पटना। पत्रकार हरिवंश का दलजीत टोला (उत्तर प्रदेश के बलिया जिले सिताब दियारा गांव के एक टोले) से दिल्ली तक का सफर काफी रोमांचक रहा है। 30 जून 1956 को बलिया जिले (उत्तरप्रदेश) के सिताबदियारा (दलजीत टोला) में हरिवंश का जन्म हुआ। यह गांव जयप्रकाश नारायण का गांव है। इस गांव की खासियत यह है कि यह दो राज्यों- बिहार और उत्तरप्रदेश तथा तीन जिलों- आरा, बलिया और छपरा से जुटता है।
हरिवंश की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। गांव में जयप्रकाश नारायण जी के नाम पर बने हाईस्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा और इंटर तक की पढ़ाई बनारस के यूपी कॉलेज से हुई। बीएचयू, वाराणसी से स्नातक व अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीएचयू के ही पत्रकारिता विभाग से उन्होंने डिप्लोमा स्तरीय प्रशिक्षण लिया।
जयप्रकाशजी को बचपन से ही गांव में देखने का मौका मिला। इसका असर हरिवंश पर यह पड़ा कि जेपी आंदोलन की शुरुआत हुई तो राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। भूमिगत परचा-पोस्टर चिपकाने, बांटने का काम इनके जिम्मे था। उसी से प्रेरित-प्रभावित होकर पत्रकारिता को उन्होंने मुख्य पेशा के तौर पर अपनाया। इस बीच कुछ दिन वे बैंक में भी रहे। 39 सालों की नौकरी (पत्रकारिता, बैंकिंग व पीएमओ मिलाकर) के बाद हरिवंश राज्यसभा के रास्ते राजनीति में दाखिल हुए।
कुछ दिन पीएमओ में वह चंद्रशेखर जी के साथ रहे। 1991 में पुन: प्रभात खबर में वापसी हुई और जून 2016 तक अखबार में प्रधान संपादक रहे। प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में पीएमओ में 1990 से जून 1991 तक कार्यरत रहे। अक्तूबर 1989 में रांची से प्रकाशित अखबार ‘प्रभात खबर’ से बतौर प्रधान संपादक जुड़े थे। आनंद बाजार पत्रिका समूह की हिंदी पत्रिका ‘रविवार’ में 1985-1989 तक कार्यरत रहे। भारतीय रिजर्व बैंक में भी अधिकारी के रूप में चयन हुआ, लेकिन उसे छोड़ फिर से पत्रकारिता में वापसी की। 1981 से 1984 तक बैंक आफ इंडिया, हैदराबाद और पटना में अधिकारी रहे। पत्रकारिता की शुरुआत ‘टाइम्स आफ इंडिया’ समूह की मशहूर हिंदी पत्रिका ‘धर्मयुग’ से की। ‘धर्मयुग’ में 1977-1981 तक कार्यरत रहे। अप्रैल 2014 में जनता दल यू की ओर से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। 9 अगस्त 2018 को राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए निर्वाचित हुए।
तकरीबन 39 साल की नौकरी और 6 साल तक राज्यसभा का सदस्य रहते हुए उन्होंने अपनी अर्जित प्रापर्टी का भी ब्योरा दिया हैः 2014 में सांसद बनने के बाद कोई नयी प्रॉपर्टी नहीं खरीदी। जनसत्ता कोआपरेटिव सोसाइटी (गाजियाबाद) की पत्रकार कालोनी जब बन रही थी, कुछ वरिष्ठ पुराने पत्रकार साथियों ने मुझे भी उसका सदस्य बना दिया था। वहां एक फ्लैट मिला, उसे 2014 के बाद बेच दिया।
उन्होंने अपने हलफनामें में 2014 के बाद मुख्य आय-स्रोत की भी जानकारी दी है- जिस संस्थान में लगभग तीन दशकों तक रहा, वहां कार्यरत हम तीन वरिष्ठ लोगों को कंपनी ने कुछ शेयर दिया था। उसका भुगतान सांसद बनने के बाद मिला, जो जीवन की मुख्य आर्थिक कमाई है। चार दशकों तक चार अलग-अलग संस्थानों (टाइम्स आफ इंडिया समूह, बैंक, आनंद बाजार पत्रिका समूह, प्रभात खबर) की नौकरी के बाद पीएफ, जीएफ आदि का एकमुश्त भुगतान 2014 के बाद मिला।
जिस अखबार समूह में लगभग तीन दशकों तक नौकरी की, वहां वर्षों जिस गाड़ी पर चढ़ता था, कंपनी ने उस गाड़ी को मुझे दे दिया। इसी तरह दिल्ली में कंपनी की ही गाड़ी थी, वह भी कंपनी ने मुझे दी। इस तरह बिना गाड़ी मालिकाना के (2014 तक) उस कंपनी के सौजन्य से अब दो वाहन हैं। पैतृक संपत्ति : जो चीजें सरकारी दर से पहले बहुत मामूली कीमत पर थी, अब पैतृक रूप से मिले उस जमीन की कीमत करोड़ों में है। यह संपत्ति संयुक्त परिवार की है। इसमें से कुछ जमीन गंगा में है, जिसके निकलने के कम आसार हैं। फिर भी उसका मालिकाना हक परिवार का है। हालांकि उससे कुछ मिलनेवाला नहीं।
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जो फ्लैट या कुछ जमीन 2014 से काफी पहले बहुत कम मूल्य पर खरीदा, आज उसका सरकारी मूल्य बहुत अधिक है, इसलिए बहुत कम दर में खरीदी चीजों का आज मूल्य बढ़े सरकारी दर के कारण बहुत अधिक है। जिस कंपनी ने तीन दशक रहने के कारण मालिकाना हक दिया, उसका निवेश वित्तीय संस्थाओं या म्यूचुअल फंड मार्केट में है। उनका मूल निवेश कीमत अलग है, पर आज उनका बाजार मूल्य अधिक है। इस कारण उसें इजाफा होता है।
अब आय के साधनः सांसद के रूप में मिलनेवाली तनख्वाह और पिछले चार दशकों की नौकरी से मिले या बचत के पैसे के निवेश से आमद, यही आय के दो स्रोत हैं।
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