झारखंड हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिसविक्रमादित्य प्रसाद नहीं रहे। साहित्य से सरोकार रखने वाले विक्रमादित्य प्रसाद कई आयोगों से भी जुड़े रहे। उनके निधन से झारखंड में शोक की लहर है।
- नवीन शर्मा
आई है धूप मिलने तो मिलिये तपाक से/ मत कहियेगा बाद में की मौसम खराब है ..झारखंड हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद ने ये दो खूबसूरत पंक्तियां आज से चार दिन पहले अपने फेसबुक एकाउंट से पोस्ट की थीं। ऐसा माना जाता है कि कई लोगों को मौत के कदमों की आहट का पता थोड़ा पहले चल जाता है। शायद विक्रमादित्य प्रसाद को भी इसका हल्का सा इशारा मिल गया था, लेकिन उनको जाननेवाले लोग शायद इस इशारे को समझ नहीं पाये थे। किसी को बिल्कुल अंदाज नहीं लगा था, क्योंकि वे उस समय पूरी करह स्वस्थ थे। उनकी तबीयत खराब होने की कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि इन्होंने कुछ दिन पहले एक कविता पोस्ट की थी, जिससे स्पष्ट पता चलता है कि उन्हें अपनी मौत का पता पहले ही चल गया था। ऐ जिंदगी तेरे घर से तन्हा निकल प़ड़े/ कांधे पर दोस्तों के सफर अब कौन करे। ये भी दुखद इत्तिफाक रहा कि उसी दिन उनसे पहली बार फेसबुक पर बहस हुई, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि मौसम इतना अधिक खराब हो जायेगा कि विक्रमादित्य जी से तपाक से मिलने का अवसर नामुमकिन हो जायेगा.
इस पोस्ट को लेकर हुई थी बहस
24 दिसंबर को मैंने फेसबुक पर कोरोना मामले को लेकर एक पोस्ट डाला था। मैंने लिखा था- ताकि सनद रहे एक बार फिर दोहरा रहा हूं कि भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों ने कोरोना वायरस के खतरे को गंभीरता से नहीं लिया और इंटरनेशनल फ्लाइट पर बैन लगाने में अक्षम्य देरी की चूक की थी। विक्रमादित्य जी मेरी इस राय से सहमत नहीं थे। उन्होंने मेरे फेसबुक वॉल पर कमेंट किया- क्या आप घर के किसी के सीने में हल्का दर्द होते ही हमेशा अस्पताल पहुंचाते हैं और जब बाद में डाक्टर कहता है कि आपने बड़ी देर कर दी तो आप समझते हैं कि मामला उतना गंभीर तो नहीं लगता था। कोरोना के बारे में प्रांरभिक स्थिति वही थी। अब तो लोग संभले हैं फिर भी कोरोना का दूसरा दौर भी कैसे आ गया?
इस पर मैंने जवाब दिया कि Vikramaditya Prasad – सर चीन में कोरोना संक्रमण की बात नवंबर 2019 में पता चली थी। दिसंबर में पूरी दुनिया जान गयी थी। जनवरी के अंत में WHO ने हेल्थ इमर्जेंसी की वार्निंग जारी की थी, पर अधिकतर देशों की सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बस समय पर इंटरनेशनल फ्लाइट रोक देते तो करोड़ों लोग इस मुसीबत से बच जाते।
इस पर उनका रिप्लाई था- ये बातें कही जाती हैं। सब जानते हैं कि सीने में दर्द हार्ट का भी होता है फिर भी उसे गैस का समझ कर टालते हैं। उस समय यह सुनिश्चित नहीं था पूरी तरह कि वह पैनडेमिक है। WHO भी कंफ्यूज्ड था। मैंने जवाब में कहा- WHO से ज्यादा गफलत में सरकारें थीं सर। इनकी नींद तब टूटी, जब पानी गर्दन तक आ गया और बेवकूफ़ ट्रंप को तो तब भी नहीं समझ में आया। इसके बाद सर ने जवाब में कहा- भारतीय पत्रकारों को कितना समझ आया उस समय।
29 फरवरी को हुई थी अंतिम मुलाकात
खैर, उनसे तपाक से ना मिलने का अफसोस ताउम्र रहना है, लेकिन उनसे कई आत्मीय मुलाकातों की स्मृतियां आज सुबह से ही नम आंखों में दृश्य के रूप में घूम रही हैं। उनसे अंतिम मुलाकात लॉकडाउन के पहले 29 फरवरी 2020 को हुई थी। रांची विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी के हॉल में मुक्ति शाहदेव के कविता संग्रह- आंगन की गौरैया- का लोकार्पण समारोह था। विक्रमादित्य प्रसाद कार्यक्रम के अध्यक्ष थे। वे खुद अच्छे लेखक थे। उन्होंने बिरसा काव्यांजलि और सहेजी हुई चिट्ठियां नाम की किताबें लिखीं थीं। वे कविताओं के मर्म को बहुत अच्छी तरह समझते थे, इसलिए उन्होंने कविताओं के बारे में बहुत लाजवाब ढंग से अपना अध्यक्षीय भाषण दिया था।
कार्यक्रम से पहले किताब देने उनके मोरहाबादी स्थित घर भी गया था तो बहुत ही आत्मीय ढंग से मिले थे। एक-डेढ़ घंटे तक विभिन्न विषयों पर बातें हुई थीं। इसके पहले एक बार सर की पत्नी का इलाज करमटोली स्थित मां रामप्यारी हॉस्पिटल में चल रहा था। उस दिन पत्नी मुक्ति शाहदेव के साथ उनका हाल जानने अस्पताल गया था। वहां भी काफी देर तक विक्रमादित्य जी से बात हुई थी।
झारखंड हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस व्यक्तित्व की सबसे खास बातें जो मुझे समझ में आयी हैं, उनमें सबसे उल्लेखनीय उनका सहज, सरल और मिलनसार स्वभाव था। हाईकोर्ट के जज होने का कोई अहंकार या रूआब उनकी बातों और व्यवहार में कभी नजर नहीं आया। इसके अलावा ईमानदारी भी एक रेयर गुण था, जो उनकी शख्सियत को अलग पहचान देता था।
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