- संजय पाठक
नरेंद्र मोदी के आह्वान पर दीप जलाने से कोरोना का वायरस मरेगा या नहीं, यह उतना ही सच है, जितना यह कि ऐसे आयोजन की आलोचना से भी वायरस नहीं मरेगा। यह सच है कि कल (5 अप्रैल 2020) की रात बालकॉनी, टेरेस, छत या घर के द्वार पर दीया जलाने से वायरस नहीं मरा। मगर वे घर में बैठ कर चैनल बदल-बदल कर अपने मनपसंद प्रोग्राम ढूंढने से भी नहीं मरता!
यह भी सच है कि दीया जलाने से अपनी और अपने परिवार की परवाह किये बिना देशवासियों की सुरक्षा में समर्पित डॉक्टर्स, नर्सेज व अन्य चिकित्साकर्मियों को चिकित्सकीय उपकरण/ संसाधन नहीं मिल जाएंगे। पर, वे तो फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और न जाने कहां-कहां गंध फैलाने से, चिकित्सकीय कार्य मे लगे लोगों पर थूकने से, हर व्यवस्था का मखौल उड़ाने से भी नहीं मिलेंगे!
तो फिर इस कवायद के निहितार्थ क्या हैं? इस सामूहिक यत्न से हर पुरुष, नारी, बच्चे, बुजुर्ग या हर हतोत्साहित इंसान को एक हिम्मत मिलेगी कि जंग अभी जारी है और अब अपनी जीत की बारी है! इस अभूतपूर्व आपातकाल में मानवता को बचाने के कर्मयुद्ध में तल्लीन हर सिपाही (चिकित्सकीय पेशे से जुड़े, सुरक्षा और व्यवस्था बनाये रखने में तल्लीन, जीवनोपयोगी वस्तु और सेवाओं को यथासंभव आपूर्ति सुनिश्चित करने में जुड़े, साफ-सफाई को कायम रखने वाले योद्धा) का मनोबल ऊंचा होगा। उन्हें यह एहसास होगा कि यह युद्ध जीता जा सकता है और वे अपनी समस्त ऊर्जा का उपयोग इस युद्ध को जीतने में करेंगे।
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नरेंद्र मोदी के दीप जलाने के आग्रह के पीछे अभिप्राय यह था कि मानवता को यह आभास होगा कि इस आपातकाल में कर्मयोद्धा इस युद्ध को जीतने में तल्लीन हैं और विजय सुनिश्चित है। और दीये की लौ से हमारी अंतरात्मा को पता चलेगा कि बेशक आज अंधेरा घना है, लेकिन प्रकाश का आना तय है।
चिकित्सा विज्ञान ने यह सिद्ध किया है रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) रोगों से बचाने और रुग्ण हो जाने के उपरांत उससे उबरने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता ही हमे रुग्ण होने से, रुग्णावस्था से उबरने में हमारी सबसे बड़ी ताकत है। और इससे कौन इनकार कर सकेगा कि उत्साह से भरे, जीवन के हर पल को उत्सव बनाने में तल्लीन मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता उच्च होगी!
तो, बंधुओ! व्यक्तिगत रुचि-अरुचि को त्याग, दलगत राजनीति से मुक्त होकर अपनी और हमारी सबकी हिम्मत, हौसले को बनाये रखने में एकजुट रहें, मनोबल उच्च रखें, बिज्ञान के सिद्ध सूत्र को आत्मसात कर विजयपथ पर अग्रसर रहें। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।
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