नरेंद्र मोदी के आह्वान पर घंटा बजा, पर किसके वास्ते?

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कोरोना संकट से निपटने में लगे लोगों के उत्सहवर्द्धन के लिए थाली बजाओ अभियान में शामिल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)
कोरोना संकट से निपटने में लगे लोगों के उत्सहवर्द्धन के लिए थाली बजाओ अभियान में शामिल बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)
  • के. विक्रम राव
के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

नरेंद्र मोदी के आह्वान पर भारत ने आज (22 मार्च 2020) संध्या पांच बजे ताली बजाई, थाली पीटी, घंटी घनघनाई और “कोरोना भागो” सूत्र को गुंजाया। हालाँकि कल रात को ही टीवी पर राहुल गाँधी के अति-गंभीर उद्गार  थे कि “थाली पीटने से कुछ भी नहीं होने वाला है।” टीवी और संवाद समितियों की रपट और चित्रों के अनुसार सारा देश साझेदार रहा। मगर पप्पूभक्त जन, वामी, गंगाजमुनी, मुल्ले और मदरसे इससे किनारा कर गए। भूलकर भी टीवी पर कोई दिखा नहीं। शायद कोरोना भगाना नहीं चाहते होंगे। हालाँकि, घंटाघर (लखनऊ) और शाहीनबाग (दिल्ल्ली) में बैठे लोग इसमें शिरकत कर सकते थे। थाली पीट सकते थे| पर प्रश्न था कि कोरोना बड़ा खतरा है या मोदी?

राष्ट्रीय एकात्मकता का ऐसा भाव-विभोर और आह्लादमय नजारा दशकों बाद पेश आया है। दांडी नमक सत्याग्रह (1930) और नवनिर्माण छात्र आन्दोलन (गुजरात 1974) के बाद ही जनसरोकार का ऐसा प्रदर्शन हुआ है। अहमदाबाद के छात्र-आन्दोलन (तब नरेंद्र मोदी बाईस वर्ष के युवा स्वयंसेवक थे) में उन्होंने देख होगा कि कैसे प्रतिदिन शाम को सारे गुजरात में पूरे परिवारवाले घंटी और थाली बजाकर भ्रष्ट इंदिरा-कांग्रेसी मुख्य मंत्री चिमनभाई जीवनभाई पटेल की सरकार का ‘मृत्युघंट’ टनटनाते थे। फिर सरकार गिर गई।
नीतीश ने भी नरेंद्र मोदी के आह्वान पर थाली बजायी
नीतीश ने भी नरेंद्र मोदी के आह्वान पर थाली बजायी

मोदी ने महागुजरात आन्दोलन (बम्बई प्रदेश का भाषावारी विभाजन) के दौर में अस्सी-वर्षीय इन्दुलाल याज्ञनिक के नेतृत्ववाले जनसंघर्ष को जाना होगा। तब केंद्रीय काबीना के वित्तमंत्री और गुजरात के सुप्रीमो मोरारजी रणछोड़ देसाई अहमदाबाद, बड़ौदा और सूरत आये थे। ‘जनता कर्फ्यू’ का इन्दुलाल ने ऐलान किया था। सिवाय कुत्ते-बिल्ली के वीरान सड़कों पर मोरारजीभाई को कोई प्राणी दिखा ही नहीं था। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ (अहमदाबाद) में नवनिर्माण संघर्ष की रपट मैंने लिखी थी।

मोदी ने संघर्ष के इन पुराने अस्त्रों को आयुधभंडार से तराश कर निकाला है। प्रधान मंत्री द्वारा जनचेतना को प्रस्फुटित करने का यह तरीका नायाब रहा। मगर आज माहौल भिन्न है। शत्रु भी अजीब सा है, अमूर्त| विस्तारवादी चीन के वुहान प्रान्त से आया विषाणु है।
इतना तो तय है कि आज उनके जिन विरोधियों ने अपनी खुन्नस और संकीर्णता के कारण इस राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन में भाग नहीं लिया, वे महंगी सियासी भूल कर बैठे। प्रतीक्षा करें खामियाजा के लिए।
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