उसे देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ था। उसी तरह की प्रसन्नता पिछले साल हुई थी जब बांग्लादेश विजय दिवस के दिन ‘दैनिक जागरण’ के सभी संस्करणों में संपादकीय पृष्ठ पर उनका लेख ‘अपने अस्तित्व को सार्थक करता बांग्लादेश’ छपा था। नंदिनी एक बेहतर अनुवादक भी हैं। कश्मीर की कला पर अवतार मोटा का लेख मैंने नंदिनी को
भेजा और आग्रह किया कि चार दिनों के भीतर वे अनुवाद कर भेज दें। उन्होंने तीन दिनों के भीतर उसका अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर भेज दिया जबकि उस समय वे कैंसर से जूझ रहीं अपनी मां के साथ अस्पताल में थीं। नंदिनी ने इतना अच्छा अनुवाद किया कि संपादन की जरूरत ही नहीं पड़ी।
पत्रकार, लेखिका, अनुवादक, शोधार्थी नंदिनी के व्यक्तित्व का एक और सबल पक्ष है। वे चित्रकार भी हैं। मिथिला शैली की उनकी चित्रकृतियां मैंने देखी हैं। मधुबनी कला या मिथिला चित्रकला दीवार कला से लेकर झोपड़ियों के फर्श तक और कपड़े से लेकर कागज पर भी बनाई जाती है। मिथिला की बेटी नंदिनी सिन्हा की चित्रकला में मिथिला की परंपरा और संस्कृति की झलक हम पाते हैं। उनकी कुछ चित्रकृतियां इस पोस्ट के साथ दी गई हैं।