- अनूप नारायण सिंह
काफी अरसे से फिल्मों से दूर रहने के बाद ‘नदिया के पार’ की गुंजा यानी साधना सिंह एक बार फिर बड़े पर्दे पर वापसी कर रही हैं। नदिया के पार में उनकी मासूमियत पर लोग इस कदर दीवाने थे कि आज भी जेहन में वह मौजूद हैं।
फिल्म ‘नदिया के पार’ की हीरोइन साधना सिंह ने यह सोचा भी नहीं था कि वह कभी हीरोइन बनेंगी, लेकिन बहन के साथ एक फिल्म की शूटिंग देखने के लिए गयी साधना सिंह पर सूरज बड़जात्या की नजर पड़ी और वह इस फिल्म की हीरोइन चुन ली गयीं। साधना सिंह खुद भी कानपुर के एक छोटे से गांव नोनहा नरसिंह की रहनेवाली हैं। उनकी मासूमियत के लोग इस हद तक दीवाने हुए कि आज भी वह लोगों के जेहन में मौजूद हैं।
यह फिल्म न केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में, बल्कि पूरे देश में ब्लॉकबस्टर साबित हुई। साधना जहां भी जातीं, लोग उन्हें गुंजा कहकर पुकारते। शहरों के साथ-साथ गांवों में भी लोग उनसे मिलने के लिए भीड़ लगा देते थे।
उनके लिए दीवानगी इस कदर थी कि लोगों ने अपनी बेटियों का नाम ही गुंजा रखना शुरू कर दिया था। यह फिल्म 1 जनवरी 1982 को रिलीज हुई थी। कहते हैं कि जब इस फिल्म की शूटिंग खत्म हुई थी, तो उस गांव के लोग रोने लगे थे। गांव में शूटिंग के दौरान गुंजा और गांववालों के बीच एक आत्मीय रिश्ता बन गया था।
‘नदिया के पार’ के बाद साधना सिंह ‘पिया मिलन’, ‘दोस्त गरीबों का’, ‘ससुराल’, ‘तुलसी’, ‘औरत’, ‘पत्थर’, ‘फलक’, ‘पापी संसार’ जैसी फिल्मों में काम किया, लेकिन इसके बाद साधना अचानक ही बॉलीवुड की दुनिया से गायब हो गयीं। इस बारे में साधना कहती हैं कि उन्हें अच्छी फिल्में नहीं मिली और फिर उन्होंने हिंदी सिनेमा को अलविदा कह दिया।
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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि साधना एक बेहतरीन अदाकारा होने के साथ-साथ एक बेहतरीन गायिका भी हैं। बताते चलें कि साधना सिंह बिहार की बहू हैं। वह भोजपुरी फिल्मों के पितामह विश्वनाथ शाहाबादी की बहू और फिल्म निर्माता राजकुमार शाहाबादी की पत्नी हैं।
साधना सिंह की बेटी शीना शाहाबादी हिंदी फिल्मों की उभरती अदाकारा हैं। वह ‘तेरे संग’, ‘फास्ट फॉरवर्ड’ और ‘आई, मी एंड हम’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हैं। बहरहाल, फिल्मों के अलावा साधना ने टीवी पर भी काम किया और अब वह घर-परिवार के साथ अपना समय बिता रही हैं।
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